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नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी का उदयपुर से खास नाता...यहीं से की थी अपने काम की शुरुआत - Abhijeet Banerjee gets Nobel Prize

उदयपुर में लंबे समय तक काम कर चुके अभिजीत बनर्जी जिन्हें हाल ही में नोबेल पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है. लंबे समय तक काम कर चुके हैं. इतना ही नहीं बल्कि अभिजीत बनर्जी को आरसीटी प्रणाली के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. उसकी शुरुआत अभिजीत ने उदयपुर के आदिवासी इलाकों से की थी.

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Published : Oct 16, 2019, 11:58 PM IST

उदयपुर.आरसीटी प्रणाली के तहत किए गए शोध के लिए अभिजीत बनर्जी को मिल रहे नोबल पुरस्कार की नींव झीलों के शहर उदयपुर में ही पड़ी थी. दरअसल जिस शोध के लिए बनर्जी को यह खास पुरस्कार से नवाजा जा रहा है. उसका शुरुआती कार्य अभिजीत ने उदयपुर में रहकर ही किया था. शिक्षा, गरीबी और स्वास्थय के लिए अभिजीत और उनकी पत्नी एस्तेय ने लगभग 12 साल उदयपुर में शोध के लिए बिताए है.

नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी का उदयपुर से खास नाता

बता दे कि वर्ष 2019 में अर्थशास्त्र के नोबल पुरस्कार विजेता अभिजीत को जिस आरसीटी यानी रेंडम कंट्रोल ट्रायल्स मैथेडालाजी के तहत किए शोध के लिए नोबल दिया जा रहा है, उस काम की शुरुआत उन्होंने उदयपुर में ही की थी. अभिजीत ने उदयपुर की सेवा मंदिर संस्था के साथ मिलकर किए शोध का जिक्र अपनी पुस्तक पुअर इकानेमिक्स में भी किया है. उन्होंने आदिवासी बहुल उदयपुर में ही गरीबी, कुपोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर कई शोध किए.

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दरअसल सेवा मंदिर संस्थान एकल शिक्षक वाले संस्थानो में एक-एक शिक्षक और बढ़ाना चाहते थे, जिससे उन्हें बच्चों की संख्या में बढोतरी की उम्मीद थी. ऐसे में अभिजीत बनर्जी ने इस पर भी शोध का प्रस्ताव दिया और आधे स्कुलों में ही शिक्षकों की बढ़ोतरी की गई. करीब डेढ़ साल तक इसपर रिसर्च किया, लेकिन सामने आया कि जिन स्कूलों में शिक्षक बढ़ाए गये हैं वहां के परिणाम ज्यादा सकारात्मक नहीं है. ऐसे में निष्कर्ष निकाला गया कि स्कूलों के मुलभूत ढांचे में ही बदलाव करने से शिक्षा में सुधार आ सकता है.

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सेवा मंदिर में अभिजीत के साथ कार्य करने वाले कई लोग आज भी मौजुद है, जिन्हें इस बात की खुश हैं कि सेवामंदिर के किए गए रिसर्च आज पुरी दुनिया में प्रसिद्धी पा रहे है. वहीं वर्ष 1996 में सेवा मंदिर के सीईओ रहे अजय मेहता के द्वारा ही अभिजीत को उदयपुर आने का न्योता दिया गया, उसके बाद उन्होंने करीब12-13 वर्षों तक संस्थान से संपर्क रखा और अपने शोध को आगे बढ़ाया.

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इस बीच वे कई बार उदयपुर भी आए और यहां के आदिवासी अंचल में अपने रिसर्च के प्रभाव को जानने की कोशिश की, मजे की बात तो यह हैं कि इंसेंटिव फार्मुला भी यहां पुरी तरह से लागू हुआ. अभिजीत का मानना था कि अच्छे कार्य की सफलता के लिए यदि थोड़ा लालच दिया जाए तो उसमें बुराई नहीं है. अभिजीत ने सेवामंदिर के साथ जब आदिवासी अंचल में टीकाकरण की स्थिति जानी तो स्थिति बेहद विकट नजर आई.

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टीकाकरण की दर सिर्फ सात फिसदी थी. ऐसे में इस आंकड़े को बढ़ाने के लिए पहले अभिजीत ने सप्ताह में एक दिन तय किया, जब नर्स टिकाकरण करती, उससे आंकड़ा सिर्फ दस फिसदी बढ़ पाया इस बीच इंसेंटिव कंसेप्ट ने अपना कमाल दिखाया और अभिजीत द्वारा टीकाकरण के एवज में एक किलो मुंग दाल देने का एलान कर दिया. इसके बाद टीकाकरण के परिणाम चौकाने वाले थे. अचानक से टीकाकरण को लेकर आदिवासी अंचल में लोगों का रूझान दिखने लगा. यहीं नहीं इंसेटिंव कंसप्ट अध्यापकों की गैर हाजिरी रोकने में भी सफल रहा.

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दरअसल सेवामंदिर के शिक्षण संस्थानो में अध्यापकों की गैर हाजिरी ज्यादा रहने लगी थी, ऐसे में अभिजीत ने कैमरा मॉनिटरिंग सिस्टम के साथ ही 20 दिन से ज्यादा उपस्थित रहने वाले शिक्षकों को इंसेटिव देने का निर्णय लिया. इसे भी जब कुछ महीने चलाया गया तो अनुपस्थित रहने वाले अध्यापकों का ग्राफ 42 फिसदी से घटकर महज 21 फिसदी रह गया. अभिजीत बनर्जी का इंसेंटिव कंसेप्ट ने आदिवासी अंचल गजब का कमाल किया और आज भी सेवा मंदिर संस्थान किसी प्रोजेक्ट को सफल करने के लिए इस फार्मुले को अपनाने से नहीं चुकती है. बहरहाल रेंडम कंट्रोल ट्रायल्य मैथेडॉलॉजी प्रणाली के तहत किए गए शोध के चलते अभिजीत को नोबल पुरस्कार मिला हैं और उदयपुर वासियों के लिये गौरव की बात यह हैं कि अभिजीत ने इसका शुरूआती शोध उदयपुर के आदिवासी अंचल में किया है.

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