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अजमेर के JLN अस्पताल में महीनों से खराब पड़ी है लिफ्ट - जेएलएन अस्पताल में खराब लिफ्ट

अजमेर संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में 4 लिफ्ट कई महीनों से खराब पड़ी है. लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. खराब लिफ्ट की वजह से मरीजों और उनके परिजनों को काफी परेशानी हो रही है, जिसकी किसी को कोई परवाह नही.

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Published : Sep 14, 2019, 11:40 AM IST

अजमेर.संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में सुविधाएं होने के बावजूद प्रशासनिक शिथिलता की वजह से मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पूरे अस्पताल में 7 लिफ्ट है. इनमें से 4 लिफ्ट कई महीनों से खराब पड़ी है. शेष लिफ्ट विभिन्न विभागों में है, जिनका उपयोग मरीजों के लिए नहीं है. ये लिफ्ट चिकित्सक और स्टाफ के लिए होता है.

जेएलएन अस्पताल में महीनों से खराब पड़ी है लिफ्ट

हालात यह है कि तीन मंजिला अस्पताल की इमारत में मरीज को परिजन ही खस्ता ट्रॉली या व्हीलचेयर से लाने ले जाने को मजबूर है क्योंकि मदद के लिए वार्ड बॉय भी नही है. संभाग का सबसे बड़ा जेएलएन अस्पताल अजमेर में है. बता दें कि राजस्थान के चिकित्सामंत्री डॉ. रघु शर्मा भी अजमेर जिले के केकड़ी विधानसभा से विधायक है. बावजूद इसके चिकित्सामंत्री के गृह जिले में संभाग स्तरीय अस्पताल के हालात ऐसे है कि इलाज को आने वाले मरीजों को अव्यवस्थाओं का दंश झेलकर दर्द उठाना पड़ता है.

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तीन मंजिला अस्पताल में मरीजों की सुविधाओं के लिए 7 लिफ्ट है. लेकिन इनमें से 4 लिफ्ट कई महीनों से खराब पड़ी है. जबकि एक कार्डियोलॉजी विभाग, मेडिकल आउट डोर की लिफ्ट सही है वही न्यूरोलॉजी विभाग में मौजूद लिफ्ट में मरीज नहीं केवल विभागाध्यक्ष का एकाधिकार है. अस्पताल प्रशासन को असहाय मरीजों की तकलीफ से कोई वास्ता नहीं है. मंत्री और विभाग के शीर्ष अधिकारियों की मिजाजपुर्सी करके अपनी जगह सुरक्षित करने अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी जुटे रहते हैं.

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अस्पताल में अजमेर, नागौर, भीलवाड़ा और टोंक जिले से मरीज इलाज को आते है. पड़ोसी जिले नागौर निवासी चंपालाल के गले में तकलीफ हैं. वहीं दोनों घुटनों में परेशानी है. इलाज के लिए हर 15 दिन में उन्हें आना पड़ता है मगर बन्द लिफ्ट उनकी और उनके साथ आए परिजन की मुश्किल और बढ़ा देती हैं. यह तकलीफ सिर्फ चंपालाल की नहीं है बल्कि अस्पताल में आने वाले ऐसे असहाय मरीजों की भी है. लिफ्ट की खराबी से मरीज ही नही वार्डो में आवश्यक समान पहुंचाने वाले कर्मचारियों को भी हर रोज कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. वहीं मरीज को ऊपर नीचे लाने ले जाने के लिए परिजन को ही जोखिम उठाना पड़ता है.

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