अलवर.जिले में हर साल भरने वाला भर्तृहरि और पांडुपोल का मेला इस बार कोरोना के चलते नहीं भरेगा. कोरोना संक्रमण की वजह से जिले भर में सभी धार्मिक स्थल 31 अगस्त तक पूरी तरह से बंद है. ऐसे में सालों से चली आ रही मेले की परंपरा इस बार कोरोना के कारण टूट जाएगी.
अलवर में सालों से हर बार सरिस्का क्षेत्र में बने हनुमानजी के मंदिर पांडुपोल धाम में मेला लगता है. वहीं भर्तृहरि धाम में भी मेले का आयोजन होता है. इन मेलों में राजस्थान हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश सहित आसपास के कई राज्यों से लाखों लोग भगवान के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. दोनों ही मेले वैसे तो ग्रामीण परिवेश के हैं लेकिन उसके बाद भी सभी जाति, धर्म और क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में मेले में हिस्सा लेते हैं. भर्तृहरि और पांडुपोल का मेला एक साथ भरता है.
पांडुपोल और भर्तृहरि का खास महत्व
कहते हैं कि पांडुपोल में पांडवों ने अज्ञातवास गुजारा था. इस दौरान हनुमान जी ने भीम का घमंड तोड़ने के लिए वानर रूप धारण किया. वे पांडुपोल में मंदिर के स्थान पर आकर लेट गए. जिससे पांडवों का रास्ता अवरुद्ध हो जाए. वहीं भीम हनुमानजी की पूंछ हटाकर आगे नहीं बढ़ पाए. उसके बाद जिस स्थान पर हनुमान लेटे थे, उसे पांडुपोल हनुमान जी के स्थान के नाम से जाना जाता है. भर्तृहरि धाम में उज्जैन के महाराज भर्तृहरि ने तपस्या की थी. उसके बाद समाधि ली थी. इसलिए दोनों ही स्थान का खास महत्व है.
मेले की होती थी एक महीने पहले से तैयारी
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष भर्तृहरि भाद्र शुक्ल पक्ष अष्टमी को भरता है. राजस्थान सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री सहित बड़ी संख्या में लोग अपनी मुराद मांगने के लिए यहां आते हैं. ग्रामीण बाबा भर्तृहरि के प्रति आस्था होने के कारण दुधारू पशुओं के दूध का भोग लगाकर पकवान बनाते हैं. इस दौरान घर-घर में अखंड ज्योत जलाकर अष्टमी की पूजा-अर्चना होती है.