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अजमेर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल में दवाइयों का टोटा, मरीज परेशान

अजमेर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल में मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना फेल साबित हो रही है. यहां पर दवाइयों की कमी के चलते मरीजों की बाहर से दवाएं लेनी पड़ रही हैं.

जेएलएन अस्पताल में सरकार की नि:शुल्क दवा योजना हो रही फेल

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Published : May 4, 2019, 10:38 PM IST

अजमेर. संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना के अंतर्गत मरीजों को पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है. हालात यह है कि अस्पताल में चिकित्सक मरीजों को पांच दवाएं लिखते हैं. उनमें से दो दवाएं मरीजों को बाहर से खरीदनी पड़ती हैं. जबकि प्रदेश सरकार ने विभिन्न बीमारियों के लिए 831 प्रकार की दवा अस्पतालों में मरीजों के लिए फ्री में देने की घोषणा की थी.

JLN hospital में दवाईयों के लिए दर-दर भटकने के लिए मजबूर मरीज

बता दें कि वर्तमान में राजस्थान मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन की ओर से स्वीकृत 614 दवा की जगह 563 दवाइयां ही सेंक्शन हैं. इनमें से भी करीब 150 तरह की दवाइयां अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं. जबकि 795 तरह की दवाइयों की अजमेर मेडिकल कॉलेज की तरफ से डिमांड हो रही है. अस्पताल में अनुपलब्ध दवाइयों में कैंसर की अल्फा-2, गायनिक संबंधित बीमारी की ब्रोमोक्रिप्ट, सांस की बीमारी की दवा टर्बोलेटेड, हृदय संबंधित बीमारी की दवा वीरापामेल जैसी गंभीर बीमारियों की 50 तरह की आवश्यक दवाइयां अस्पताल में मौजूद नहीं है.

अस्पताल में चिकित्सक मरीजों को उपलब्ध दवा के साथ ही वह दवाइयां भी लिख रहे हैं. जो अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. लिहाजा मरीजों को मजबूरन बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं. लोगों की माने तो चिकित्सक हर मरीज को एक या दो दवा बाहर से लेने के लिए लिख रहे हैं.

इधर, अस्पताल अधीक्षक डॉ. अनिल जैन का कहना है कि चिकित्सकों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं. वे अस्पताल में उपलब्ध दवाइयां ही मरीज को लिखें. अन्यथा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. जैन ने बताया कि 563 में से 150 दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं. इनमें 100 दवाइयां बिना अप्रूवल के काउंटर पर नहीं दी जा सकती हैं. वहीं 35 दवाओं की खरीद करना अभी बाकी है.

गौरतलब हो कि मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना के तहत मरीजों को मिलने वाला लाभ पूरा नहीं मिल पा रहा है. इसको लेकर अस्पताल प्रशासन की अपनी दलीलें हैं. प्रशासन प्रक्रिया में देरी का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ रहा है. वहीं काउंटर पर दवा नहीं मिलने के बाद मजबूरन मरीजों को बाहर की दुकानों पर अपनी जेब झाड़नी पड़ रही है.

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