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निकाय चुनाव 2019: पुष्कर के पवित्र सरोवर में सीवेज के पानी की आवक का मुद्दा फिर गर्माया, कांग्रेस और बीजेपी भुनाने में जुटी - अजमेर न्यूज

पुष्कर के धार्मिक महत्व की वजह से यहां नगर पालिका चुनाव भी महत्वपूर्ण है. परिसीमन के बाद 25 वार्ड में चुनाव होंगे. कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी रणनीति भी उसी अनुरूप तैयार की है.

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Published : Nov 7, 2019, 12:23 PM IST

अजमेर.पुष्कर में अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेला 2019 का आगाज हो चुका है. वहीं नगर पालिका चुनाव को लेकर सियासत भी गर्माने होने लगी है. चुनाव में पुष्कर के पवित्र सरोवर में सीवरेज का गंदा पानी जाने का मुद्दा डेढ़ दशक से इस बार भी प्रमुख बना हुआ है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही जीत के दावे के साथ सरोवर में गंदे पानी के स्थाई समाधान का दावा भी कर रहे हैं.

तीर्थ नगरी पुष्कर हिंदुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन आज तक ये मुद्दा जस का तस बना हुआ है. इस बार नगर पालिका में बीजेपी का बोर्ड था. एक साल पहले तक राज्य में बीजेपी की सरकार थी, लेकिन सरोवर में गंदे पानी की आवक नहीं रुकी, उल्टा गंदे पानी के रोकथाम के लिए स्वीकृत राशि भी लैप्स हो गई. बीजेपी मंडल अध्यक्ष नारायण भाटी ने माना कि कुछ ढिलाई रही है, लेकिन इस बार बोर्ड बना तो सबसे पहले केंद्र सरकार से सरोवर के गंदे पानी को रोकने का स्थाई समाधान करवाया जाएगा.

पुष्कर का डेढ़ दशक पुराना मुद्दा फिर गरम

बीजेपी केंद्र सरकार के कार्यों, पूर्व वसुंधरा सरकार के किए गए कार्यों और स्थानीय विधायक सुरेश सिंह रावत के द्वारा किए गए कार्यों के भरोसे चुनावी वैतरणी पार करने की बात कर रही है. जबकि नगर पालिका में बीजेपी बोर्ड के कार्यकाल का नाम तक नहीं लिया जा रहा है.

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वहीं दावे करने में कांग्रेस भी पीछे नहीं है, देहात कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि पुष्कर नगर पालिका में बीजेपी बोर्ड के कार्यकाल में हुए अतिक्रमण और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कस्बे के लोग कांग्रेस के साथ हैं. कांग्रेस से पुष्कर की पूर्व विधायक नसीम अख्तर ने आरोप लगाया कि पुष्कर की पवित्रता और मर्यादा को बीजेपी ने धूमिल किया है. उन्होंने कहा कि नगर पालिका में कांग्रेस का बोर्ड बना तो सबसे पहले मुख्यमंत्री से मिलकर पुष्कर सरोवर में गंदे पानी की निकासी को रोकने के लिए स्थाई समाधान करवाया जाएगा.

पवित्र सरोवर में सीवरेज का पानी डेढ़ दशक से अधिक समय से पुष्कर आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंचा रहा है, लेकिन पुष्कर के सियासत दान चुनाव में ही मुद्दे पर बोलते नजर आते हैं, जबकि चुनाव के बाद यह मुद्दा फिर से शांत हो जाता है.

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पुष्कर के धार्मिक महत्व की वजह से यहां नगर पालिका चुनाव भी महत्वपूर्ण है. पुष्कर के परिसीमन के बाद 25 वार्ड में चुनाव होंगे. कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी रणनीति भी उसी अनुरूप तैयार की है. नामांकन के अंतिम दिन तक बीजेपी और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं की. बल्कि सीधा उम्मीदवारों को नामांकन के लिए एसडीएम कार्यालय लाया गया. कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही गुटबाजी का डर सता रहा था.

बता दें कि बीजेपी में पुष्कर में विधायक सुरेश सिंह रावत नगर पालिका अध्यक्ष कमल पाठक का अपना ग्रुप है. वहीं तीन पूर्व मंडल अध्यक्षों का अपना अलग ही ग्रुप है. इसी तरह कांग्रेस में कद्दावर नेता दामोदर शर्मा एवं पूर्व विधायक नसीम अख्तर के अलग-अलग गुट है.

बागियों ने बढ़ाई कांग्रेस और बीजेपी की मुश्किलें...

कांग्रेस और बीजेपी ने रणनीति के तहत ऐन वक्त तक उम्मीदवारों की लिस्ट को गोपनीय रखा. बावजूद इसके दोनों ही दलों के कई बागी मैदान में उतर आए हैं. बागियों के तेवरों से कांग्रेस और बीजेपी उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. दोनों ही दलों ने बागियों को मनाने की कवायद शुरू कर दी है.

दिग्गज दोबारा आजमा रहे हैं भाग्य...

पुष्कर नगर पालिका चुनाव में कई दिग्गज अपना या अपने बेटे, बेटी, बहू का भाग्य चुनाव में आजमा रहे हैं. वर्तमान पुष्कर नगर पालिका अध्यक्ष कमल पाठक फिर से बीजेपी से चुनाव मैदान में हैं. वहीं बीजेपी के दो पूर्व मंडल अध्यक्ष भी चुनावी सभा में अपना भाग्य आजमा रहे हैं. चुनाव में बीजेपी के कई नेताओं ने खुद दोबारा या अपने परिवार से किसी सदस्य को चुनाव मैदान में उतारा है.

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बता दें कि बीजेपी ने ऐन वक्त में उम्मीदवारों की लिस्ट में छह नामों को बदला है. बीजेपी से सुखराम मट्टू, कमल पाठक शिवस्वरूप, महर्षि कमल रामावत, विष्णु सेन, मुकेश कुमावत को दोबारा पार्षद का टिकट दिया गया है. इधर, कांग्रेस ने कद्दावर नेता दामोदर शर्मा के पुत्र टीकम शर्मा को दोबारा चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष मंजू कुड़िया के देवर महेश पाल कुड़िया भी मैदान में हैं. कांग्रेस ने 25 में से 22 नए चेहरे मैदान में उतारे हैं. कांग्रेस ने 10 और बीजेपी ने 9 महिलाओं को टिकट दिए हैं. ऐसे में अब देखने वाली बात यह होगी कि बागियों को मनाने में दोनों ही दलों को नामांकन वापसी तक कितनी सफलता मिल पाती है.

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