आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बीएल मिश्रा. अजमेर. इंसान को स्वस्थ्य जीवन जीने के लिए पौष्टिक आहार लेना आवश्यक है. भोजन से हमारे शरीर में प्रोटीन, कैल्शियम और अन्य खनिज तत्वों की पूर्ति होती है. साथ ही शरीर को ऊर्जा भी मिलती है. इस कारण व्यक्ति निरोगी रहता है. आयुर्वेद के अनुसार हर ऋतु में अलग-अलग तरह का आहार लेने से व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ मिलता है. आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बीएल मिश्रा से जानते हैं ऋतुओं के अनुसार भोजने लेने का महत्व.
ऋतु के अनुसार भोजन में बदलाव : डॉ. मिश्रा बताते हैं कि आयुर्वेद सदियों पुरानी चिकित्सा पद्धति है. आयुर्वेद पद्धति में केवल रोगों का उपचार ही नहीं बल्कि जीवन को जीने का सही तरीका भी है. आयुर्वेद की तीन प्रकृति हैं, वात, पित्त और कफ. शरीर में इन तीनों के संतुलन से स्वास्थ्य बेहतर रहता है. असंतुलित होने पर कई तरह के रोग से व्यक्ति ग्रसित हो जाता है. वहीं, आयुर्वेद के अनुसार वर्ष में मुख्यतः तीन ऋतुएं होती हैं. इनमें सर्दी, गर्मी और वर्षा शामिल है. इन तीनों ऋतुओं का असर मानव शरीर पर पड़ता है. आयुर्वेद पद्धति में हर ऋतु (मौसम) के अनुसार भोजन में भी बदलाव आवश्यक रूप से करना होता है.
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सर्दी में ये करें और ये नहीं : स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्दी के मौसम को सबसे बेहतर माना जाता है. इस मौसम में शरीर में कफ और पित्त का संतुलन बना रहता है. साथ ही पाचन क्रिया मजबूत रहती है. भोजन में उष्ण (गर्म), घी और तेलीय पदार्थ का उपयोग अच्छा माना जाता है. मगर शरीर में कुपित (ज्यादा) वायु और कुपित कफ बढ़ने से कई तरह के रोग भी उत्पन्न होते हैं. मसलन जोड़ों का दर्द, स्वास्थ्य संबंधी रोग, खांसी, जुखाम, नजला आदि शामिल है. सर्द मौसम में तिल, गुड़, घी से बने व्यंजन, तिल का तेल, मूंगफली, मेवे, दूध, बाजरा, मक्का, दही का सेवन करना स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना गया है. इसके अलावा शरीर पर सरसों, जैतून, नारियल या तिल के तेल से मालिश करना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर माना जाता है.
गर्मी में ये करें और ये नहीं: ग्रीष्म ऋतु में शरीर के अंदर और बाहर का तापमान दोनों ही बढ़ जाता है. इस कारण पित्त की उग्रता के कारण हाई ब्लड प्रेशर, पिस्ती, उल्टी, चक्कर आना, शरीर से पसीना अधिक आने पर शरीर में सोडियम की कमी होना है. डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि गर्मी के मौसम में वायु के साथ पित्त विकृत होकर वात जनित बीमारियों को बढ़ाता है. इससे पाचन क्रिया कमजोर होती है. प्रकृति ने स्वयं की चिकित्सा के रूप में रसदार और मीठे फलों को प्रदान किया है. गर्मी के मौसम में खरबूजा, तरबूज, संतरा, चीकू, नींबू, अंगूर, पुदीना आदि फल वायु और पित्त का शमन करते हैं. खाद्य पदार्थों में जौ की घाट, छाछ राबड़ी, छाछ, दही का भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए. मसालेदार भोजन से परहेज करना चाहिए. साथ ही पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण है कि ताजा भोजन करना.
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वर्षा में ये करें और ये नहीं : डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि वर्षा ऋतु में पित्त और वायु की अधिकता के कारण कई तरह के रोग व्यक्ति को घेर लेते हैं. इनमें पिस्ती, जुखाम, पाचन क्रिया कमजोर होना आदि शामिल हैं. वर्षा काल में भोजन पदार्थ जल्द खराब होता है. वहीं, कीट की अधिकता भी रहती है. यह कीट हरी सब्जियों और फलों में मल मूत्र और विष त्यागते हैं. इसके सेवन से पेट दर्द, दस्त, उल्टी होने लगती है. वर्षा ऋतु में आंखों के रोग, त्वचा संबंधी रोग भी होते हैं. इस मौसम में बाजार का खुला हुआ खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए. पानी को ढक कर रखना चाहिए. कोशिश करें कि अंधेरा होने से पहले ही भोजन कर लें, क्योंकि रात्रि को किट बढ़ने से भोजन में गिरने की संभावना रहती है.
डॉ मिश्रा बताते हैं की वर्षा काल में हरी सब्जियों का इस्तेमाल बहुत कम करना चाहिए. दाल मुगेड़ी उचित है. छाछ का उपयोग न करें. इस मौसम में मच्छर, मक्खी से जनित बीमारियां होने की संभावना भी रहती है. लौंग, तुलसी, काली मिर्च, दालचीनी का उपयोग चाय या शहद के साथ सेवन करने से शरीर स्वस्थ्य रहता है. इस मौसम में शरीर को ढक कर रखना चाहिए, ताकि मच्छर काट नहीं पाए.