अजमेर. समय से पहले बच्चे का जन्म होना एक गंभीर समस्या है. राजस्थान में प्रीमैच्योर डिलीवरी के मामले पहले की तुलना में काफी कम हुए हैं, लेकिन अभी भी प्रीमैच्योर डिलीवरी के आंकड़ों को कम नहीं आंका जा सकता. निर्धारित अवधि से पहले शिशु के जन्म होने से नवजात शिशु का शारीरिक और मानसिक रूप से विकास नहीं हो पाता. ऐसे शिशुओं की केयर भी एक बड़ी चुनौती रहती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से 17 अक्टूबर को वर्ल्ड प्रीमैच्योरिटी डे मनाया जाता है. जानते हैं गायनिक डॉ. चारू शर्मा से प्रीमैच्योर डिलीवरी के कारण और इसकी रोकथाम के लिए हेल्थ टिप्स.
पुष्कर के सरकारी अस्पताल में गायनिक डॉ. चारू शर्मा ने बताया कि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के लिए 17 नवंबर को वर्ल्ड प्रीमैच्योर डे मनाया जाता है. डॉ शर्मा ने बताया कि देश में हर वर्ष लाखों बच्चों का जन्म अवधि से पहले ही हो जाता है. सामान्यतः बच्चे के जन्म की अवधि 9 माह की होती है. 9 माह में पैदा होने वाले शिशु स्वस्थ होते हैं और उनका शारीरिक और मानसिक रूप से विकास हुआ होता है, लेकिन समय से पहले जन्म लेने वाले शिशु शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं, इसलिए उनकी देखभाल भी विशेष तरीके से करनी होती है. उन्होंने बताया कि राजस्थान में प्रीमैच्योर डिलीवरी के मामले काफी अधिक हुआ करते थे, लेकिन अब उनमें काफी कमी आई है.
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प्रीमैच्योर डिलीवरी के ये हैं कारण : डॉ. चारू शर्मा बताती हैं कि प्रीमैच्योर डिलीवरी का सबसे बड़ा कारण गर्भवती महिला में खून की कमी (एनीमिया) है. कम उम्र की महिलाएं जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं, उनमें समय से पहले प्रसव होने के ज्यादा चांस रहते हैं. बच्चे का जिंदा रहना जरूरी है, लेकिन उससे कई ज्यादा जरूरी है कि उसके शरीर का विकास हो अन्यथा आगे चलकर ज्यादा बड़ी समस्या भी हो सकती है. प्रीमैच्योर डिलीवरी का सबसे बड़ा कारण महिला में न्यूट्रीशन्स की कमी है. गर्भवती महिला में अगर आयरन की कमी होती है तो ऐसी महिलाओं को चिन्हित कर उनमें इस कमी को दूर किया जाए. बेहतर खानपान और चिकित्सक की सलाह से दवाइयों के माध्यम से भी खून की कमी को दूर किया जा सकता है. इसके अलावा इन्फेक्शन भी प्रीमैच्योर डिलीवरी का एक कारण है. इंफेक्शन होने पर तुरंत उपचार लेना चाहिए. इसके लिए आवश्यक है कि गर्भवती महिला समय-समय पर अस्पताल जाकर चिकित्सक से परामर्श लेती रहें.