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अलवर में श्रमिकों को नहीं दी जा रही तनख्वाह, भूख से बिलखता 'मजदूर' कानून तोड़ने पर मजबूर

तनख्वाह नहीं मिलने के कारण अलवर में मजदूर भूख से इतने बेबस और लाचार हो चुके है कि सभी नियमों को ताक पर रखकर बस पेट की आग बुझाने की जुगत में लगे हैं. फिर क्या लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के नियम. पढ़े पूरी खबर...

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भिवाड़ी में मजदूरों को नहीं दी जा रही सैलरी

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Published : May 12, 2020, 2:12 PM IST

भिवाड़ी (अलवर). कस्बे में लॉकडाउन के चलते कुछ श्रमिक अब भूखे मरने की कगार पर पहुंच चुके हैं. जो दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर हैं. क्योंकि सवाल अब पापी पेट का है तो नियमों पर भूख भारी पड़ रही है. ऐसे में यह श्रमिक सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को तोड़ने के लिए मजबूर हो चुके हैं.

भिवाड़ी में मजदूरों को नहीं दी जा रही सैलरी

दरअसल, भिवाड़ी के फेज वन स्थित उद्योग इलाके में काम करने वाले मजदूरों को सैलरी नहीं दी जा रही है. जिसके विरोध में इन श्रमिकों ने उद्योग इकाई के सामने एकत्र होकर प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और तनख्वाह देने की मांग रखी. हंगामे के बाद सभी श्रमिक एक कतार में चलते हुए फूलबाग थाने पहुंचे. लेकिन वहां से पुलिस प्रशासन ने उन्हें उल्टे पैर वापस भेज दिया.

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लंबी कतार बनाकर प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंचे श्रमिक

कंपनी नहीं दे रही तनख्वाह

श्रमिकों का कहना है कि वह लंबे समय से इस इकाई में काम कर रहे हैं. लेकिन अब बुरे वक्त में इस कंपनी ने भी उनका साथ छोड़ दिया है. श्रमिकों ने यह भी बताया कि उन्हें मार्च महीने की सैलरी तो मिल गई. लेकिन उसके बाद अप्रैल की पेमेंट नहीं दी गई है. एक महीने की तनख्वाह से जैसे-तैसे करके चला लिया. लेकिन अब मई का महीना आ चुका है. ऐसे में सारे पैसे खत्म हो चुके हैं और अब खाने के लाले पड़ गए हैं.

वहीं कुछ मजदूरों का कहना है कि उन्हें तो मकान मालिकों ने घर से बाहर निकालने को ही कह दिया है, क्योंकि हमने किराया नहीं दिया है. ऐसे में हमें जिस कंपनी से उम्मीद थी. उसने भी हाथ पीछे कर दिेए हैं.

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गौरतलब है कि लॉकडाउन के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि जो जहां है, वहीं रहे और उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों को वेतन भी दिया जाए. लेकिन इसकी पालना भिवाड़ी में होती हुई नजर नहीं आ रही है.

इस संबंध में तिजारा उपखंड अधिकारी खेमाराम यादव का कहना है कि जल्द ही वह उद्योगपतियों के साथ एक बैठक करने जा रहे हैं. बैठक में यह तय हो सकेगा की आखिर श्रमिकों को सैलरी क्यों नहीं दी जा रही है. अगर पूरी सैलरी भी नहीं दी जा सकती तो कम से कम खाने के लिए तो पैसे दिए ही जाने चाहिए.

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