अजमेर.चौहान वंश की बसाई हुई अजयमेरु नगरी को राजस्थान का दिल कहा जाता है. लेकिन वक्त के साथ चौहान वंश की आखरी निशानियां भी खत्म होती जा रही हैं. अजमेर में गढ़ बिठली स्वरूप के नाम पर केवल द्वार बचा है. वहीं शहर में परकोटा और दो द्वार गायब हो चुके हैं. अंतिम हिदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और उनकी वंशजों की निशानी के तौर पर बची विरासत भी खत्म होने के कगार पर है.
चौहान वंश का गौरवशाली इतिहास रहा है. चौहान वंश में अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान रहे हैं. चौहान वंश के समय अजमेरु शक्ति केंद्र ही नहीं बल्कि वैभव और शौर्य से भी परिपूर्ण था. यहां तलवारों के दम पर चौहान राजाओं ने आक्रांताओं को मात दी थी. वहीं धर्म, ज्ञान, स्थापत्य और सभ्यता को भी आगे बढ़ाया. चौहान वंश के समय सबसे बड़ा संस्कृत विद्यालय अजमेर में था.
चौहान वंश का सूर्य अस्त होने के बाद इस विशाल संस्कृत पाठशाला को गुलाम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़ दिया और उसके स्थान पर ढाई दिन का झोपड़ा का निर्माण करवाया. अजमेर में चौहान वंश के समय की कई निशानियां हैं जो आज भी बुलंदी से खड़ी हैं. अफसोस इस बात का है कि अब यह निशानियां भी लुप्त होने के कगार पर आ चुकी हैं. इसका कारण है इन निशानियों को बचाने में हुक्मरानों ने कभी रुचि नहीं दिखाई. वहीं लोगों ने भी विरासत को खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. तारागढ़ ही नहीं बल्कि नगर के चारों और का परकोटा गायब हो गया है. परकोटे की दीवारों से पत्थर निकाल लोगों ने अपने मकान बना लिए. वर्षो से यह क्रम जारी रहा और परकोटा अब कुछ जगह पहाड़ी पर ही नजर आता है.
चौहान वंश की नगरी अजयमेरूः चौहान वंश के 23 वें शासक राजा अजयराज चौहान ने अजमेर नगर बसाया था. अजयराज ने तारागढ़ पहाड़ी पर गढ़ बिठली दुर्ग की नींव रखी थी. बताया जाता है कि सन 1112 में अजमेर नगर की स्थापना हुई थी. चौहानवंश के राजाओं ने अजयमेरु को अपनी राजधानी बनाकर रखा. अजयराज के उत्तराधिकारी अर्णोराज चौहान बजरंग गढ़ पहाड़ी और खोबरा नाथ भैरू पहाड़ी के बीच बांध बनवाकर आनासागर झील का निर्माण करवाया था.
अर्णोराज के द्वितीय पुत्र विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव के शासनकाल में सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिला. उन्होंने बिसलसर झील, डिग्गी तालाब, मलुसर तालाब और बीसलपुर नगर स्थापित किए. इनके बाद पृथ्वीराज द्वितीय ने शासन किया और फिर सोमेश्वर राजा बने. इन्होंने पुष्कर के पास बैजनाथ धाम का निर्माण और ( भगवान गंगाधारव शिव लोक) शिव मंदिर गगवाना में बनवाया. चौहान वंश के पृथ्वीराज चौहान तृतीय को ही अंतिम हिंदू सम्राट माना जाता है. चौहान के शासनकाल में उनके दरबारी कवि जयनक कश्मीरी ने लिखा है कि कृष्ण की द्वारिका, इंद्र की अमरावती और रावण की लंका भी अजयमेरु के सौंदर्यता के सम्मुख लज्जाती थी. पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली को चौहान साम्राज्य की दूसरी राजधानी बनाया. बताया जाता है कि चौहान वंश के रहते अजमेर ने कई युद्ध देखे और बल्कि चौहान राजाओं के शौर्य को भी देखा. चौहान वंश के राजाओं ने अजमेरु नगरी को सुरक्षित रखने के लिए परकोटे, बड़े द्वार और जलाशय बनवाए. चौहान वंश के राजाओं की ओर बनवाए गढ़, परकोटे सहित कई विरासत अब लुप्त होने के कगार पर है.
1400 वर्ष से भी अधिक पुराना है गढ़ बिठलीः अरावली पहाड़ी पर 2 हजार 856 फिट ऊंचाई पर स्थित तारागढ़ कभी गढ़ बिठली के नाम से जाना जाता था. बताया जाता है कि 4 दर्जन से भी ज्यादा युद्ध का गवाह तारागढ़ रहा है. आवाजाही के लिए दुर्ग के तीन प्रवेश द्वार हैं. तारागढ़ का निर्माण राजपूताना और फारसी शैली में हुआ है. 10 हजार वर्ग मीटर इलाके में दुर्ग की दिवारें फैली हुई है. तारागढ़ पर जल स्त्रोत के रूप में तीन बावड़ियां है. तीनों ही बावड़ियां दुर्दशा का शिकार हो रही है. दुर्ग का परकोटा जगह-जगह से जीर्ण शीर्ण हो चुका है. वहीं कई जगह पर ढहे परकोटे से पत्थर तक गायब हो गए हैं.