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Special: अलवर में सरकारी योजनाओं का पलीता, अस्पताल के बजाय घरों पर हो रही डिलीवरी

स्वास्थ्य विभाग के अनुसार घर पर प्रसव को बिल्कुल सुरक्षित नहीं माना जाता है. इसलिए सरकार संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है लेकिन उसके बाद भी अलवर जिले के हालात खराब हैं. जिले में घर पर डिलीवरी के आंकड़े चौंकाते हैं. ये आंकड़े दावों और प्रसव से जुड़े सारी योजनाओं के धरातल पर पोल खोल रहे हैं. पढ़िए ये स्पेशल खबर....

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Published : Jan 9, 2021, 11:55 AM IST

Alwar hindi news, अलवर में घर पर प्रसव
अलवर में घर पर हो रहे प्रसव

अलवर.देश में मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए सरकारें कई योजनाएं चला रही है. जिसके सकरात्मक परिणाम धीरे-धीरे दिखने लगे हैं. एक तरफ सरकार प्रसव के दौरान मां की मौत को कम करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है. वहीं अलवर स्वास्थ्य विभाग की तरफ से बेहतर इलाज और सुविधाएं देने के दावे किए जाते हैं लेकिन अलवर में स्वास्थ्य विभाग की बदहाली का नतीजा है कि आज भी जिले में संस्थागत प्रसव के बजाय घर पर प्रसव हो रहे हैं.

अलवर में घर पर हो रहे प्रसव

स्वास्थ्य विभाग के हिसाब से अलवर जिला राजस्थान में जयपुर के बाद बड़ा जिला है. अलवर में 36 सीएचसी, 122 पीएचसी, 600 से अधिक सब सेंटर है. इसके अलावा दो सैटेलाइट अस्पताल, शहरी डिस्पेंसरी, जिला अस्पताल सहित अन्य कई तरह की सुविधाएं हैं लेकिन मॉनिटरिंग की कमी के चलते स्वास्थ्य विभाग का पूरा सिस्टम फेल हो गया है. ऐसे में साफ है कि जिले के हालात खराब हैं.

स्वास्थ्य विभाग के दावे केवल सरकारी आदेशों तक सिमट कर रह गए हैं. जिले में कई पीएचसी ऐसी हैं, जिनमें 8 महीने में एक भी डिलीवरी नहीं हुई. सरकारी लचर व्यवस्था के चलते ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं को आए दिन परेशानी उठानी पड़ती है.

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सरकारी अस्पतालों का हाल बेहाल

सरकारी अस्पतालों के हालात खराब है. अस्पतालों में भर्ती प्रसुताओं को गद्दे तक नहीं मिल पाते हैं. अलवर के जनाना अस्पताल में प्रतिदिन 50 से अधिक प्रसव होते हैं. ये बात सामने आई है कि संसाधनों के अभाव में कई बार एक बेड पर दो प्रसुताओं को लेटना पड़ता हैं. कई बार जमीन और बेंच पर प्रसुताओं को लेटना पड़ता है. चारों तरफ वार्डों में चूहे घूमते हैं लेकिन प्रशासन का इस ओर ध्यान हीं नहीं है.

घर पर डिलीवरी के आंकड़े खोल रहे पोल

सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो 41 में से 33 पीएचसी क्षेत्र में 676 महिलाओं को संस्थागत प्रसव की सुविधा नहीं मिल पाई है. मजबूरी में इन्हें घर पर ही डिलीवरी करानी पड़ी. जिला मुख्यालय पर मुंगास्का पीएचसी क्षेत्र में और पहाड़ गढ़ के क्षेत्र में 6 डिलीवरी घर पर हुई.

घर पर हुई डिलीवरी के आंकड़े

शहरी क्षेत्र की खेड़ली सीएचसी में एक खैरथल में 7, किशनगढ़बास में दो, राजगढ़ में दो, थानागाजी में 6 डिलीवरी घर पर हुई. साथ ही भिवाड़ी में 6 डिलीवरी घर पर होने के मामले पर होने के सामने आए.

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चिकित्सा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि जिला मुख्यालय से सीएचसी और पीएचसी और उप स्वास्थ्य केंद्र तक का पूरा सिस्टम कागजी आंकड़ों में सिमट कर रह गया है. जबकि सरकार का फोकस प्रत्येक गर्भवती महिला की संस्थागत डिलीवरी पर है. इसलिए PHC और CHC के अलावा सब सेंटर पर भी डिलीवरी की सुविधा बढ़ाई जा रही है लेकिन धरातल स्तर पर हालातों में कोई सुधार नहीं है.

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बता दें कि महिला के गर्भवती होने पर आशा सहयोगिनी 12 सप्ताह में उसकी एएमसी कराएगी. प्रसव पूर्व एनसी और प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा की 7 बार जांच कराने की जिम्मेदारी आशा सहयोगिनी की है. आशा ही डिलीवरी कराने के लिए मॉनिटरिंग करेगी और उसे अस्पताल लेकर जाए की भी जिम्मेदारी है. इस पूरे सिस्टम में आशा को इंसेंटिव किया जाता है लेकिन उसके बाद भी जिले के हालात खराब है.

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इसी तरह के हालात जिले के अन्य ब्लॉक के हैं. घर में प्रसव होने का लगातार सिलसिला जारी है. स्वास्थ्य विभाग केवल योजना बनाने में लगा हुआ है. धरातलीय स्थल पर योजनाओं की मॉनिटरिंग की बेहतर व्यवस्था नहीं होने के कारण प्रसुताओं को सरकार की योजनाओं का बेहतर लाभ नहीं मिल पा रहा है.

सरकारी अस्पताल में परेशान होती हैं प्रस्तुताएं

सरकार की तरफ से प्रसुताओं को अस्पताल लाने ले जाने के लिए वाहनों की व्यवस्थाएं की गई है. प्रसव के बाद प्रस्ताव को देसी घी दिया जाता है. अगर बेटी होती है तो उसको 12वीं पास होने तक शुभ लक्ष्मी योजना के तहत 50 हजार रुपए दिए जाते हैं. इसके अलावा इलाज के दौरान सभी तरह के दवाइयां इंजेक्शन सभी निशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं लेकिन उसके बाद भी प्रसुताओं को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है.

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