अजमेर. जिले भर में लगातार बढ़ रही आवारा श्वानों की संख्या से आमजन चिंतित हैं, लेकिन नगर निगम नहीं. एक अनुमान के मुताबिक अजमेर में आवारा श्वानों की संख्या 50 हजार से ज्यादा है. लेकिन इसका सही आंकड़ा देने से नगर निगम कतरा रहा है.
इस संबंध में जब अजमेर नगर निगम के उपायुक्त गजेंद्र सिंह रलावता से ईटीवी भारत ने बात करनी चाही, तो उन्होंने ऑन कैमरा कुछ भी बोलने से साफ इनकार कर दिया. आवारा श्वानों की बढ़ती संख्या से खतरा भी बढ़ता जा रहा है. अक्सर भूख प्यास और तेज धूप के चलते आवारा श्वान चिड़चिड़े हो जाते हैं. जिनके आतंक का शिकार हो जाते हैं आम लोग, जो उनके पास से गुजर रहे होते हैं.
आवारा श्वान आप को अजमेर की सड़कों पर घूमते नजर आ जाएंगे. इनमें से कितनों को रेबीज सहित आवश्यक टीके लगे हैं या नहीं इसका पता किसी को नहीं है. ये तो सभी को मालूम है कि श्वान, बंदर या अन्य जानवर के काटने से इंसान या किसी भी पशु को रेबीज होता है. इसके कारण वॉयरस की चपेट में आया व्यक्ति या जानवर पागल हो जाता है. जिसके बाद उसकी मौत तक हो जाती है.
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एक तो कोरोना काल ऊपर से अजमेर में बढ़ते आवारा श्वानों की संख्या ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा रखी है. आवारा पशुओं को पकड़ने का कार्य नगर निगम का है. जिसमें निगम गायों को तो पकड़ ले जाती है, लेकिन श्वानों के समय निगम के कार्य की गति कुछ धीमी दिखाई देती है.
आवारा श्वानों से बढ़ा रहे परेशानी इसी बीच अजमेर की एक सामाजिक संस्था टोल्फा (TOLFA) शिकायत मिलने पर आवारा श्वानों के इलाज और नसबंदी जैसे कार्य को पूरा कर रही है. लेकिन इस संस्था को भी खर्च के लिए दानदाताओं पर निर्भर रहना पड़ता है. सरकार भी कुछ मदद करती है, लेकिन वो महज खानापूर्ती है.
टोल्फा के प्रवक्ता प्रवीण कुमार बताते हैं कि अजमेर में पुष्कर से रोज लगभग 40 से 50 जानवर अस्पताल में लाए जा रहे हैं. जिन्हें पूरा इलाज दिया जा रहा है और ठीक होने के बाद श्वानों को सही स्थान पर छोड़ दिया जाता है. टोल्फा के चिकित्सक डॉ. आफताब ने बताया कि आवारा पशुओं की नसबंदी जरूरी है, अन्यथा यह आमजन को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं.
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पशु चिकित्सा विभाग के डॉ. प्रफुल्ल में जानकारी देते हुए बताया कि श्वानों के काटने के मामलों में लगातार अब गिरावट आई है. एंटी रेबीज वैक्सीन लगाने से अगर आवारा श्वान किसी को काटता भी है, तो ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता. वहीं, नगर निगम द्वारा TOLFA के साथ मिलकर एबीसी कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है. जिसमें आवारा श्वानों की नसबंदी और रेबीज के लिए वैक्सीन लगाई जाती है.
इन आंकड़ों पर एक नजर...
- 2005 से 49 हजार 438 जानवर रेस्क्यू प्रोजेक्ट के जरिए एडमिट किए जा चुके हैं.
- 2019 में लगभग 6000 जानवरों को रेस्क्यू किया जा चुका है.
- पिछले 15 साल में 26667 आवारा श्वानों को लेकर एबीसी ऑपरेशन किए जा चुके हैं. जिनमें 32433 को एंटी रेबीज वैक्सीन भी दिया है. जिसमें अधिकतर श्वान अजमेर, पुष्कर, किशनगढ़, जैसलमेर और बीकानेर के थे.
- 2019 में 2574 एबीसी ऑपरेशन किए गए. जिन्में 2938 आवारा श्वानों को एंटी रेबीज वैक्सीन दी गई.
- जनवरी से जुलाई 2020 तक लगभग 2720 स्ट्रीट एनिमल रेस्क्यू किए गए. 897 आवारा श्वानों के ऑपरेशन किए गए. जिसमें 1060 को एंटी रेबीज वैक्सीन दी गई.
कैसे फैलता है रेबीज
रेबीज एक वॉयरस है, जो कुत्तों, बंदरों एवं अन्य कई जानवारों के काटने से फैलता है. यह जानवर की लार में सम्मिलित होता है. जब रेबीज युक्त जानवर किसी व्यक्ति या पशु को काटता है तो लार के जरिए ये वॉयरस व्यक्ति और पशु में फैल जाता है.