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Holi festival 2023: सिंध की यह खास मिठाई परंपरा का है हिस्सा, होली पर यहां घीयर से होती है आवभगत - Holi Special

अजमेर में होली के पर्व पर एक खास तरह की मिठाई बनाई जाती (Sindh Gheeyar Sweets in Ajmer) है जो दिखने में जलेबी का बड़ा रूप लगती है. लेकिन इसका स्वाद जलेबी से बिल्कुल अलग है. इस खास मिठाई को घीयर कहा जाता है.

Sindh Gheeyar Sweets in Ajmer
जलेबी से बिल्कुल अलग घीयर मिठाई

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Published : Feb 28, 2023, 7:46 PM IST

जलेबी से बिल्कुल अलग घीयर मिठाई

अजमेर.त्योहार कोई भी हो, बिना मिठास के अधूरे ही रहते हैं. होली का पर्व आने वाला है. रंगों के इस पावन त्योहार पर अजमेर में घीयर की मिठास अब परंपरा का रूप ले चुकी है. दिखने में यह जलेबी की तरह है, लेकिन इसका स्वाद और साइज जलेबी से जुदा है. सिंधी समाज में होली की पूजा घीयर के बिना नहीं होती.

इस खास मिठाई को लोग अपनी बहन बेटियों और रिश्तेदारों को भेजते हैं. इतना ही नहीं होली पर घर आने वाले मेहमानों को घीयर ही परोसा जाता है. घीयर सिंधी समाज में परंपरा का हिस्सा है. सिंधी समाज के पदाधिकारी रमेश चेलानी बताते हैं कि पाकिस्तान के सिंध सूबे में घीयर एक परम्परागत मिठाई थी. होली पर हमारे पूर्वज घीयर का उपयोग खुशियां मनाने के लिए किया करते थे. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद जब सिंध से यहां आए तो सिंध संस्कृति को भी अपने साथ लाए. इनमें सिंधी व्यंजन भी शामिल है. अजमेर में परंपरागत सिंधी व्यंजन की एक दर्जन से अधिक दुकाने हैं. जहां सिंधी संस्कृति को आज भी मिठास के रूप में जीवंत रखा जा रहा है. एक दर्जन से अधिक सिंधी मिठाईयां यहां मिलती हैं.

केवल होली पर ही बनता है घीयरःउन्होंने बताया कि होली के पर्व के लिए घीयर बनता है. शिवरात्रि के बाद से ही घीयर बाजारों में बिकना शुरू हो जाता है. उन्होंने बताया कि घीयर का स्वाद वर्ष में केवल एक माह ही चखने को मिलता है. घीयर की डिमांड होली पर ज्यादा रहती है. चेलानी बताते हैं कि सिंधी समाज में कई गरीब परिवार हैं. समाज के संगठन की ओर से गरीब 500 घरों में घीयर होली से पहले पहुंचाया जाएगा. जिससे वह भी होली की खुशियां मना सकें. चेलानी बताते हैं कि अजमेर का घीयर देश के कोने कोने में जाता है. साथ ही यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, दुबई, ओमान में भी रहने वाले सिंधी समाज के लोगों तक यह स्वाद यहां से हर वर्ष पंहुचता है.

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परंपरा को रखा जीवंतः अजमेर शहर में यूं तो हर जाति धर्म के लोग निवास करते हैं, लेकिन सिंधी समाज बाहुल्य है. ऐसे में अजमेर में विविध संस्कृतियां देखने को मिलती हैं. इनमें सिंधी समाज की परंपरा और संस्कृति भी है. सिंधी समाज के पदाधिकारी रमेश लालवानी बताते हैं कि कई लोग इसको घेवर कहते है. लेकिन यह भाषा का फर्क है. वास्तव में इस मिठाई को घीयर कहा जाता है, इसका अर्थ है घी में डूबा हुआ. लालवानी बताते हैं कि घीयर का असल स्वाद सिंधी समाज की दुकान पर ही चखने को मिलेगा. उन्होंने बताया कि कुछ लोग इस तरह से जलेबी बनाते हैं. लेकिन उसमें घीयर का परंपरागत स्वाद नहीं होता. उन्होंने बताया कि विभाजन से पहले पाकिस्तान के सिंध में घीयर बना करता था. विभाजन से पहले जो पाकिस्तान से आए वह वहां यह काम छोड़ कर आए और यहां उन्होंने इस काम को जारी रखा है. लालवानी बताते हैं कि असल घीयर का स्वाद खट्टा मीठा होता है.

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बहन-बेटियों को दिया जाता है घीयरः सिंधी परंपरागत मिठाइयों की दुकानों पर घीयर की बिक्री काफी हो रही है. घीयर केवल सिंधी समाज में ही नही अन्य समाज में भी पसंद किया जाता है. बता दें कि अजमेर से बड़ी संख्या में लोग विदेशों में रहते हैं. लिहाजा लोगों का यहां आना जाना लगा रहता है. वह अपने साथ घीयर ले जाना नहीं भूलते. ग्राहक हीरा लाल दुलानी बताते है कि वह बहन-बेटियों को होली की मिठाई के रूप में भेजने के लिए घीयर लेने आए हैं. दुलानी बताते हैं कि घीयर मिठाई अन्य राज्यों और कई देशों में भी जाती है. उन्होंने कहा कि घीयर सस्ता होता है और इसका स्वाद सबको पसंद आता है.

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देश-विदेश तक पहुंचता आया है स्वादः 70 बरस पहले विभाजन के समय आए सिंधी समाज के लोगों ने अपने पुरुषार्थ से व्यापार पर अपना कब्जा जमाया. साथ ही अपनी संस्कृति और परंपरा को भी जीवित रखा है. खारी कुई में स्थित परंपरागत सिंधी मिठाई के दुकानदार अर्जुन बताते हैं कि सिंधी मिठाई बनाकर बेचने का कारोबार 70 वर्ष पुराना है. पिता मोहनदास यह कारोबार करते थे और उनसे पहले दादा परदादा सिंध में मिठाई का कारोबार किया करते थे. उन्होंने बताया कि दुकान पर लगभग सभी सिंधी परंपरागत मिठाइयां मिलती हैं जो वर्षभर लोग खरीदते हैं. लेकिन घीयर की बिक्री केवल एक माह के लिए ही होती है. उन्होंने बताया कि वनस्पति और देशी घी दोनों ही तरह से घीयर बनाया जाता है. वनस्पति घी में बना घीयर 180 से 200 रुपए किलो और देशी घी में बना घीयर 400 से 450 रुपए किलो में बिक रहा है. उन्होंने बताया कि घीयर एक सप्ताह तक खराब नहीं होता. एक सप्ताह बाद इसमें खटाई और बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि घीयर में मैदा, रंग, शक्कर और टाटरी होती है. टाटरी से घीयर में खटास आती है. सिंधी कारीगर ही घीयर में काम आने वाली सामग्री के मिश्रण को सही पैमाने पर रख पाते हैं.

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