अलवर. देशभर में नए कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है. विपक्ष सरकार को घेरने में लगी है. दूसरी तरफ किसान सड़कों पर उतरकर नए कानून का विरोध कर रहे हैं. उधर, अलवर में कृषि कानून से व्यापारी और किसान दोनों ही खासे परेशान हैं. अलवर में नए कृषि कानून का असर भी देखने को मिल रहा है.
अलवर मंडी के अधीन 11 मंडिया आती हैं. इसमें अलवर बड़ौदामेव, बयाना, भरतपुर, डीग, खैरथल, खेड़ली, नगर, नदबई, धौलपुर और कामां मंडी शामिल हैं. इन मंडियों में हजारों व्यापारी काम करते हैं. अकेली अलवर मंडी में 400 से अधिक व्यापारी हैं. अलवर मंडी पर व्यापारियों के अलावा वहां काम करने वाले पल्लेदार, मजदूर, किसान और प्रत्येक व्यापारी के कांटे पर बड़ी संख्या में कर्मचारी काम करते हैं.
मंडी शुल्क में भारी गिरावट
व्यापारी को कारोबार के हिसाब से मंडी शुल्क देना पड़ता है. सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2019-20 में व्यापारियों द्वारा 653 लाख रुपए मंडी शुल्क के रूप में दिया गया. जबकि नए कानून आने के बाद अक्टूबर माह में महज 88.43 लाख रुपए मंडी शुल्क के रूप में व्यापारियों द्वारा जमा किए गए. ऐसे में अलवर मंडी 564.57 लाख रुपए घाटे में रही. इसी तरह से अब तक की बात करें तो 2019-20 में 2976.10 लाख रुपए मंडी शुल्क व्यापारियों द्वारा दिया गया. 2020-21 में यह घटकर 2368.17 लाख रह गया. ऐसे में 607.95 लाख रुपए की गिरावट मंडी शुल्क में रही.
पढ़ें -कृषि मंडियां गुलजार, लेकिन अब भी अधूरे हैं धरती पुत्रों के अरमान
ऐसा रहा तो बंद हो जाएंगी मंडियां
व्यापारियों की मानें तो नए कृषि कानून के चलते फसल बिकने के लिए मंडियों में नहीं आ रही हैं. मंडी में किसान को टैक्स देना पड़ता है, जबकि बाहर सरकार की तरफ से कोई टैक्स नहीं लिया जा रहा. व्यापारियों का कहना है कि यही हालात रहे तो आने वाले समय में मंडियां पूरी तरह से बंद हो जाएंगी. सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है. कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा यह कानून बनाया है. इस कानून से आम आदमी वे व्यापारी सभी परेशान हैं. व्यापारियों ने कहा कि पूरे देश में किसान नई मंडी कानून का विरोध कर रहा है. कुछ समय पहले व्यापारियों द्वारा भी मंडियों को बंद रखा गया था. लगातार इस संबंध में प्रशासन को ज्ञापन दिए गए.