पंडित प्रदीप मिश्रा ने साधु-संतों को लेकर कही बड़ी बात... अजमेर. पुष्कर में ब्रह्म शिवपुराण कथा के तीसरे दिन पंडित प्रदीप मिश्रा ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं होता है. व्यक्ति का समय बुरा होता है. उन्होंने इस दौरान साधु-संतों के धन लेने के पीछे कारण को भी स्पष्ट किया.
साधक के पास माया को भी मिलती है कायाः कथावाचक पंडित मिश्रा ने कथा के दौरान कहा कि कई लोग कहते हैं कि साधु-सन्यासी को माया से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. फिर यह धन क्यों लेते हैं. इस का जवाब है कि साधु, सन्यासी, तपस्वी, उपासक, साधक के पास माया को भी काया मिल जाती है. मतलब उस धन का उपयोग जन कल्याण और जीव सेवा के लिए लगाया जाता है.
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उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति बुरा नहीं होता. समय, परिस्थियां और चक्र ऐसे हालात बना देते हैं कि देखने वाले को नकारात्मकता ही नजर आने लगती है. ऐसे समय में कुछ अच्छा नजर नहीं आता है. तब क्रोध में निर्णय लेना ठीक नहीं है. ऐसे वक्त में मन को शान्त रखना चाहिए. क्रोध में लिए गए निर्णय के बाद पछतावे के अलावा कुछ नहीं रह जाता. पति-पत्नी तलाक लेने में जल्दबाजी नहीं करें.
भगवान कृष्ण का सुनाया प्रसंगःपंडित मिश्रा ने भगवान कृष्ण का एक प्रसंग सुनाया. उन्होंने कहा कि जब भगवान कृष्ण मथुरा में अपनी माता देवकी को जेल छुड़ाने के लिए आए, तब उनकी उम्र 14 वर्ष थी. देवकी ने भगवान कृष्ण से पूछा कि तुम भगवान हो, मुझे छुड़ाने के लिए तुम्हें 14 वर्ष का समय क्यों लग गया. तब कृष्ण ने कहा कि सतयुग में रामावतार में माता कैकई ने 14 वर्ष के लिए वन में भेजा था, वह तुम हो.
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देवकी ने कहा कि यशोदा कौन है, तो कृष्ण ने कहा कि रामावतार में कौशल्या मेरी माता थी, जिसने 14 बरस तक रोते बिलखते अपनी संतान के लिए इंतजार किया था. भगवान कृष्ण ने माता देवकी से कहा कि तब कैकई के रूप में 14 वर्ष मुझे वनवास भेजा. इसलिए अब आपको कारागार में रहना पड़ा. प्रसंग सुनाते हुए पंडित मिश्रा ने कहा कि माता कौशल्या 14 वर्ष तक अपने पुत्र के लिए तरसती रहीं. इसलिए कृष्ण रुप में 14 वर्ष तक माता यशोदा की गोद में मुझे रहना पड़ा.
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बेटियां कमजोर नहींःपंडित मिश्रा ने कहा कि नारी में पुरुष से ज्यादा बल होता है. एक समय था जब पति की मृत्यु होने के बाद अंतिम यात्रा में पत्नी पति की अर्थी के पीछे चला करती थी और पति की चिता में सती हो जाती थी. लेकिन क्या किसी ने पति को सता होते हुए सुना है. ऐसा कोई एक उदाहरण नहीं है. नारी को कमजोर समझने वाले नारी की बलवत्ता को पहचानो. आज की बेटियों को देखकर कहूंगा कि बेटियां कमजोर नहीं हैं. बेटियां कदम से कदम मिलाकर चलना जानती हैं.