राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / state

दिवाली विशेष: बांसवाड़ा में मिट्टी के दीयों पर मोल भाव की मार, चीन ले गया मझधार

दीपावली का नाम आते ही हमारे सामने जगमगाते दीयों की कल्पना उभर कर आती है. गरीब से लेकर अमीर, गांव से लेकर शहर और महल से झोपड़ी तक दीपक की रोशनी से जगमगा उठते हैं. लेकिन आज मिट्टी का यह दीपक मोल भाव में अपनी महत्ता खोता जा रहा है.

By

Published : Oct 24, 2019, 5:09 PM IST

बांसवाड़ा न्यूज, banswara latest news, Bargain on clay lamps, मिट्टी के दीयों पर मोलभाव

बांसवाड़ा.पिछले कुछ सालों में जरुरत की हर वस्तु के दामों में उछाल आया है. किसी के दाम 2 साल में दोगुना हो गए तो किसी के 5 साल में. लेकिन परंपरागत मिट्टी के दीयों की कीमत आश्चर्यजनक रूप से घट रही है. जबकि मिट्टी से लेकर लकड़ी और मजदूरी के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. नतीजा यह है कि मिट्टी के दीयों की लागत बढ़ गई है, परंतु मोल भाव में मिट्टी के दीये मात खाते जा रहे हैं. जब से चाइनीज दीपक मार्केट में आए हैं, मिट्टी के दीये एक प्रकार से खत्म ही हो गए हैं.

मिट्टी के दीयों पर मोलभाव की मार

पिछले 5 से 7 साल में जब से चाइनीज दीपक मार्केट में आए हैं, घाटे का सौदा होने के कारण कुम्हार समाज के लोग इस धंधे से किनारा करने लग गए है. बांसवाड़ा में करीब 10 से अधिक गांवों में दीपावली से पहले कुछ परिवार आज भी मिट्टी के दीपक बनाने का काम कर रहे हैं. इन्हीं में से एक रतलाम रोड स्थित बोर तालाब गांव है. यहां के कुम्हार समाज के लोगों ने बताया कि चाइनीज दीपक के कारण यह समाज अपने परंपरागत व्यवसाय से विमुख होता जा रहा है.

यह भी पढ़ेंः दिवाली विशेष: आज भी यहां के कुम्हार 'मुद्रा विनिमय प्रणाली' के बदले अपनाते हैं 'वस्तु विनिमय प्रणाली'

उन्होंने बताया कि लकड़ी और मिट्टी के दामों में बढ़ोतरी के साथ श्रम की कीमत भी बढ़ी है. हालत यह है कि डेढ़ से 2 रुपये में भी मिट्टी के दीपक लेने को लोग तैयार नहीं होते और मोलभाव करते हैं. वहीं बोर तालाब में कुम्हार समाज के करीब 20 से अधिक परिवार हैं, जिनमें से बमुश्किल 8 से लेकर 10 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हैं. अन्य परिवार ने दूसरे व्यवसाय में हाथ आजमा लिए हैं.

डिजाइनरदीपक के आगे सामान्य दीपक की मांग कम

40 साल से मिट्टी के दीपक बना रहे शंकरलाल के अनुसार आज इसकी डिमांड काफी कम हो गई है. इसलिए मांग के अनुसार ही माल तैयार करते हैं. दीपक के आने के बाद सामान्य दीपक की मांग भी काफी कम हो गई है. वहीं शांति लाल प्रजापत के मुताबिक लोगों में अब मिट्टी की महत्ता कम हो गई है. 90 पैसे से लेकर एक रुपए में हम माल मंगवाते हैं, लेकिन यहां ग्राहक इससे भी कम कीमत में दीपक मांगते हैं.

यह भी पढ़ें : राजस्थान: 156 RAS अधिकारियों के तबादले, देखें पूरी Transfer List

नुकसान के अलावा कुछ भी नहीं बचा

मिट्टी और लकड़ी की कीमते बड़ी हैं. इसके बावजूद लोग पुराने भाव पर ही दीपक खरीदने आते हैं. इस कारण नई पीढ़ी इस धंधे को छोड़कर अन्य धंधा अपना रही है. नारायण लाल बताते हैं कि इस धंधे में अब नुकसान के अलावा कुछ भी नहीं बचा है. लोग 2 रुपये देने से भी कतराते हैं. उन्होंने कहा कि एक जमाना था जब 20 से 25 परिवार की रोजी-रोटी इससे चलती थी. लेकिन अब यह काम 8 से 10 परिवार तक ही सीमित हो गया है.

4 महीने पहले शुरू हो जाता था दीपक बनाने का काम

मणि बाई बताती हैं कि हमारे समय में सुबह 4 बजे उठ कर हम लोग ढाणी-ढाणी दीपक देने के लिए जाते थे. लोग हमारे मिट्टी के दीपक का इंतजार करते थे. 4 महीने पहले दीपक बनाने का काम शुरू कर देते थे, लेकिन आज कोई भी कीमत देने को तैयार नहीं है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details