इस मंदिर में करें माता रानी के नौ रूपों के दर्शन. अजमेर.देशभर में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के असंख्य मंदिर हैं. इनमें माता के 52 शक्तिपीठ भी शामिल हैं. हर मंदिर की अपनी महिमा है. खास बात यह कि हर मंदिर में मां अपने किसी न किसी रूप में विराजी हैं. लेकिन अजमेर में एक ऐसा मंदिर है, जहां माता रानी के नौ स्वरूपों का एक साथ दर्शन होता है. ये नौ दुर्गा धाम अजमेर के नौसर पहाड़ी पर स्थित है. यहां माता के नौ सिर की प्रतिमा है. यही कारण इस मंदिर को नौसर माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि यहां नौ दुर्गा माता का स्थान सृष्टि के प्रारंभ से ही है. चलिए अब आपको नौ दुर्गा के इस अद्भुत मंदिर के इतिहास और मान्यताओं के बारे में बताते हैं.
अजमेर से पुष्कर जाने वाले मार्ग पर स्थित नौसर घाटी में ये प्राचीन नौ दुर्गा मंदिर पड़ता है. यह मंदिर नौसर माता के नाम से विख्यात है और यहां नवरात्र में मेले सा माहौल रहता है. इस मंदिर का जिक्र पदम पुराण में भी मिलता है. जिसमें इसके बारे में बताया गया है कि सृष्टि यज्ञ की रक्षा के लिए जगतपिता ब्रह्मा ने नौ दुर्गा का आह्वान किया था. यज्ञ की रक्षा के लिए माता अपने नौ रूपों के साथ नाग पहाड़ी के मुख पर विराजमान हुई. बताया जाता है कि आज भी नौसर माता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर की रक्षा करती हैं.
नौसर माता मंदिर के पीठाधीश्वर रामा कृष्ण देव बताते हैं कि माता एक शरीर में 9 मुख धारण किए हुए हैं. ऐसा अद्भुत माता का मंदिर देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में कहीं भी नहीं है. उन्होंने बताया कि जगतपिता ब्रह्मा ने जब सृष्टि यज्ञ किया था तो उससे ठीक पहले नकारात्मक शक्तियों से यज्ञ की रक्षा के लिए उन्होंने शक्ति स्वरूपा मां नौ दुर्गा की आराधना की थी. यहां माता का प्रादुर्भाव सृष्टि यज्ञ से जुड़ा हुआ है. माता का यह अति प्राचीन पवित्र धाम आज लोगों के आस्था का केंद्र है. नौसर माता हिंदू धर्म में कई जातियों की कुलदेवी भी हैं. यहां जिले या फिर राज्य से ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.
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पाषाण की नहीं मिट्टी की है नौसर माता की प्रतिमा -नौसर माता मंदिर के पीठाधीश्वर रामा कृष्ण देव बताते हैं कि चट्टान के नीचे विराजी माता के नौ सिर हैं, जो नौ दुर्गा के स्वरूप हैं. खास बात यह है कि माता की प्रतिमा पाषाण की नहीं, बल्कि मिट्टी की है. यह अपने आप में रहस्य है कि सदियां बीत जाने के बाद भी माता की प्रतिमा आज भी जस की तस है.
वनवासकाल में पांडवों ने की थी यहां शक्ति की आराधना -पदम पुराण के अनुसार सतयुग में पुष्कर अरण्य क्षेत्र में ब्रह्मा ने यज्ञ की रक्षा के लिए नागराज की जिव्हा पर नव शक्तियों को स्थापित किया था. नाग पहाड़ नाग का ही स्वरूप माना जाता है. बताया जाता है कि द्वापर युग में वनवास काल में पांडवों ने भी कुछ समय यहां नव शक्तियों की आराधना की थी. इसके बाद पाडंव ने पाण्डेश्वर महादेव की स्थापना की. बाद में पांडवों ने पुष्कर में नाग पहाड़ की तलहटी में पंचकुंड का निर्माण करवाया था, जो आज भी 5 पांडवों के नाम से जाना जाता है.
सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने भी की थी शक्ति की आराधना - 11वीं शताब्दी में पहली बार सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी से तराइन का युद्ध लड़ा था. लेकिन इस युद्ध से पहले उन्होंने राज कवि चंदबरदाई के साथ माता की आराधना की थी. इस युद्ध में सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को पराजित किया था.
औरंगजेब भी प्रतिमा को नहीं पंहुचा पाया नुकसान - बताया जाता है कि मुगलकाल में औरंगजेब ने जब हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया था, तब माता के इस मंदिर को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई थी. मंदिर को औरंगजेब की सेना ने तोड़ दिया था, लेकिन माता के नौ स्वरूप वाली प्रतिमा को औरंगजेब की सेना नुकसान नहीं पहुंचा पाई थी. इसके बाद मराठाकाल में मंदिर की पुनः स्थापना की गई. इसके बाद लंबे समय से रखरखाव के अभाव में मंदिर जीर्ण शीर्ण होता चला गया.
131 वर्ष पहले हुआ मंदिर का जीर्णोद्धार -131 साल पहले संत बुधकरण महाराज ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. पहाड़ी के पास कोई जगह नहीं थी. ऐसे में संत बुधकरण के लिए मंदिर का जीर्णोद्धार करवाना भी मुश्किल था. तब माता ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मंदिर के नीचे विशाल पत्थर है, जिसे हटाने पर पर्याप्त जल मिलेगा. संत बुधकरण ने माता के आदेश से उस विशाल पत्थर को हटाया तो वहां पानी से भरा कुंड निकला. वह कुंड आज भी मौजूद है. मान्यता है कि इस कुंड का जल कभी नहीं सुखता. संत बुधकरण के बाद संत ओमा कुमारी और उनके बाद उनके शिष्य रामा कृष्णा देव मंदिर के पीठाधीश्वर है.
नौ दुर्गा नौसर माता कई जातियों की कुलदेवी के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं. माहेश्वरी समाज के कई गोत्र, गुर्जर समाज के कई गौत्र, कुम्हार जाति, तेली, धोबी, ब्राह्मण, मीणा जाति के अनेक गोत्र की कुलदेवी नौसर माता हैं. देश के कोने-कोने से इन जातियों के गोत्र के वंशज माता के दर्शनों के लिए आते हैं. श्रद्धालु मनोज गुप्ता बताते हैं कि वह 40 सालों से माता के मंदिर में प्रतिदिन आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म में कई जातियों की माता कुलदेवी हैं. यहां आने वाले हर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.
यही वजह है कि एक बार माता के मंदिर में आने के बाद भक्तों का नाता हमेशा के लिए उनसे जुड़ जाता है. उन्होंने बताया कि नवरात्र में माता के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है. खासकर अष्टमी, नवमी के दिन माता के मंदिर में विशेष धार्मिक आयोजन, हवन और भंडारे होते हैं.