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बांसवाड़ा: जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने बीमा कंपनी के खिलाफ सुनाया फैसला, बेटे की मौत पर मां को अधूरा दिया क्लेम

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Published : Feb 28, 2021, 12:18 PM IST

बांसवाड़ा में एक बीमित युवक की मौत पर पूरा क्लेम देने के बजाय बहानेबाजी कर भुगतान डालने के एक प्रकरण में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ निर्णय सुनाया है. बताया जा रहा है कि कंपनी ने बेटे की मौत पर मां को अधूरा क्लेम दिया था. वहीं अब कंपनी को हर्जे-खर्चे सहित करना भुगतान होगा.

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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने बीमा कंपनी के खिलाफ सुनाया फैसला

बांसवाड़ा.जिले मेंबीमित युवक की मौत पर पूरा क्लेम देने के बजाय बहानेबाजी कर भुगतान डालने के एक प्रकरण में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ निर्णय सुनाया है. आयोग ने कंपनी को आदेश दिया है कि वह ब्याज समेत अधिशेष राशि और 5 हजार परिवाद व्यय के साथ बतौर क्षतिपूर्ति 10 हजार रुपए राशि अदा करें.

वहीं प्रकरण में अखेपानजी का गढ़ा निवासी हाकेर पत्नी कमजी बामणिया की ओर से प्रबंधक, रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड शाखा सिद्धिविनायक कॉन्प्लेक्स, पुराना बस स्टैंड बांसवाड़ा के खिलाफ आयोग में परिवाद पेश किया गया था. इसमें बताया गया कि परिवादिया के पुत्र गोविंद बामणिया ने कंपनी से रिलायंस क्लासिक प्लान जीवन बीमा पॉलिसी 28 अक्टूबर 2014 को ली थी, जिसकी वहां नॉमिनी है.

पॉलिसी में तय रहा कि बीमित की पॉलिसी प्रभावी रहने के दौरान मृत्यु पर पांच लाख क्लेम का प्रावधान है. जीवित रहते गोविंद ने पॉलिसी के नियमानुसार किसने अदा की, फिर गोविंद का 30 जुलाई 2015 को निधन हो गया तो बतौर नॉमिनी परिवादिया ने बीमा का दावा पेश किया. इसे कंपनी से 30 जनवरी 2016 को यह कह कर खारिज कर दिया कि गोविंद बीमा करवाने से पहले टीबी रोग से ग्रसित था और उसने तथ्यों को छुपाकर बीमा पॉलिसी प्राप्त की है.

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बता दें कि इस मामले की सुनवाई के बाद मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर आयोग का अध्यक्ष राजेश सिंह शेखावत, सदस्य कमलेश शर्मा और भावना मेहता ने पाया कि गोविंद किडनी डिसऑर्डर रोग से पीड़ित था और अपना इलाज करा रहा था. बीमा कंपनी ने विचारण के बाद बीमित के नॉमिनी को पॉलिसी लेते समय डेढ़ लाख रुपए का भुगतान कर 31 मार्च 2016 को लिखित सूचना भी दी.

इसके साथ ही आयोग ने पूरी बीमा राशि नहीं देना कंपनी का सेवा दोष माना और विपक्ष को आदेश दिया कि वह बीमा राशि पांच लाख में से नॉमिनी को किए गए भुगतान का समायोजन कर शेष भुगतान करें. साथ ही परिवाद पेश करने की दिनांक से अदायगी तक 5 हजार रुपए व्यय 9 फीसदी सालाना ब्याज और 10 हजार रुपए हर्जाने के साथ अदा करें. आयोग ने विपक्षी को 10 हजार रुपए राशि राज्य उपभोक्ता कल्याण कोष, जयपुर में जमा कराने के आदेश भी दिया. आदेश की पालना एक माह में नहीं होने पर मूल राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज देना होगा.

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