उदयपुर.राजस्थान के उदयपुर से 60 किलोमीटर दूर सलूंबर तहसील के ईडाणा गांव में स्थित है एक अनोखा मंदिर ( (Mewal ki maharani mandir in udaipur) ). जिसे ईडाणा माता या मेवल की महारानी नाम से जाना जाता है. ये मंदिर इसलिए अनोखा है क्योंकि माता रानी अग्नि स्नान करती हैं.देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इस देवी स्थल की ख्याति है. दूर-दूर से लोग मां का आशीर्वाद लेने आते हैं.
माता रानी के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए देश-दुनिया से बड़ी संख्या में भक्त (Udaipur idana mata mandir) पहुंचते हैं. इतना ही नहीं माता के दरबार में बीमारियों से ग्रसित लोग भी आते हैं, और बिल्कुल स्वस्थ्य होकर हंसी-खुशी अपने घर जाते हैं. सबकी मनोकामना पूरी करने वाली ईडाणा माता को मेवल की महारानी भी कहते हैं. ईटीवी भारत की टीम भी इस अनोखे मंदिर को देखने के लिए माता रानी के दरबार में पहुंची. हमें यहां के भक्तों ने बताया कि ईडाणा माता का ये मंदिर करीब 5000 साल पुराना है.
ये है मंदिर की मान्यता: ऐसा माना जाता है कि ईडाणा माता एक बरगद पेड़ के नीचे प्रकट हुई थीं. कालांतर में क्षेत्र से गुजर रहे एक संत को स्वयं माता रानी ने एक कन्या के रूप में दर्शन देते हुए वहीं रहने का निवेदन किया. संत ने खूब भक्ति आराधना के साथ उनकी पूजा की तो कुछ ही दिनों में यहां अलग-अलग चमत्कार होने लगे. माता के चमत्कार के कारण नेत्रहीनों को दिखाई देने लगा, लकवाग्रस्त लोग ठीक होने लगे, निःसंतानों को औलाद होने लगे. धीरे-धीरे माता रानी की मान्यता देश-दुनिया में बढ़ने लगी. यहां भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने से मंदिर का प्रचार-प्रसार भी फैलने लगा. गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,अन्य राज्यों के अलावा देश के कोने-कोने से भक्त आने लगे.
अग्नि स्नान के कारण प्रसिद्ध: देश-दुनिया का ये एकमात्र मंदिर है, जहां माता रानी स्वयं अपने मंदिर में अग्नि स्नान करती हैं. भक्तों ने बताया कि माता रानी के ऊपर भार होते ही माताजी अग्नि स्नान कर लेती हैं. जिसमें माता को चुनरी और अन्य कपड़े आदि का चढ़ावा चढ़ाया जाता है. अग्नि स्नान के साथ चढ़ावा के पहने कपड़े भी भस्म हो जाते हैं. इस दौरान अग्नि नजदीक के बरगद के पेड़ को भी चपेट में ले लेती है. लेकिन माता रानी की मूर्ति पर इस अग्नि स्नान से कोई असर नहीं होता. अग्नि स्नान के बाद भी माता की मूर्ति बिल्कुल सही सलामत रहती है. वहीं दूसरी तरफ माता के समीप अखंड ज्योत भी निरंतर जलती रहती है. अग्नि स्नान के दौरान भक्तों के चढ़ाए गए चुनरी, धागे सभी अग्नि स्नान में भस्म हो जाते हैं.