अजमेर. यूं तो आस्था की नगरी अजमेर ख्वाजा साहब की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यहां नीम वाले बाबा की दरगाह भी है जहां प्रसाद में नीम की पत्तियां दी जाती हैं. गैबल शाह बाबा की इस दरगाह के बारे में कहा जाता है कि मजार के पास नीम का पेड़ 800 बरस पुराना है, नीम के आधे हिस्से की पत्तियों का स्वाद कड़वा और आधे हिस्से की पत्तियों का स्वाद मीठा है. दावा है कि पेड़ की जो शाखाएं मजार की ओर झुकती हैं उनकी पत्तियों का स्वाद मीठा है. जबकि अन्य शाखाओ की पत्तियां कड़वी हैं.
अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में आने वाले जायरीन मीठे नीम वाले बाबा की दरगाह में जरूर आते हैं. यहां हर धर्म और जाति के लिए आते हैं और मन्नत मांगते हैं. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के पीछे तारागढ़ की पहाड़ियों की तलहटी में मीठे नीम वाले गैबन शाह बाबा की दरगाह सदियों से लोकआस्था का केंद्र रही है. दरगाह से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है. कहते हैं कि यहां हर जायज मन्नत पूरी होती है. यही वजह है कि मन्नत पूरी हो जाने के बाद लोगों का यहां से नाता जुड़ जाता है और वे हर साल जियारत के लिए आते हैं.
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मजार पर झुकने वाली नीम की शाख मीठी
दरगाह में बाबा गैबन शाह की मजार है. मजार के नजदीक ही नीम का पेड़ है. बताया जाता है कि यह नीम 800 वर्ष पुराना है. दरगाह की चारदीवारी से पहले तक यह नीम खुले में था. लोग इसकी डालियां तोड़ कर अपने साथ ले जाते थे. नीम को सुरक्षित करने के लिए चारदीवारी बनाई गई. गद्दीनशीन चांद बाबा पीर साहब बताते हैं कि दरगाह परिसर में मौजूद नीम का पेड़ सदियों से लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है. उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों के मुताबिक मजार की ओर झुकी पत्तियों को खाने से कई तरह की बीमारियों से सफा मिलती है.