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'इंटरनेशनल टाइगर डे' पर उदयपुर में कार्यशाला का आयोजन, इस अहम मुद्दे पर हुई चर्चा

'इंटरनेशनल टाइगर डे' के मौके पर सोमवार को उदयपुर के सूचना केन्द्र में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि राजस्थान वानिकी प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक और भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. एनसी जैन रहे.

'इंटरनेशनल टाइगर डे' पर उदयपुर में टाइगर को बचाने पर हुआ मंथन

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Published : Jul 30, 2019, 12:03 AM IST

उदयपुर. 'इंटरनेशनल टाइगर डे' के मौके पर सोमवार को विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला को डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और वन विभाग ने आयोजन करवाया. तत्वावधान कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि राजस्थान वानिकी प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक और भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ.एनसी जैन मौजूद रहे.

'इंटरनेशनल टाइगर डे' पर उदयपुर में टाइगर को बचाने पर हुआ मंथन

इस दौरान जैन ने कहा कि मेवाड़ में टाइगर पुनर्वास की प्रबलतम संभावनाएं हैं, लेकिन आमजनों में टाइगर के प्रति सकारात्मक सोच के विकास के माध्यम से ही यह प्रयास सफल होंगे. उन्होंने कहा कि क्षेत्र में स्थानीय वनस्पति में तेजी से विनाश हो रहा है और इससे खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो रही है. इसका दुष्प्रभाव वन्यजीवों पर हो रहा है. ऐसी स्थिति में यहां से विदेशी खरपतवार को हटाने और स्थानीय वनस्पति को पनपाने की आवश्यकता है.

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक राहुल भटनागर ने कहा कि मेवाड़ पूर्णरूप से टाइगर के पुनर्वास के लिए मुफिद है और हाल ही में सरकार ने टाइगर के पुनर्वास के लिए वैकल्पिक स्थानों के चयन की घोषणा की है. जिसमें कुंभलगढ़ और रावली टाडगढ़ क्षेत्र के प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है. उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा 'इंटरनेशनल टाइगर डे' पर जारी किए गए आंकड़ों के बारे में बताया .

उन्होंने कहा कि राजस्थान में वर्ष 2006 में कैमेरा ट्रेप में 32 टाइगर चिह्नि थे. वहीं वर्ष 2010 में 36, वर्ष 2014 में 45 तथा वर्ष 2018 में 69 टाइगर चिह्नित हुए है, जो कि टाइगर की वंशवृद्धि को बता रहे हैं. इस मौके पर राजस्थान टाइगर प्रोजेक्ट से जुड़े टाइगर एक्सपर्ट रघुवीरसिंह शेखावत ने सरिस्का अभयारण्य के अनुभवों के आधार पर कहा कि 75 से 100 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र 10 टाइगर के लिए उपयुक्त होगा, यदि उसमें पर्याप्त मात्रा में उचित भोजन की उपलब्धता हो, उन्होंने इसके लिए हमारे मॉनिटरिंग सिस्टम को तकनीकी रूप से अत्यधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता भी प्रतिपादित की. शेखावत ने कहा कि एलपीजी के कारण जंगलों के विनाश को रोकने में मदद मिली है.

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कार्यशाला में रिटायर्ड डीएफओ वीएस राणा, प्रतापसिंह चौहान और लायक अली खान, वन्यजीव विशेषज्ञ प्रदीप सुखवाल, देवेन्द्र मिस्त्री, अनिल रोजर, विनय दवे, प्रदीप कौशिक, प्रीति मुर्डिया, पुष्पा खमेसरा, विश्वप्रतापसिंह चुण्डावत,सहित बड़ी संख्या में विशेषज्ञों ने विचार व्यक्त किए. कार्यशाला का संचालन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अरूण सोनी ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन की रस्म जनसंपर्क उपनिदेशक कमलेश शर्मा ने अदा की.

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