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SPECIAL: कोरोना में नसीराबाद के 'रोट कचौरा' का स्वाद फीका, बिक्री में भारी कमी - ईटीवी भारत हिन्दी न्यूज

अजमेर के नसीरबाद में रोट कचौरा अपने जायके और अनूठे स्वाद के लिए प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में प्रसिद्ध है. लेकिन कोरोना काल में नसीराबाद के रोट कचौरा पर इसका व्यापक असर देखने को मिल रहा है. इस कचौरे को खाने के लिए दूर-दराज से लोग आते थे.

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'रोट कचौरा' की बिक्री में भारी कमी

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Published : Jun 20, 2020, 7:56 PM IST

नसीराबाद (अजमेर).जिले के नसीराबाद में रोट कचौरा अपने जायके और अनूठे स्वाद के लिए प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में प्रसिद्ध है. मगर देश और प्रदेश में कोरोना वायरस के महामारी के चलते आम लोग अब बाहर का खाने से परहेज कर रहे हैं. जिसका असर नसीराबाद के इस रोट कचौरा पर भी पड़ा है.

बता दें कि नसीराबाद के इस कचौरे की खास बात यह है कि इसका साइज करीब 1 फीट का होता है और यह वजन के हिसाब से मिलता है. एक पूरा कचौरा जो की करीब 800 ग्राम के लगभग होता है और 200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिलता है. इसे आप किसी भी हालत में पूरा नहीं खा सकते है. क्योंकि एक व्यक्ति कभी एक कचौरा नहीं खा सकता है. खास बात यह है कि कई प्रसिद्ध हस्तियों ने भी इस कचौरे का स्वाद चखा हैं.

'रोट कचौरा' की बिक्री में भारी कमी

70 साल से बनाया जा रहा रोट कचौरा

करीब 70 साल पहले आगरा से आए प्यारेलाल हलवाई ने कचौरे की शुरुआत की थी. इसके बाद मोहनलाल अग्रवाल हलवाई और हीरालाल यादव हलवाई ने कचौरे के नाम को आगे बढ़ाया, लेकिन तब तक यह कचौरा नसीराबाद तक ही सीमित था. इसके बाद 50 वर्षों से चवन्नी लाल गुर्जर हलवाई द्वारा बनाया जा रहा कचौरा दिनों दिन लोकप्रियता को बढ़ा रहा है. नसीराबाद में पांच बत्ती चौराहे के निकट स्थित चवन्नी लाल हलवाई के यहां बने रोट कचौरे को लेने के लिए हर दिन भीड़ लगी रहती है.

नसीराबाद की पहचान है रोट कचौरा

इस क्षेत्र से गुजरने वाला यहां के बने रोट कचौरे लेना नहीं भूलता. इसके साथ ही धीरे-धीरे इनके यहां का बना रोट कचौरा नसीराबाद की पहचान और शान बन गया है. कस्बे वासी अपने देश और विदेशों में रहने वाले रिश्तेदारों को यहां का कचौरा भेजना नहीं भूलते है. इसके साथ ही दूर-दराज के रहने वाले रिश्तेदारों और परिचितों की पहली मांग ही रोट कचौरा बनती चली आ रही है.

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नसीराबाद में यहां दाल और आलू के रोट कचौरे को खरीदने के लिए सुबह 8 बजे बाद से ही लोगों की भारी भीड़ जमा हो जाती थी और यह सिलसिला दोपहर 2 बजे तक जारी रहता था. अब हालात यहां तक पहुंच गई है कि उनकी दुकान के बाहर खड़े वाहनों से जाम जैसे हालात पैदा हो जाते है. हालांकि नसीराबाद में रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड सहित कस्बे की कुछ दुकानों और ठेलों पर भी कचौरा बनता है. जोकि काफी तादाद में बिकता है.

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