अजमेर. अंग्रेजों के जमाने के तकरीबन 100 साल पुरानी एक ऐसी बेकरी है, जहां ओवन में नहीं बल्कि पारंपरिक तरीके से बड़ी सी भट्टी में केक को तैयार किया जाता है. यही नहीं, यहां सिर्फ देश से ही नहीं विदेशों से भी केक के लिए ऑर्डर आते हैं. अजमेर के अजंता पुलिया स्थित अंग्रेजों के जमाने से संचालित बेकरी को चलाने वाली पीढियां भले ही बदल गई हो, लेकिन यहां केक बनाने का तरीका आज भी नहीं बदला है और नहीं बदला है केक का जायका.
93 साल पहले साल 1927 में शुरू हुई इस बेकरी को वर्तमान में तीसरी पीढ़ी संभाल रही है. यहां संचालक बेशक बदलते चले आ रहे हैं, लेकिन केक बेकिंग का तरीका और जायका कभी भी नहीं बदला है. यहां के केक की रेसिपी आज भी एक राज ही बनी हुई है.
नहीं साझा किया केक बेकिंग की रेसिपी...
बेकरी मालिक शुरू से ही केक की रेसिपी को राज रखते आए हैं. वहीं परिवार के 3 लोग ही इस तैयारी को पूरा करते हैं. पिता के निधन के बाद उनके पुत्र रफीक अहमद ने इस पूरे कामकाज को संभाला है. अब रफीक मोहम्मद के निर्देशन में उनके पोते जकी अहमद,जावेद अख्तर और नावेद अख्तर इस बेकरी का काम को संभाल रहे हैं.
लाहौर में सीखा था काम...
अविभाजित भारत के दौर में करीम बख्श विलोरियो लाहौर में एक अंग्रेज की बैकरी में काम किया करते थे. लाहौर में अंग्रेज अफसरों की संख्या ज्यादा थी. इसलिए बेकरी भी खूब चला करती थी, जहां कस्टमर के अलावा शादी में केक, कुकीज, बेकरी उत्पाद अंग्रेज अफसरों की डिमांड पर ही बनाए जाते थे.
युवा होने पर करीम बख्श के बेटे अब्दुल मजीद भी उनके साथ बेकरी में जाने लगे. जिसके बाद दोनों ने साल 1927 में अपनी बेकरी शुरू करने के उद्देश्य से लाहौर से निकल गए. अजमेर में भी अंग्रेज अफसर ज्यादा होने के कारण उन्होंने अजमेर आकर बेकरी को कार्य शुरू कर दिया.
ट्रेन से भेजे जाते थे पहले केक...
बेकरी मालिक जकी अहमद ने जानकारी देते हुए बताया कि उनके दादा-परदादा नवंबर के महीने से क्रिसमस केक की तैयारियों को शुरू कर देते थे. सारा सामान खुद बाजार से लाते थे और केक को तैयार करते थे, जिससे दिसंबर में मांग पूरी कर सके. क्रिसमस के दौरान अंग्रेज अफसरों के द्वारा कई शहरों के लिए ऑर्डर आया करते थे. इस दौरान ट्रेन से केक फुलेरा, आबू रोड, बांदीकुई सहित अन्य जगहों पर भी जाते थे. साल के अन्य महीनों में शादी के केक और अफसरों की मांग पर बिस्किट के केक बनाए जाते थे.