अजमेर. शहर के शास्त्री नगर पहाड़ियों के वन क्षेत्र में जगत जननी आदिशक्ति माता का प्राचीनतम मंदिर है. यह मेहंदी खोला धाम लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है. यह पहाड़ों से घिरा हुआ हरियाली की गोद में सुंदर रमणीक स्थान भी है. बताया जाता है कि मेहंदी खोला धाम मंदिर के गर्भ गृह में विराजित माता की प्रतिमा स्वयंभू है. माता के इस मंदिर से डाकुओं का भी वास्ता रहा है. जानिए मेहंदी खोला माता धाम के अद्भुत रहस्य...
अजमेर के शास्त्री नगर में कुक्कुट प्रशिक्षण संस्थान के ठीक सामने से मेहंदी खोला धाम का रास्ता है. यहां से 500 मीटर की दूरी पर पहाड़ी आती है. यहीं से मंदिर जाने का पैदल रास्ता है. रास्ता काफी दुर्गम है, लेकिन माता के भक्तों ने रास्ते को सीमेंट गिट्टी से सुलभ बना दिया. घने जंगल के बीच पैदल करीब आधा किलोमीटर चलना होता है. इसके बाद 400 वर्ष पुराना मेहंदी खोला माता का मंदिर आता है. यहां माता की छोटी सी प्रतिमा है जिसका मुंह खुला हुआ है. छोटी सी प्रतिमा के ऊपर सांसारिक प्रतिमा माता की है.
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घने जंगल के बीच मंदिर की भव्यता को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि माता के भक्तों ने मंदिर निर्माण करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पुजारी रामदेव बताते हैं कि 400 वर्षों से माता यहां बिराजती है. इससे पहले माता की छोटी प्रतिमा पहाड़ी के ऊपर थी. माता के भक्तों बंशीलाल और प्रमोद मिश्रा के प्रयासों से यहां मंदिर का निर्माण हो पाया. रामदेव बताते हैं कि मंदिर में आने वाले हर भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. मंदिर का रास्ता दुर्गम है इसलिए रोज चंद भक्त यहां आते हैं, लेकिन नवरात्रि और विशेष तिथियों पर भक्तों का यहां तांता लगा रहता है.
मंदिर से दर्शन कर नीचे के मार्ग से होते हुए जंगल की ओर आगे बढ़ेंगे, तो बांयी तरफ महाकाली का मंदिर नजर आएगा. यहां दर्शन के उपरांत आगे बढ़ेंगे, तो मेहंदी खोला माता धाम की सीढ़ियां नजर आएंगी. 20-25 सीढियां चढ़कर माता के धाम पहुंचते ही चारों ओर शांति महसूस होती है. शीतल मंद हवा पसीने के साथ थकान को भी उड़ा देती है. यहां दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती माता की प्रतिमा के एक साथ दर्शन होते हैं. मंदिर के पुजारी पंडित विष्णु शर्मा बताते हैं कि दुर्गा माता और सरस्वती माता की प्रतिमा गर्भ ग्रह के निर्माण के वक्त रखी गई थी. लेकिन बीच में माता लक्ष्मी की स्वयंभू प्रतिमा है.
उन्होंने बताया कि माता लक्ष्मी की प्रतिमा का चेहरा बनाया गया है, लेकिन शेष प्रतिमा पहाड़ी से अवतरित हुई थी. प्रतिमा जितने आकार में सामने दिख रही है, उतने ही आकार में धरती के नीचे भी है. पंडित शर्मा बताते हैं कि मेहंदी खोला स्थान का जिक्र पृथ्वीराज चौहान के समकालीन चंद्रवरदाई भाट की रचित पुस्तक पृथ्वीराज रासो में भी है. वहीं वन विभाग के सबसे पुराने रिकॉर्ड में भी मेहंदी खोला माता मंदिर का रिकॉर्ड पाया जाता है. यानी मेहंदी खोला माता का स्थान सम्राट पृथ्वीराज चौहान से भी पहले का है.