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Special: भपंग को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान, शिवभक्त है यूसुफ खान का परिवार - शिवभक्त है यूसुफ खान मेवाती का परिवार

राजस्थान का अलवर वैसे ही गीत-संगीत के लिए विख्यात है. इसमें भी अगर अनोखे वाद्य यंत्र भपंग का नाम आता है, तो खुद ब खुद यूसुफ खान मेवाती के परिवार का नाम जुबां पर आ जाता है. शिवभक्त इस परिवार ने डमरू रूपी वाद्ययंत्र भपंग को देश-विदेश में खास पहचान दिलाई है.

Gave international recognition to Bhapang
भपंग को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान, शिवभक्त है यूसुफ खान का परिवार

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Published : Apr 26, 2023, 6:22 PM IST

भपंग को दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान, शिवभक्त है यूसुफ खान का परिवार

अलवर. भपंग का नाम आते ही अलवर के एक ही परिवार की याद आती है. अलवर का यह परिवार तीन पीढ़ियों से भपंग वादन का कार्य कर रहा है. यह परिवार अब तक 40 से ज्यादा देशों में भपंग वादन कर चुका है. इस परिवार को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं. अलवर शहर के मूंगस्का निवासी भपंग वादक यूसुफ खान मेवाती छोटी सी उम्र से ही भपंग वादन कर रहे हैं. यह कला उन्हें पिता से विरासत में मिली थी.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंच चुकी है भपंग की गूंजःभपंग वादन की कला इनके खून में रची-बसी है. इनके दादा जहूर खां राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भपंग की गूंज को पहुंचा चुके हैं. उनके पिता उमर फारूख मेवाती 44 देशों में भपंग वादन कर चुके हैं. यूसुफ कहते हैं कि उनके पिता कई फिल्मों में भी भपंग बजा चुके हैं. अंतरराष्ट्रीय भपंग वादक यूसुफ पिता से मिली कला को आगे बढ़ा रहे हैं. यूसुफ ने पिता की कला को आगे बढ़ाने के लिए अपनी इंजीनियरिंग की जॉब को छोड़ दिया था. उन्होंने देश के प्रतिष्ठित मंचों पर भपंग वादन की कला को पहुंचाया. युसूफ खान मेवाती को भी कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिल चुके हैं. करीब 20 से 22 देशों में भपंग वादन अभी तक वह कर चुके हैं.

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भपंग की धुन में मस्त हो जाते हैं लोगः ईटीवी भारत से बात करते हुए यूसुफ ने बताया कि देश दुनिया में जब भपंग की बात आती है, तो सबसे पहले उनके परिवार का नाम आता है. उनके पिता व दादा भपंग वादन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खास पहचान रखते थे. भपंग को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक विशेष पहचान दिलवाने में उनकी खास अहमियत रही. पहले लोग इस वाद्य यंत्र को नहीं जानते थे. जब वो लोग भपंग को बजाते थे, तो लोग उसकी आवाज व भपंग की धुन में मस्त हो जाते थे. भपंग की धुन पर लोग झूमने लगते हैं व उसके साथ सुरताल लगाते हैं. भपंग वादन अन्य वाद्य यंत्रों से बिल्कुल अलग है. इसको बजाना भी एक तरह की कला होती है. मेवात में भपंग वादन को पसंद किया जाता है व लोग इसके दीवाने हैं.

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भगवान शिव का उपासक है पूरा परिवारः युसूफ खान मेवाती ने सन् 1998 से भपंग सीखना शुरू किया था. वैसे तो बड़े-बड़े देशों में जाकर भपंग वादन कर चुके हैं. इसके बाद भी आज भी युसूफ दिन में 2 से 3 घंटे भपग का अभ्यास करते हैं. यूनुस ने कहा कि उनका पूरा परिवार भगवान शिव का उपासक हैं. शिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. यूसुफ ने कहा कि भपंग भगवान शिव के डमरू का एक रूप है. मेवात क्षेत्र में उनके दादा ने इस वाद्य यंत्र को सबसे पहले बजाया. इसके लिए उनको देश-विदेश में खास पहचान मिली. भपंग राजस्थान का लोक यंत्र है. वैसे तो राजस्थान के जैसलमेर बाड़मेर सहित कई हिस्सों में लोग भपंग जाते हैं, लेकिन मेवात में केवल यूसुफ है. उसका परिवार ही भपंग वादन करता है. यूसुफ ने कहा कि उनके परिवार में वो 21वीं पीढ़ी हैं, जो संगीत व गाने बजाने के कार्य में हैं. उनका बेटा व अन्य लोग भी इसी कारोबार से जुड़े हुए हैं. वो अपनी इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर लोक कला में आए और अब वो अपने इस पेशे से खासे खुश हैं.

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