अजमेर. हर शहर का अपना मिजाज और तहजीब होती है. धार्मिक नगरी अजमेर में कई धर्म-जाति समाज के लोग रहते हैं. साथ ही यहां के जायके में भी गंगा-जमुनी तहजीब महसूस की जा सकती है. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती दरगाह में हजारों जायरीन हर रोज अजमेर आते हैं और यहां के जायके का भी आनंद लेते हैं. अजमेर में कई तरह के खाद्य व्यंजन हैं, जो जायरीन और पर्यटकों को लुभाते हैं. इनमें से एक है कराची हलवा. विभाजन के समय से पहले यह मिठाई पाकिस्तान में बना करती थी, लेकिन 1947 के बाद से कराची का हलवा अजमेर के जायके में शुमार हो गया. वैसे तो गुजरात, मुम्बई और कुछ अन्य राज्यों में भी कराची हलवा मिलता है, लेकिन अजमेर के कराची हलवे की बात ही कुछ और है.
सिंधी व्यंजनों में शामिल है कराची हलवा :सन 1947 में भारत-पाक विभाजन के समय बड़ी संख्या में पाकिस्तान से सिंधी समाज भारत आ गए थे. इनमें से कई ऐसे सिंधी परिवार थे जो पाकिस्तान में भी मिठाई का कारोबार किया करते थे. उन्हीं में से कुछ परिवारों ने भारत आकर भी उन सभी मिठाइयों को बनाना जारी रखा जो सिंधी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा हैं. अजमेर में सिंधी समाज में होने वाली शादियों में आज भी बहन-बेटियों को सिंधी मिठाइयां दी जाती हैं. इसमें कराची हलवा भी शामिल है. अजमेर शहर में बड़ी संख्या में सिंधी समाज के लोग रहते हैं. वह अपने दूर रिश्तेदारों को भी यहां का कराची हलवा भेजते हैं.
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गुजरात के नोसारी के रहने वाले किशोर भाई लालवानी बताते हैं कि वह जब भी अजमेर अपने ससुराल आते हैं तो सिंधी मिठाइयों के साथ ही कराची हलवा का स्वाद लेना नहीं भूलते हैं. कराची हलवा उन्हें पसंद है. वह हमेशा अपने साथ कराची हलवा लेकर जाते हैं. लालवानी बताते हैं कि रिश्तेदारों और घर पर भी कराची हलवा सबको पसंद आता है. खासकर बच्चों की तो विशेष डिमांड रहती है कि अजमेर से कराची हलवा जरूर लाएं. स्थानीय निवासी मीना बताती हैं कि वो 10 वर्षों से वो कराची हलवा खरीद रही हैं. सिंधी समाज में बेटियों की सगाई और शादी में कराची हलवा मिठाई के तौर पर दिया जाता है. दूरदराज रहने वाले रिश्तेदार भी कराची हलवा भेजने की फरमाइश करते रहते हैं. उन्होंने बताया कि यह मिठाई पाकिस्तान में ईजाद हुई थी, लेकिन अब यह यहीं का जायका बन चुकी है.