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Special : महज 12 साल की उम्र में कोरियोग्राफर बनने वाली विजयलक्ष्मी, राजस्थानी लोक नृत्य को विश्व में दिलाई पहचान - विजयलक्ष्मी का संघर्ष

कहते हैं, कुछ कर गुजरने के इरादे हों तो हर कमजोरी ताकत बन जाती है. ऐसा ही कर दिखाया है उदयपुर की रहने वाली विजयलक्ष्मी आमेटा ने. गरीबी की बेड़ियों को तोड़ते हुए विजयलक्ष्मी ने सफलता की ऐसी लकीर खींची कि आज वे देश-दुनिया की सुप्रसिद्ध नृत्यांगनाओं में शुमार हैं. हालांकि, यह सफलता इतनी आसान नहीं थी, विजयलक्ष्मी के लिए. मुश्किल परिस्थितियों और चुनौतियों को चीरते हुए विजयलक्ष्मी ने अपने बुलंद इरादों के साथ पिता के आशीर्वाद से हर मुश्किल पर जीत हासिल की. जानिये विजयलक्ष्मी के संघर्ष की कहानी ईटीवी भारत की इस खास पेशकश में...

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विजयलक्ष्मी का संघर्ष...

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Published : Mar 1, 2021, 1:49 PM IST

उदयपुर. आज हम बात कर रहे हैं राजस्थान के एक ऐसी बेटी की जिसने पिता के सपने को साकार करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी. आर्थिक तंगी होने के बावजूद भी गरीबी की बेड़ियां उसके सामने नतमस्तक साबित हुईं. बचपन में ही नृत्य को लेकर विजयलक्ष्मी को ऐसा जुनून चढ़ा कि पिता ने बच्ची को नृत्य के प्रति रुझान देखकर अपनी साइकिल पर बिठाकर विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित नृत्य प्रशिक्षण शिविरों में ले जाने लगे. बचपन में ही उनपर नृत्य का जुनून सवार हो गया और कुछ सालों बाद में कोरियोग्राफर बन गईं. वहीं, पिता ने भी भरपूर बेटी का साथ दिया. उसी समय राजमणि जी से भटनागर की बेसिक का भी ज्ञान प्राप्त किया और आभा माथुर से लोक नृत्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया.

महज 12 साल की उम्र में कोरियोग्राफर बनने वाली विजयलक्ष्मी...

गुलजार और जया बच्चन ने भी की थी तारीफ...

वर्ष 1990 में उदयपुर में आयोजित चिल्ड्रन फिल्म फेस्टिवल में भाग लेने के लिए कई बार जगदीश चौक से शिल्पग्राम तक पैदल जाती थी. इस दौरान मशहूर लेखक गुलजार और जया बच्चन ने भी इनकी कला के प्रति समर्पण की देख तारीफ और सराहना की थी. साल 1992 में देश के जाने-माने रंग निदेशक श्री भानु भारती जी जो उस समय भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक भी थे. उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के रंगमंच कार्यशाला का आयोजन किया, जहां 1 महीने तक नाट्य विधा के विभिन्न विषयों के जाने-माने निर्देशकों के साथ मंच सजा अभिनय की बारीकियों को वहां से सीखा.

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वहीं, प्रशिक्षण के बाद भानु भारती ने विजयलक्ष्मी को लोक कला मंडल में बतौर लोक कलाकार नियुक्ति दे दी. उस वक्त में विजयलक्ष्मी सुबह स्कूल जातीं और दोपहर से शाम तक संस्था के वरिष्ठ कलाकारों के सानिध्य में विभिन्न लोक नृत्य, धागा कठपुतली सीखने का अभ्यास एवं प्रदर्शन करतीं. यहीं साल 1994 में अभिनय के क्षेत्र में काम करने वाले महेश आमेटा से उनकी मुलाकात हुई और दोस्ती मोहब्बत में बदल गई. माता-पिता की सहमति के साथ साल 1998 में दोनों का विवाह हो गया.

लोक नृत्य की छाप दुनिया भर में बिखेरी...

करीब 200 प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण शिविरों में मुख्य भूमिका...

वहीं, घर सिटी पैलेस के पास होने से यहां आने वाले विभिन्न देश-दुनिया के सुप्रसिद्ध कलाकारों से मुलाकात हुई. सिटी पैलेस में आयोजित होने वाले नृत्य के विभिन्न कार्यक्रमों की आवाज सुनकर विजयलक्ष्मी की धड़कनों में जान आ जाती और विभिन्न कार्यक्रमों को देखने यहां पहुंचती. विजयलक्ष्मी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटेन के ग्लासगो मेले में प्रस्तुति देने का अवसर उन्हें प्राप्त हुआ. बतौर स्वतंत्र कलाकार काम करने की इच्छा के चलते लोक कला मंडल की नौकरी छोड़ दी. 1998 से अपना दल तैयार किया और भारत के कई जगहों पर प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण का कार्य किया, जिसमें लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी की अविस्मरणीय यादें जुड़ी हैं.

विजयलक्ष्मी का संघर्ष...

वहीं, 2003 में पहले इफो एशियन गेम्स हैदराबाद में राजस्थान की टीम का कोरियोग्राफर करने काम किया. वहीं, शिमला में 2004 से 2017 तक फ्रांस के संस्थागत और तेत-ओ-थेत के साथ फ्रांस के विभिन्न शहरों व प्रमुख मंचों पर राजस्थान के लोक नृत्य एवं कठपुतली के करीब 200 प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण शिविरों में मुख्य भूमिका में रहीं. साल 2005 में अमेरिका में आयोजित अंतरराष्ट्रीय चिल्ड्रन फेस्टिवल में राजस्थानी लोक नृत्य का प्रशिक्षण देने के रूप में कार्य किया. साल 2005 में ही इंग्लैंड के कई शहरों में प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण का कार्य किया.

मुश्किल परिस्थितियों का किया सामना...

यह चाहती हैं विजयलक्ष्मी...

आपको बता दें कि उदयपुर आने वाले विदेशी पर्यटकों और स्थानीय लोगों को विजयलक्ष्मी लोक नृत्य भवई, चरी, तेरहताल, घूमर डांस लीला आदी की बारीकियों से रूबरू करवाती हैं. वहीं, शहर के आसपास और अन्य जगह के लोगों को जिन्हें नृत्य का जुनून है, उन्हें भी जानकारी देती हैं. उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण के दौरान ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से बच्चों को निशुल्क प्रशिक्षण दिया गया. उन्होंने बताया कि भविष्य में शहर के आसपास ऐसे केंद्र स्थापना करना चाहती हैं, जहां नियमित नृत्य का प्रदर्शन हो. इसमें ग्रामीण बच्चों को भी मंच के माध्यम से उन्हें कला से रू-ब-रू करवाया जाए, जिससे गांव से आने वाले बच्चे भी अपना नाम रोशन कर सकें.

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