बांसवाड़ा. राजस्थान के दक्षिणी सीमा पर स्थित बांसवाड़ा को लोढ़ी काशी के नाम से जाना जाता है. वहीं बांसवाड़ा 100 टापुओं का शहर और राजस्थान के चेरापूंजी के नाम से भी प्रसिद्ध है लेकिन ये आदिवासी बहुल क्षेत्र विकास की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है. ऐसे में अब बांसवाड़ा नगर परिषद ने क्षेत्र के विकास और सौंदर्यीकरण के लिए नए प्रयास शुरू कर दिए हैं. लगता है कुछ ही दिनों में बांसवाड़ा की तकदीर और तस्वीर दोनों संवर जाएगी.
आदिवासी बहुल बांसवाड़ा शहर की अब धीरे-धीरे तस्वीर बदलती जा रही है. नगर परिषद एक के बाद एक शहर के विकास की योजनाओं को अपने हाथ में ले रही है. साल 2019 में परिषद का नया बोर्ड बनने के साथ ही सभापति जैनेंद्र त्रिवेदी ने शहर के सौंदर्यीकरण को प्राथमिकता से लिए जाने का आश्वासन दिया था.
अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी त्रिवेदी ने बांसवाड़ा को डूंगरपुर और उदयपुर के मुकाबले खड़ा करने का वायदा किया था. उसके तहत सबसे पहले सभापति ने शहर में करीब 80 लाख रुपए की लागत से महिला दिवस के मौके पर पार्क की सौगात दी. यह जिले का सबसे बड़ा पार्क माना जा रहा है. अपने आप में अनूठे इस पार्क में बच्चों से लेकर बुजुर्ग और समाज के हर वर्ग की इच्छाओं का ध्यान रखा गया.
चौराहों का हो रहा सौंदर्यीकरण
इसके बाद नगर परिषद की आर्थिक स्थिति को देखते हुए निजी संस्थाओं के जरिए प्रमुख चौराहों के सौंदर्यीकरण पर काम शुरू हुआ. उदयपुर रोड पर आने वाले प्रताप सर्कल को क्षत्रिय समाज के सहयोग से सजाने संवारने का काम शुरू हुआ. जिसके तहत महराणा प्रताप की प्रतिमा खंडित होने के बाद राजपूत समाज ने अपने स्तर पर करीब 22 लाख रुपए खर्चा करते हुए 16 फीट ऊंची महाराणा प्रताप की प्रतिमा मंगवाई है.
महाराणा प्रताप की प्रतिमा 200 किमी दूर आएगी नजर
नगर परिषद ने इस सर्कल को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए प्रताप की प्रतिमा का फाउंडेशन अपने स्तर पर तैयार करवाने का जिम्मा लिया है. मुंबई की एक फर्म के जरिए फाउंडेशन का काम अंतिम चरण में है. फाउंडेशन का काम पूरा होने के बाद महाराणा प्रताप की प्रतिमा करीब 200 मीटर दूर तक से नजर आएगी.