अलवर.जिले में पारसी शैली पर आधारित यह भर्तहरि नाटक शुरू हो चुका है. यह नाटक 106 साल से मंचित किया जा रहा है. नाटक के दौरान सिंहासन मंच पर चलता है, तो मंच घूमता है. इसके अलावा शीश महल सहित कई विशेष आकर्षण नाटक के दौरान होते हैं. पूरे देश में केवल अलवर में भर्तहरि नाटक का मंचन होता है. यह नाटक 16 दिनों तक चलता है. प्रतिदिन एक जैसे नाटक का मंचन होता है. नाटक देखने के लिए राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित देश के अलग-अलग शहरों से लोग यहां आते हैं.
राजर्षि अभय समाज के रंगमंच पर आयोजित किया जाने वाला महाराजा भर्तृहरि नाटक पूरे भारत में पारसी शैली को जीवित रखे हुए है. एक ही मंच पर लगातार यह नाटक 16 दिनों तक चलता है. पारसी शैली के इस नाटक में कलाकारों के भारी भरकम मेकअप, भारी श्रृंगार, कलाकारों का तेज आवाज में डायलॉग बोलना, पर्दों का ऊपर नीचे चढ़ना एवं महिलाओं का अभिनय पुरुषों की ओर से किया जाता है. लेकिन अब समय के साथ कुछ बदलाव होने लगा है और महिला पात्र भी देर रात तक अभिनय करती हैं. इस रंगमंच पर नाटक के 1000 से ज्यादा मंचन हो चुके हैं. रोज एक जैसा नाटक 7 घंटे तक देखकर लोग न तो थकते हैं और न ही बोर होते हैं. खासियत है कि हर दिन वो नए रूप में दिखाई देता है.
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उज्जैन के राजा भर्तृहरि ने अलवर में आकर ही तपस्या की थी और यहीं समाधि ली थी. उन्हीं के जीवन पर आधारित यह नाटक दशहरे के दो दिन बाद शुरू होता (Bhartrihari Drama in Alwar on Dussehra) है. देश में पारसियों की यह शैली खुद पारसी भूल गए हैं. कहीं भी इस शैली के थियेटर नहीं हैं और न ही इस शैली में नाटक मंचित हो रहे हैं. देश का राजर्षि अभय समाज एकमात्र रंगमंच है जो इस शैली को जीवित रखे हुए है. इसी शैली के कारण इस रंगमंच पर ऐसे पर्दे लगे हुए हैं, जो ऊपरी से नीचे की ओर गिरते हैं. इनका वजन 400 से 500 किलो तक है, जिन्हें खाेलने के लिए ऊपर खींचते वक्त दोनों ओर चार-चार लोगों का उपयोग किया जाता है.