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Krishna Janmashtami 2023 : श्रीकृष्ण ने अवतरण काल में यहां लड़ा था सबसे भयानक दो राक्षसों के साथ युद्ध, जानिए ये दिलचस्प कहानी - Rajasthan Hindi News

Janmashtami 2023, श्रीकृष्ण ने अवतरण काल में राजस्थान के इस क्षेत्र में सबसे भयानक दो राक्षसों के साथ युद्ध लड़ा था. वे यहां 11 बार अपनी सेना लेकर आए थे, साथ में उनके कुटुंब और बड़े भाई भी आए थे.

Krishna Janmashtami 2023
दो राक्षसों के साथ युद्ध की कहानी

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 7, 2023, 3:26 PM IST

श्रीकृष्ण ने अवतरण काल में यहां लड़ा था सबसे भयानक दो राक्षसों के साथ युद्ध

अजमेर. देश और प्रदेश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम मची हुई है. कृष्ण भक्त अपने आराध्य के जन्मदिवस को धूमधाम से मना रहे हैं. कृष्ण मंदिरों में मनमोहन सजावट की गई है. अजमेर जिले में पुष्कर आरण्य क्षेत्र सूरजकुंड गांव में कानबाय में भी कृष्ण जन्मोत्सव माना ने की तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा है. यह वही स्थान है जहां पर श्री कृष्णा बड़े भाई बलराम और कुटुंब के साथ यहां आए थे. श्री कृष्णा के अवतार काल में उन्होंने सबसे भयानक युद्ध भी पुष्कर क्षेत्र में ही लड़ा था. भगवान श्री हरि के धरती पर प्रथम पदार्पण और श्री कृष्णा के 11 बार यहां आने से यह स्थान तीर्थ बन चुका है.

पुष्कर को सृष्टि का उद्गम स्थल माना जाता है. यह जगत पिता ब्रह्मा की नगरी है, लेकिन यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि पुष्कर में त्रिदेव का स्थान है. पुष्कर आरण्य क्षेत्र में भगवान विष्णु का अति प्राचीन मंदिर है जहां भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करते हुए विश्व की सबसे प्राचीनतम और जगत पिता ब्रह्मा एवं सप्त ऋषि की ओर से सेवित प्रतिमा है. इस स्थान पर 11 बार श्री कृष्णा और दो बार श्री राम आए थे.

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बताया जाता है कि भगवान श्री हरि ने सृष्टि की रचना से पहले महादेव के साथ घोर तप किया था. भगवान विष्णु ने 10 हजार वर्ष और महादेव ने 9 हजार वर्ष तक तप किया था. उसके बाद भगवान विष्णु ने इस स्थान पर ही अपनी नाभि से भगवान जगत पिता ब्रह्मा को अवतरित किया था. बताया जाता है कि करोड़ों वर्ष पहले यहां पर समुद्र था. समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी का अवतरण भी यहीं से हुआ था. यही वजह है कि सदियों से यह स्थान तीर्थस्थल रहा है. हरिवंश पुराण और पद्म पुराण के अलावा कई पौराणिक ग्रंथो में इस पवित्र स्थान का उल्लेख मिलता है.

हंस और डिंबक राक्षस को मारने के लिए आए थे श्री कृष्ण : तीर्थराज गुरु पुष्कर देवी देवताओं ऋषि, मुनियों, यक्ष गंधर्व, दानव सभी के लिए तपोस्थली रही है. कानबाय मंदिर के महंत महावीर वैष्णव बताते हैं कि पुष्कर आरण्य क्षेत्र में हंस और डिम्बक नामक दो मायावी राक्षसों का आतंक था. वह ऋषि मुनियों पर हमला कर देते थे. दोनों ने ऋषि दुर्वासा पर भी हमला करने की कोशिश की. भगवान शिव से दोनों रक्षा वरदान प्राप्त थे, इसलिए दुर्वासा ऋषि अन्य ऋषि मुनियों के साथ भगवान श्री कृष्णा से सहायता लेने के लिए द्वारकाधीश गए. भगवान श्री कृष्ण ने हंस और डिंबक राक्षस का वध करने के लिए अपने बड़े भाई बलराम, कुटुंब और सेना के साथ पुष्कर आ गए. यहां श्री कृष्ण का हंस और डिंबक राक्षस के साथ बड़ा ही भयानक युद्ध हुआ था.

इस दौरान तीसरा एक और राक्षस विचक भी हंस और डिंबक का साथ देने के लिए आ गया. विचक नामक राक्षस ने श्री कृष्णा पर बाणो से हमला किया. भगवान श्री कृष्ण ने अग्निबाण चला करके विचक राक्षस का वध किया. युद्ध के दौरान जब शाम हो गई तो हंस और डिम्बक मथुरा वृंदावन की ओर भाग गए. उसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपने भाई बलराम के साथ मथुरा वृंदावन जाकर के हंस और डिंबक रक्षा का अंत किया. यहां से श्री कृष्णा और बलराम वापस पुष्कर आए. 5 हजार 200 वर्ष पहले यहीं पर भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया था, जब भगवान श्री कृष्णा यहां आए थे उस दिन जन्माष्टमी थी. कानबाय में भी 5 हजार 200 वर्षों से श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जा रहा है.

यहां आस-पास के गांव के नाम ब्रज क्षेत्र के गांवों से मिलते जुलते हैं : महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि यहां आस-पास के गांव के नाम ब्रज क्षेत्र के गांव से मिलते जुलते हैं. उन्होंने बताया कि यहां श्री कृष्णा और उनके बड़े भाई बलराम के साथ आए हजारों लोगों में से कई लोग यहीं आसपास क्षेत्र में बस गए थे. इस स्थान के समीप ही नांद गांव है जो कभी नन्द गांव से जाना जाता था. इसी प्रकार गोइलिया पहले गोकुल, बासेली गांव बरसाना के नाम से जाना जाता था.

रात को जन्मोत्सव और अगले दिन सुबह से लगता है मेला : कृष्ण जन्माष्टमी पर रात्रि को यहां कानबाय मंदिर में जागरण होता है. रात्रि 12 बजे कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है. रात भर श्री कृष्ण के भजन और कीर्तन किए जाते हैं. अगले दिन सुबह से ही भक्तों का ताता लगा रहता है. सदियों से जन्माष्टमी के अगले दिन यहां मेला भरता आया है. आसपास क्षेत्र के बड़ी संख्या में ग्रामीण और पुष्कर से लोग यहां दर्शनों के लिए आते हैं.

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