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खास है बिजयनगर का दशहरा...यहां रावण नहीं, महिषासुर का होता है पुतला दहन - Ajmer latest news

विजयदशमी पर देश भर में रावण का दहन किया जाता है. दशहरा उत्सव पर मेले का आयोजन होता है, लेकिन राजस्थान में एक जगह ऐसी है जहां विजयदशमी पर रावण का नहीं महिषासुर का पुतला दहन (Mahishasura is burnt in place of Ravana) होता है. अजमेर के बिजयनगर में महिषासुर के वध के साथ दशहरा उत्सव का समापन होता है. विजयदशमी को लेकर यहां तैयारियां भी चल रही हैं.

effigy of Mahishasura is burnt on Dussehra
effigy of Mahishasura is burnt on Dussehra

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Published : Oct 2, 2022, 5:16 PM IST

बिजयनगर (अजमेर).देश भर में दशहरा उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है. नवरात्रि पर जहां देवी मंदिरों को आकर्षक ढंग से सजाया गया है तो वहीं विजयदशमी पर्व को लेकर भी तैयारियां चल रही हैं. बिजयनगर के पास स्थित बाड़ी माता मंदिर के स्थान पर नवरात्रि में महिषासुर का दहन किया जाता है. शायद प्रदेश में यह एक मात्र स्थान होगा जहां दशहरे पर रावण के स्थान पर महिषासुर का पुतला दहन (Mahishasura is burnt in place of Ravana) होता है.

जहां एक ओर सम्पूर्ण देश और प्रदेश में बुराई के प्रतीक रावण का दहन किया जाता है तो वहीं बिजयनगर के निकट स्थित बाड़ी माता मंदिर में विगत 21 वर्षों से महिषासुर के पुतले का दहन किया जा रहा है. तीन अक्टूबर सोमवार को मन्दिर परिसर में मां भगवती मर्दिनी की ओर से 41 फीट के महिषासुर के पुतले का दहन किया (effigy of Mahishasura is burnt on Dussehra) जाए. बाड़ी माता मंदिर टस्ट प्रमुख कृष्णा टांक ने बताया कि महिषासुर नाम के राक्षस का वध करने के लिए ब्रह्नमा, विष्णु, महेश के तेज पुंज से देवी-देवताओं ने अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित कर मां भगवती को शक्ति प्रदान की. इसके बाद सिंह पर सवार मां भगवती ने अपना विकराल रूप धारण कर महिषासुर का वध किया.

खास है बिजयनगर का दशहरा

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बाड़ीमाता भी मां का ही एक रूप है इसीलिए यहां पर महिषासुर के पुतले का दहन किया जाता है. बाड़ी माता तीर्थ धाम पर गत 21 सालों से महिषासुर का दहन होता आ रहा है. हर वर्ष जगह-जगह पर दशहरे पर रावण दहन का कार्यक्रम होता है लेकिन एक मात्र बाड़ी माता मंदिर जहां महिषासुर का दहन होता है. हालांकि विगत दो वर्षों में कोरोन काल के कारण महिषासुर का दहन का कार्यक्रम नहीं हो पा रहा है.

बाड़ी माता मंदिर

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बाड़ी माता मंदिर में महिषासुर के दहन का कोई विशेष कारण नहीं बताया जा रहा है. बस वर्षों पहले माताजी के परमभक्त स्मृतिशेष चुन्नीलाल टांक ने ये परंपरा शुरू की थी जिसने अब एक विशाल रूप ले लिया है. इस दिन मेले भरने, भव्य झांकियां निकलने के साथ ही शानदार आतिशबाजी भी देखने को मिलेगी. आसपास से हजारों की संख्या में लोग मेले में शामिल होंगे. इस दौरान बाड़ी माता ट्रस्ट व पुलिस प्रशासन की ओर से पुख्ता इंतजाम भी किए जा रहे हैं.

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