अलवर.सरिस्का का जंगल हमेशा से ही शिकारियों के निशाने पर रहा है. आए दिन यहां शिकार के मामले आते रहे हैं. सर्दी के दौरान कोहरे और ठंड का फायदा उठाकर रात के समय शिकारी (Sariska management made strategy) जंगल में शिकार की घटनाओं को अंजाम देते हैं. ऐसे में सरिस्का प्रशासन की ओर से शिकार को रोकने के लिए रात के समय गश्त बढ़ा दी गई है. साथ ही जंगल में प्रवेश के सभी अवैध रास्तों को बंद करते हुए जिन क्षेत्रों से शिकार के मामले सामने आते हैं, उन जगहों को चिन्हित करने का काम भी किया गया है.
करीब 886 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला सरिस्का का जंगल घना व खूबसूरत है. जंगल के बीचों बीच अलवर-जयपुर सड़क मार्ग गुजरता है. लिहाजा यहां लोगों की आवाजाही बनी (Sariska gets more cameras) रहती है. साथ ही जंगल क्षेत्रों में अभी भी गांव बसे हुए हैं. यही कारण है कि गांव के लोग रोजमर्रा की चीजों के लिए शहर की ओर जाते हैं. ऐसे में जंगल के घने क्षेत्र में भी लोगों की आवाजाही बनी रहती है. जिसका सीधा असर वन्यजीवों पर पड़ता है. साथ ही यहां शिकार का खतरा भी बना रहता है.
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सरिस्का का जंगल शिकारियों के लिए हमेशा से ही आसान व पसंदीदा जगह रहा है. 2005 में सरिस्का बाघ विहीन हो गया था. इसके अलावा आए दिन नीलगाय, जंगली सूअर, तीतर, हिरण और बारहसिंघा के शिकार के मामले भी सामने आते रहे हैं. सर्दी के मौसम में रात के समय कोहरे का फायदा उठाकर अक्सर शिकारी जंगल में शिकार करने की कोशिश करते रहते हैं. ऐसे में सरिस्का प्रशासन की तरफ से शिकार की घटनाओं को रोकने के लिए रात के समय गश्त की व्यवस्था में बदलाव किए गए हैं.