बांसवाड़ा.पिछले कुछ सालों में जरुरत की हर वस्तु के दामों में उछाल आया है. किसी के दाम 2 साल में दोगुना हो गए तो किसी के 5 साल में. लेकिन परंपरागत मिट्टी के दीयों की कीमत आश्चर्यजनक रूप से घट रही है. जबकि मिट्टी से लेकर लकड़ी और मजदूरी के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. नतीजा यह है कि मिट्टी के दीयों की लागत बढ़ गई है, परंतु मोल भाव में मिट्टी के दीये मात खाते जा रहे हैं. जब से चाइनीज दीपक मार्केट में आए हैं, मिट्टी के दीये एक प्रकार से खत्म ही हो गए हैं.
पिछले 5 से 7 साल में जब से चाइनीज दीपक मार्केट में आए हैं, घाटे का सौदा होने के कारण कुम्हार समाज के लोग इस धंधे से किनारा करने लग गए है. बांसवाड़ा में करीब 10 से अधिक गांवों में दीपावली से पहले कुछ परिवार आज भी मिट्टी के दीपक बनाने का काम कर रहे हैं. इन्हीं में से एक रतलाम रोड स्थित बोर तालाब गांव है. यहां के कुम्हार समाज के लोगों ने बताया कि चाइनीज दीपक के कारण यह समाज अपने परंपरागत व्यवसाय से विमुख होता जा रहा है.
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उन्होंने बताया कि लकड़ी और मिट्टी के दामों में बढ़ोतरी के साथ श्रम की कीमत भी बढ़ी है. हालत यह है कि डेढ़ से 2 रुपये में भी मिट्टी के दीपक लेने को लोग तैयार नहीं होते और मोलभाव करते हैं. वहीं बोर तालाब में कुम्हार समाज के करीब 20 से अधिक परिवार हैं, जिनमें से बमुश्किल 8 से लेकर 10 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हैं. अन्य परिवार ने दूसरे व्यवसाय में हाथ आजमा लिए हैं.
डिजाइनरदीपक के आगे सामान्य दीपक की मांग कम