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गाजे-बाजे के साथ निकाला गया ढोला मारु का स्वांग, होली के रंग में रंगे लोग - rajasthan latest hindi news

राजा महाराजाओं के समय से निकलती आ रही ढोला मारू की सवारी सोमवार को भी राजगढ़ में गाजे-बाजे के साथ गुलाल उड़ाते मस्तानों की टोली के साथ निकाली गई. सालों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन एक बार फिर से राजगढ़ में शान से हुआ. रियासत काल से होली की संध्या पर ढोला-मारू और कई तरह स्वांग निकाले जाते रहे हैं. ढोला-मारू और विभिन्न प्रकार के स्वांग का जुलूस एक बार फिर से राजगढ़ कस्बे में आकर्षण का केंद्र रहा.

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गाजे-बाजे के साथ निकाला गया ढोला मारु का स्वांग

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Published : Mar 29, 2021, 2:26 PM IST

राजगढ़ (अलवर). राजा महाराजाओं के समय से निकलती आ रही ढोला मारू की सवारी सोमवार को भी राजगढ़ में गाजे-बाजे के साथ गुलाल उड़ाते मस्तानों की टोली के साथ निकाली गई. सालों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन एक बार फिर से राजगढ़ में शान से हुआ. रियासत काल से होली की संध्या पर ढोला-मारू और कई तरह स्वांग निकाले जाते रहे हैं. ढोला-मारू और विभिन्न प्रकार के स्वांग का जुलूस एक बार फिर से राजगढ़ कस्बे में आकर्षण का केंद्र रहा.

गाजे-बाजे के साथ निकाला गया ढोला मारु का स्वांग...

ढोला मारू की सवारी को देखने के लिए शहर की सड़कों और छतों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. कस्बे के बारलाबास स्थित नामदेव समाज धर्मशाला से शुरू होकर गोविंद देव जी मंदिर, चौपड़ बाजार, अनाज मंडी, माचाड़ी चौक, मालाखेड़ा बाजार, काकवाड़ी बाजार, गोल सर्किल होते हुए बारलाबास पहुंची. रंग में रंगे होली के दीवानों के साथ ढोला मारू की सवारी निकाली गई और होली का त्योहार सांप्रदायिक सौहार्द और मस्ती के बीच मनाया गया.

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राजगढ़ में ढोला मारू की सवारी में होली के रंग में रंगे नौजवान नाचते गाते हुए जुलूस में ऊंट और घोड़ी पर बैठाकर शहर का चक्कर लगाने निकले, तो बैंड धुनों में होली के रंग में रंगे नौजवान नाचते गाते चल रहे थे. राजा महाराजाओं की नगरी रहा राजगढ़ और होली पर जुलूस के रूप में निकलने वाली ढोला मारू की सवारी सदा ही कस्बे का आकर्षण का केंद्र रहा है. भाई चारे के रूप में निकाली जाती रही है. इस जुलूस पर जगह-जगह पुष्प वर्षा के साथ स्वागत भी किया गया. ढोला मारू की सवारी अब बारलाबास समिति की ओर से निकाली जाती है. इसमें पूरे कस्बे का सहयोग होता है. पहले यह ढोला-मारू महोत्सव का तीन दिवसीय कार्यक्रम होता था, जिसमें प्रथम दिन चाक का कार्यक्रम किया जाता था. जिसमें केवल पुरुष ही भाग लेते थे. समय के साथ अब यह एक दिवसीय ही ढोला मारू की सवारी का रह गया है.

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