पुष्कर (अजमेर).अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले में ऊंटों की कम होती आवक और अन्य समस्याओं के निदान के लिए ऊंट पालक सरकार की ओर देख रहे हैं. ऊंट पालकों ने 6 नवम्बर तक सरकार उनकी समस्याओं से छुटकारा दिलाने का समय देते हुए अल्टीमेटम दिया था कि समस्याए खत्म नहीं हुईं तो ऊंट पालक अपने ऊंट एसडीएम कार्यालय में छोड़ जाएंगे.
पुष्कर मेला 2019, ऊंट को राज्य पशु का दर्जा पशुपालकों को दे रहा दर्द पुष्कर मेले में आए ऊंट पालकों को यहां कोई खास लाभ नहीं हो रहा है. बल्कि यहां आकर उन्हें काफी नुकसान हुआ है. मेले में ऊंटों के खरीदार नहीं आ रहे हैं और जो खरीदार आ रहे हैं वो ऊंटों की कीमत 500 रुपए से 3 हजार रुपए तक लगा रहे हैं. मेले में पहली बार रेबारी समाज के लोग मादा ऊंट लेकर पहुंचे हैं. जबकि मान्यता है कि रेबारी समाज अपनी जाति के अलावा मादा ऊंट किसी को नहीं बेचते.
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साल 2016 में ऊंट को राज्य पशु घोषित किया गया था, जिसके बाद ऊंटों के दाम कोड़ियों के हो गए. इसका सबसे बड़ा कारण ऊंट के राज्य पशु घोषित होने के बाद उसके अन्य राज्यों में बिक्री कर ले जाए जाने पर प्रतिबंध रहा है. यही वजह है कि सदियों से ऊंट पालन के व्यवसाय को बचाने के लिए उष्ट्र पालक अब एकजुट हो चुके हैं. अल्टीमेटम देने के बाद बुधवार को सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर पशुपालन विभाग के निदेशक शैलेश शर्मा ने अधिकारियों के साथ ऊंट पालकों से उनकी समस्या पर चर्चा की. साथ ही सरकार को देने के लिए रिपोर्ट भी तैयार की.
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मेला क्षेत्र में लामबंद हुए ऊंट पालकों की समस्या का मुद्दा अब राजनीतिक रंग भी ले चुका है. मारवाड़ जंक्शन के विधायक खुशवीर सिंह जोजावर ने पशुपालकों के बीच पहुंचकर सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर आए पशुपालन विभाग के निदेशक शैलेश शर्मा को पशुपालकों की समस्या से संबंधित सभी सुझाव दिए. विधायक खुशवीर सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि ऊंट पालकों की समस्या का सरकार जल्द हल निकाल लेगी, ऐसा उन्हें विश्वास है. उन्होंने कहा कि ऊंट पालकों ने तय किया है कि 12 नवंबर तक यदि उन्हें सकारात्मक आश्वासन मिल जाता है तो ठीक है. वरना वे जिला मुख्यालय पर ऊंट लेकर अपना डेरा डालेंगे.
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ऊंट पालकों का नेतृत्व कर रहे रेबारी समाज के संत राम रघुनाथ ने बताया कि राज्य के बाहर ऊंट ले जाने पर पाबंदी को हटाया जाए. इसके लिए सरकार कानून में बदलाव करें. उन्होंने बताया कि ऊंटों के खरीदार नहीं मिलने से उनके दाम भी गिर गए हैं. जिस वजह से पशुपालक अपने ऊंट नहीं बेच पा रहे हैं. उन्होंने बताया कि राजस्थान सरकार ने ऊंट पालन के विकास के लिए 10 हजार रुपए देने की स्वीकृति प्रदान की थी, उसे पुनः शुरू किया जाए. साथ ही ऊंटों का बीमा किया जाए. उन्होंने यह भी बताया कि अन्य मवेशियों की तरह ऊंटों का इलाज, दवा और टीकाकरण निशुल्क हो. साथ ही ऊंटों के दूध के लिए कई केंद्र खोले जाएं. उन्होंने कहा कि राज्य पशु घोषित होने से ऊंट पालकों को खुशी हुई थी कि सरकार ऊंटों के पालन के लिए कई योजनाएं लेकर आएगी. लेकिन, उल्टा ऊंट पालकों को इससे नुकसान हो रहा है.
बता दें कि मेला क्षेत्र में मिट्टी के दोहन से ऊंटों को बैठाने के लिए भी पशुपालकों को खासी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. लिहाजा, एक दशक पहले पर्यटन विभाग को मेले के लिए आवंटित 500 बीघा जमीन पर सभी आवश्यक सुविधाओं के साथ अगले वर्ष मेला लगाए जाने और उसमें 200 बीघा जमीन ऊंटों के लिए आरक्षित किए जाने की भी मांग रखी गई है. अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार ऊंटों की गिरती हुई संख्या को देखते हुए ऊंट पालकों के हित में क्या निर्णय लेती है.