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स्पेशल: ये मूर्तिकार जो निर्जीव पत्थरों में भी फूंक देते हैं जान, रोजी-रोटी का संकट - वैश्विक महामारी कोरोना

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों की वजह से हर सेक्टर को भारी नुकसान पहुंचा है. इस महामारी ने हर वर्ग के लोगों को आर्थिक, शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर किया है. खासकर उन वर्ग को ज्यादा नुकसान पहुंचा है, जो अपने व्यवसाय पर ही आत्मनिर्भर थे.

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निर्जीव पत्थरों में भी फूंक देते हैं जान

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Published : Jan 11, 2021, 11:30 AM IST

उदयपुर.झीलों के शहर उदयपुर में भी बीते साल 2020 में पर्यटन क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा है. कोरोना के कारण जहां पर्यटक घरों में दुबके रहे. इस वजह से उदयपुर घूमने आने वाले लोगों की संख्या में भारी गिरावट आई. इसकी वजह से पर्यटन के साथ जुड़े हुए अन्य वर्ग के व्यवसायियों को भी नुकसान पहुंचाया है. कुछ ऐसी ही हालत है झीलों के शहर उदयपुर में मूर्तिकारों की, जिन पर रोजी-रोटी का संकट छाया हुआ है.

निर्जीव पत्थरों में भी फूंक देते हैं जान

Etv Bharat की टीम उदयपुर में स्थित सहेलियों की बाड़ी पहुंची. जहां देखा कि पत्थर को हाथों की कलाकृतियों के साथ बिना मशीन के उपयोग किए छीनी और अन्य औजारों की सहायता से मूर्तिकार मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं. जब उनसे वर्तमान स्थिति में उनके व्यवसाय को लेकर बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि उनका व्यवसाय पूरी तरह से हस्तनिर्मित है. इसमें किसी प्रकार की मशीनरी का प्रयोग नहीं किया जाता.

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कई प्रकार की बनाई जाती हैं मूर्तियां...

मूर्तिकारों ने बताया कि पत्थर को इस प्रकार तराशा जाता है कि उसमें कई प्रकार की मूर्तियां निर्मित हो सकें. उन्होंने बताया कि पहले के मुकाबले हमारे व्यवसाय में भारी गिरावट आई है. क्योंकि बीते साल जहां लॉकडाउन की वजह से पूरा व्यवसाय प्रभावित हुआ. लेकिन अभी भी लोगों में कोरोना का भय नजर आता है.

कानपुर से खरीदते हैं पत्थर

मूर्तिकारों ने बताया कि कानपुर मादड़ी से वह लोग पत्थर खरीद कर लाते हैं और इन्हें तरासते हैं. हाथों से फिर मूर्ति को दिन भर में बनाने की कोशिश करते हैं. पहले अच्छा खासा धंधा होता था. लेकिन अभी भारी गिरावट आई है.

रोजी-रोटी का संकट

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मूर्तिकार सुनील का कहना है कि बिना मशीन का उपयोग किए हुए हम हमारी कला के साथ मूर्तियों का निर्माण करते हैं. लेकिन बाहर से देशी और विदेशी पर्यटक कम होने की वजह से मूर्तियां कम बिक रही हैं. इसकी वजह से परिवार में भरण-पोषण करने में भी कई परेशानियां उत्पन्न होने लगी हैं. सुनील ने बताया कि पिछले 25 साल से इस काम में लगा हुआ है. उनका परिवार भी यही काम करता है. उन्होंने बताया कि पहले 1,500 से 2 हजार रुपए तक का व्यवसाय होता था. लेकिन अब आधे से भी कम हो रहा है. वहीं मूर्तिकारों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है कि हम लोगों की आर्थिक मदद की जाए.

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