अजमेर.सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 811वें उर्स का आगाज हो गया है. जिसमें हाजिरी लगाने को बढ़ी संख्या में अकीदतमंदों का अजमेर आना शुरू हो गया है. वहीं, अंजुमन कमेटी की ओर से सोमवार को रसुमात का कार्यक्रम जारी करने के साथ ही उर्स पर पहली महफिल का आयोजन किया गया. इस दौरान दरगाह में मजार शरीफ को गुसल भी दिया गया. अंजुमन कमेटी के पदाधिकारियों ने उर्स के आगाज से पहले उर्स की रसुमात के बारे में जानकारी दी.
अंजुमन के दफ्तर में सचिव सरवर चिश्ती ने बताया कि 812 सालों से भी अधिक समय से दरगाह में खादिम ही खिदमत को अंजाम देते आए हैं. अस्थाने की बारीदारी भी खादिम करते आए हैं. उन्होंने आगे बताया कि आस्थाने की चाबियां भी खादिमों के पास ही रहती हैं. साथ ही दरगाह में आने वाले हर आम और खास को जियारत केवल खादिम ही करवाते हैं. ये परंपरा पिछले 800 सालों से चली आ रही है.
चिश्ती ने बताया कि साढ़े छह गांव इसके लिए नजर (भेंट) किए गए थे. लेकिन जागीरदारी पुनर्ग्रहण अधिनियम के तहत जब्त कर लिए गए. जायरीन की ओर से दिए जाने वाले नुजूरात खादिम हासिल करते हैं. इसके तहत प्रिवी काउंसिल और सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश खादिमों के पक्ष में दिए हैं. सचिव ने बताया कि उर्स के दौरान छह गुसल पहली रजब से छठी रजब तक होता है. वहीं रजब की 9 तारीख को सुबह 9 बजे भी गुसल दिया जाता है. इस रसुमात को ख्वाजा गरीब नवाज के खादिम ही अंजाम देते हैं. चिश्ती ने बताया कि परंपरा के अनुसार सुबह 4:30 बजे जायरीन के लिए जन्नती दरवाजा खोल दिया गया है. यह छह रजब को 1:30 बजे तक बंद कर दिया जाएगा.