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Hanuman Janmotsav 2023 : यहां स्वयंभू हुए प्रकट हुए थे बालाजी, 300 वर्ष पुराना मंदिर है जन आस्था का केंद्र

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Published : Apr 6, 2023, 12:19 AM IST

राजस्थान की हृदय स्थली अजमेर शहर के मध्य दौलत बाग के समीप पहाड़ी पर 300 वर्ष पुराना हनुमान मंदिर स्थित है. यह मंदिर बजरंगगढ़ के नाम से विख्यात है. यहां श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं. हनुमान जन्मोत्सव पर यहां मेले का आयोजन होता है. आइए जानते हैं बजरंगगढ़ बालाजी के यहां स्थापित होने की रोचक कहानी...

Bajrangarh balaji Mandir
बजरंगगढ़ बालाजी मंदिर

यहां स्वयंभू हुए थे बालाजी

अजमेर.श्रीराम के परम भक्त अंजनी के लाल हनुमान के जन्मोत्सव की देश-प्रदेश में धूम है. हनुमान मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. इसी क्रम में अजमेर में स्थित बजरंगगढ़ बालाजी के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दराज से आ रहे हैं. बजरंगगढ़ तीर्थ के रूप में विख्यात है. दौलत बाग के समीप ढाई सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित बजरंगगढ़ बालाजी का मंदिर जन आस्था का बड़ा केंद्र है.

300 वर्ष पहले बना ये मंदिर : मंदिर के व्यवस्थापक रणजीत मल लोढ़ा बताते हैं कि उनके पूर्वज कवल नैन हमीर सिंह लोढ़ा पहाड़ी पर घर बनाना चाहते थे. घर बनाने के लिए काम भी शुरू किया गया, लेकिन यहां स्वयं बालाजी की प्रतिमा प्रकट हुई. ऐसे में उन्होंने यहां घर बनाने का इरादा टाल दिया. घर के लिए नजदीक की ही पहाड़ी को खरीदा गया और वहां भव्य घर का निर्माण किया गया. वर्तमान में यह सर्किट हाउस की इमारत है.

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उन्होंने बताया कि करीब 300 साल पहले पहाड़ी पर बालाजी का मंदिर बनाया गया था. सन् 1950 से पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां नहीं थीं. वर्तमान में मंदिर में पहुंचने के लिए 3 जगहों पर सीढ़ियां हैं. उस दौर में मंदिर में वर्षा का जल संग्रहण करने के लिए कुंड बनाया गया था. इस कुंड के अलावा और कोई पेयजल का स्त्रोत वहां नहीं था. हालांकि अब पेयजल की व्यवस्था होने के बाद इस कुंड को ढंक दिया गया है.

ब्रिटिश अधिकारी को आरती रुकवाना पड़ा भारी :उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल में एक अंग्रेज अधिकारी मंदिर के समीप अपनी पत्नी के साथ रहने लगा था. उसने मंदिर में सुबह की पूजा-अर्चना बंद करवा दी थी. इसके बाद उसकी पत्नी की तबीयत बिगड़ने लगी. तब एक अन्य अफसर के कहने पर उसने यहां का घर छोड़ना ही उचित समझा. यहां से जाने के बाद उसकी पत्नी की हालत ठीक हो गई. रणजीत मल बताते हैं कि मराठा काल के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने दूसरी पहाड़ी पर बने घर को किराए पर लिया था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनका घर ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दिया था. इसके बाद यह घर 1956 में राजस्थान सरकार को 5 लाख 50 हजार में बेच दिया गया. वर्तमान में वही घर आज सर्किट हाउस के रूप में है.

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बालाजी पूरी करते हैं मनोकामना :स्थानीय लोगों के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी यह मंदिर आस्था का केंद्र रहा है. स्थानीय लोग यहां दर्शन के लिए जरूर आते हैं. मान्यता है कि बजरंगगढ़ बालाजी के दर्शन मात्र से ही कष्ट दूर हो जाते हैं. सेवादार पंडित बसंत कुमार शास्त्री ने बताया कि पहली बार जो भी श्रद्धालु बजरंगगढ़ बालाजी मंदिर आता है, उसका नाता यहां से हमेशा के लिए जुड़ जाता है. उन्होंने बताया कि वो बाल्यकाल से ही मंदिर में आते थे. कॉलेज के समय में भी वह मंदिर आया-जाया करते थे. सन 1991 से वह नियमित रूप से मंदिर में सेवा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर पर चढ़ाई की वजह से बुजुर्ग यहां नहीं आ पाते हैं, लेकिन विद्यार्थी और युवा काफी आते हैं.

श्रद्धालु डॉ अनूप अत्रे बताते हैं कि बालाजी के मंदिर में 2014 से वह नियमित रूप से आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि यहां आने से मन को सुकून मिलता है और समाज के लिए कुछ करने की अनुभूति जागृत होती है. श्रद्धालु कार्तिक चौधरी बताते हैं कि मंगलवार और शनिवार को बालाजी के मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. बालाजी के मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं में युवाओं की संख्या अधिक रहती है.

पंडित बसंत कुमार शास्त्री के अनुसार बजरंगगढ़ बालाजी के मंदिर में हनुमान जन्मोत्सव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. सुबह सुंदरकांड का पाठ मंदिर में होगा, दोपहर 12 बजे बजरंगगढ़ बालाजी की महाआरती होगी. इसके बाद मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को प्रसादी का वितरण भी किया जाएगा. बजरंगगढ़ बालाजी में लोगों की अटूट आस्था है. यही वजह है कि 190 सीढ़ियां चढ़कर भी लोग बालाजी के मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं.

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