अजमेर. अगर आपके शरीर के आधे हिस्से में गुच्छेनुमा उभरे हुए छाले हैं तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें. इसको आप हल्के में लेने की भूल न करें, क्योंकि ये आगे चलकर कष्टदायक बन सकता है. मेडिकल भाषा में इन गुच्छेनुमा छालों को हरपीज जोस्टर कहते हैं. हरपीज जोस्टर के कारण और बचाव को लेकर चर्म रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संजय पुरोहित ने हेल्थ टिप्स दिए हैं.
चर्म रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संजय पुरोहित ने कहा कि हरपीज जोस्टर संक्रमित बीमारी है. इस रोग को लेकर आमजन में कई तरह की धारणा रही है. लोग इस रोग को हल्के में लेते हैं. शरीर पर फफोले होने का कारण मकड़ी मसलने को मानते हैं तो कुछ बाम से रिएक्शन, कुछ लोग तो इस रोग को एलर्जी मान लेते हैं और अपने तरीके से इलाज भी करना शुरू कर देते हैं. इस कारण हरपीज जोस्टर बढ़ने लगता है. इसमें कुछ दिनों में घुटनों में उभरे हुए पानी के छाले ठीक हो जाते हैं, लेकिन रोगी की नस में छाले सालों तक रहते हैं, जो आगे चलकर काफी पीड़ादायक बन जाते हैं. ऐसे में रोगी को तुरंत चर्म रोग विशेषज्ञ से मिलकर इसका इलाज लेना चाहिए.
चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय पुरोहित बताते हैं कि हरपीज जोस्टर का रोगी अगर 48 घंटे में चिकित्सक की सलाह से उपचार लेना शुरू कर देता है तो 5 दिन में यह रोग ठीक हो जाता है. डॉ. पुरोहित बताते हैं कि हरपीज जोस्टर बीमारी जीवन में केवल एक बार ही सामान्य व्यक्ति को होती है, लेकिन गंभीर बीमारियों से ग्रस्त ऐसे रोगी जिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही कम होती है. उन रोगियों में हरपीज जोस्टर 1 बार से अधिक भी हो सकता है. उन्होंने बताया कि हरपीज जोस्टर और हरपीज सिंपलेक्स को भी कई लोग एक ही रोग मान लेते हैं जबकि यह दोनों अलग-अलग रोग हैं. हरपीज सिंपलेक्स में होठों के ऊपरी हिस्सों पर महीन उभरे हुए पानी के छाले होते हैं.
यह है हरपीज जोस्टर रोग : चर्म रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि हरपीज जोस्टर रोग वेरिसेला जोस्टर वायरस के कारण होता है. यह वायरस चिकन पॉक्स का कारक माना जाता है. डॉ. पुरोहित बताते हैं कि वेरिसेला जोस्टर वायरस सुषुप्त अवस्था में रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरजा में रहता है. यह कब एक्टिव होता है इसका अभी तक कोई कारण सामने नहीं आया है, लेकिन यह किसी भी व्यक्ति के जीवन में केवल एक बार ही एक्टिव हो पाता है. उन्होंने बताया कि वायरस के एक्टिव होने पर वह रीढ़ की हड्डी से होकर गुजरने वाली नस को प्रभावित करता है. इस वायरस का प्रभाव क्षेत्र भी उस नस का आपूर्ति क्षेत्र ही होता है. यानी जहां-जहां प्रभावित नस पहुंचती है वहां पर गुच्छेनुमा उभरे हुए पानी के छाले हो जाते हैं.