अजमेर.अजमेर के निकट गांव श्रीनगर में अति प्राचीन शिवालय है. दो पहाड़ों के बीच होने के कारण स्थानीय लोग शिवालय को नालेश्वर महादेव के नाम से पुकारते हैं. बताया जा रहा है कि श्रीनगर गांव बसने से पुर्व से ही यहां शिवलिंग विराजमान हैं. 700 वर्षो से भी अति प्राचीन यह शिवालय यहां मौजूद रहा है. खास बात यह कि यहां शिवलिंग बिल्कुल केदारनाथ की तरह ही है परंतु आकार में छोटा है. लोग इस स्थान को सिद्धस्थान मानते हैं. सावन में यहां भगवान शिव को मनाने के लिए भक्तों का यहां आना जाना लगा रहता है.
अजमेर में भगवान शिव के अति प्राचीन शिवालयों में से एक श्रीनगर गांव में नालेश्वर महादेव मंदिर है. श्रीनगर तीर्थराज गुरु पुष्कर क्षेत्र का ही हिस्सा है. यहां दो पहाड़ियों के मध्य जंगल में भगवान शिव का सुंदर स्थान है. बताया जाता है कि यहां शिव लिंग अति प्राचीन होने के साथ ही स्वयंभू भी है. शिवलिंग यहां कैसे स्थापित हुआ यह किसी को नहीं पता लेकिन इस स्थान पर रहने वाले संतो के प्रयासों से ही यहां मंदिर का निर्माण हुआ है. शिवालय के सामने पहाड़ों से निकलने वाली जलधारा बहती रहती है. कदम्ब और अन्य पेड़ इस स्थान को चार चांद लगा रहे हैं. श्रीनगर गांव से 1 किलोमीटर और अजमेर शहर से 18 किलोमीटर दूर यहां अति प्राचीन शिवालय है. बताया जाता है कि किशनगढ़ के राजा शार्दूल सिंह ने शिवालय समेत यहां की 26 बीघा भूमि ब्राह्मणों को दान की थी. बाद में श्रीनगर गांव की सुमित्रा देवी ने भी यह स्थान ब्राह्मणों को दे दिया. इसमें से 4 बीघा उन्होंने कहारों को पत्थर निकालने के लिए दी थी. सावित्री देवी का परिवार 30 साल पहले अमेरिका जाकर बस गया और तब से वे वापस नही लौटे. जोशी बताते है कि यह सिद्ध स्थान है यहां शिव परिवार नहीं है. पहाड़ की गुफा के मुख पर यह शिव लिंग बिराजमान है. केदारनाथ शिवलिंग की तरह हूबहू नालेश्वर महादेव का शिवलिंग है. बस इसका आकार छोटा है.
श्रद्धालुओं की होती है मनोकामना पूर्ण :स्थानीय कमल जोशी ने बताया कि शिवलिंग की खासियत यह है कि यहां कई सहस्त्र धाराएं होती है. लोग जलाभिषेक करते है लेकिन शिव लिंग पर चढ़ाया गया हजारों लीटर जल कभी शिवलिंग से बाहर नही आया. यानी कितना भी पानी शिवलिंग पर अर्पित किया जाए वह पानी शिवलिंग में ही समा जाता है. उन्होंने बताया कि वर्षों पहले इस राज्य को जानने के लिए गांव के ही कुछ प्रबद्ध लोगों ने शिवलिंग के आसपास की जमीन की खुदाई की. 10 फीट से भी अधिक खुदाई करने के बाद भी शिवलिंग का छोर नहीं मिला. उसके बाद वापस मिट्टी भरकर स्थान को पक्का कर दिया गया. जोशी बताते है कि इस स्थान पर कई संत रहे हैं. इन संतो को यहां से कई सिद्धियां मिली. इनमें से एक संत फलहारी बाबा मंदिर परिसर में स्थित एक सुरंग से होकर रोज पुष्कर स्नान के लिए जाते थे. यह सुरंग आज भी मौजूद है. फलहारी बाबा यहां कई वर्षों तक रहे उन्होंने कभी अन्न ग्रहण नहीं किया. ग्रामीणों ने फलहारी बाबा का व्रत तोड़ने और उन्हें भोजन करवाने का एक दिन चुना. उसके एक दिन पहले ही फलहारी बाबा का पहाड़ी से गिर कर निधन हो गया. जोशी बताते हैं कि यहां सावन में भक्तों का आना जाना लगा रहता है. उन्होंने बताया कि यह सिद्ध स्थान होने के कारण यहां श्रद्धा के साथ भगवान शिव का अभिषेक करने वाले श्रद्धालुओ की मनोकामना जल्द पूर्ण होती है. खासकर निसंतान महिला यहां आकर अपना आंचल फैलाकर दान मांगे तो उसे एक वर्ष के भीतर संतान का सुख प्राप्त होता है.