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Special: कोरोना काल में बाल मजदूरी के दलदल में फंस रहे नौनिहाल, दूसरे राज्यों में भी पलायन, जिम्मेदार मौन?

कोरोना की दूसरी लहर के बाद हालात सामान्य होते नजर आ रहे हैं. लेकिन राजस्थान के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में कोरोना की वजह से परिवारों का भरण-पोषण करना भी मुश्किल हो गया है. आलम यह है कि छोटे-छोटे बच्चे दो वक्त के भोजन की तलाश के लिए दूसरे राज्यों में जाकर बाल श्रम कर रहे हैं.

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Published : Jul 23, 2021, 7:10 PM IST

Updated : Jul 23, 2021, 9:02 PM IST

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बाल श्रम पर कैसे लगेगी लगाम?

उदयपुर:कोरोना की वजह से बालश्रम में बढ़ोतरी हुई है. 2 साल से स्कूल बंद होने और रोजगार के लिए बड़ी तादाद में लोगों के पलायन (Migration) के कारण भी हजारों बच्चों के बाल मजदूर बनने की नौबत आई है. कोरोना काल में बड़ी तादाद में ऐसे बच्चे भी सामने आए हैं, जिनके सर से माता-पिता का हाथ हमेशा के लिए उठ गया. बड़े पैमाने पर ऐसे बच्चों के भी बाल मजदूर बनने की आशंका गहराई है. गरीबी की वजह से बच्चे पैसे कमाने के लिए मजदूरी करते हैं. कुछ बच्चे परिवार की आय बढ़ाने के लिए भी बाल श्रम करते हैं जबकि कई लोग दो वक्त की रोटी के लिए यानी अपना पेट भरने के लिए मजदूरी करते हैं.

उदयपुर जिले के जनजाति अंचल से मजदूरी के लिए गुजरात, महाराष्ट्र और दूसरे बड़े शहरों में रोजगार के लिए गए लोग कोरोना की दूसरी लहर में वापस अपने गांव लौटे. इनमें बड़ी संख्या में बाल श्रमिक भी हैं. उदयपुर के स्वयंसेवी संगठनों गायत्री सेवा संस्थान एवं बाल सुरक्षा नेटवर्क ने एक सर्वे कराया है. जिसमें करीब 400 से ज्यादा बाल श्रमिकों को चिन्हित कर श्रम विभाग और बाल आयोग को जानकारी दी गई. लेकिन बच्चों को ऐसा कोई नया काम नहीं सिखाया गया. जिससे वे फिर से उस दलदल में ना जाएं और अपने हुनर के बल पर काम सीख सकें.

बाल श्रम पर कैसे लगेगी लगाम?

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बच्चों के पुनर्वास का काम भी चल रहा है लेकिन पुनर्वास किए गए बच्चों को राज्य सरकार की योजनाओं से जोड़ने में शासन-प्रशासन नाकाम दिख रहा है. उदयपुर जिले में साल 2019 में 125 बच्चे, साल 2020 में 215 बच्चे और साल 2021 में 340 यानी 452 बच्चों में से 448 बच्चों का पुनर्वास कराया जा चुका है. कई बच्चे विभाग के शेल्टर होम में भी हैं.

दरअसल बालश्रम को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं. लेकिन यह बातें धरातल तक उतरते-उतरते रसातल में समा जाती हैं. बाल श्रम से जुड़े बच्चों के लिए विभाग की दो महत्वपूर्ण योजनाएं है. जिनके जरिए बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही की वजह से यह योजनाएं बच्चों तक नहीं पहुंच सकी हैं. राजस्थान सरकार की दो प्रमुख योजनाएं हैं. पालनहार योजना और मुख्यमंत्री हुनर विकास योजना. हमने दोनों ही योजनाओं की हकीकत जानने की कोशिश की है.

जिस पैमाने पर बच्चे दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश के लिए जा रहे हैं. उसकी तुलना में मुख्यमंत्री हुनर विकास योजना दम तोड़ती हुई नजर आ रही है. विभाग द्वारा पालनहार योजना में जितने बच्चों को जोड़ा जा रहा है. उसकी तुलना में मुख्यमंत्री हुनर विकास योजना में नाममात्र के बच्चों ने भाग लिया.

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पालनहार योजना के आंकड़े

पालनहार योजना SC (साल 2019-20), बालक- 931, बालिका-776, कुल- 1702

पालनहार योजना ST (साल 2019-20), बालक- 5204, बालिका- 4171, कुल- 9375

पालनहार योजना Gen (साल 2019-20), बालक- 4539, बालिका- 8626, कुल- 19295

पालनहार योजना SC(2020-21),बालक-996, बालिका-856, कुल-1852

पालनहार योजना ST(2020-21), बालक- 6768, बालिका- 5349, कुल- 12217

पालनहार योजना Gen(2020-21), बालक- 13116, बालिका- 10524, कुल- 23713

मुख्यमंत्री हुनर विकास योजना के आंकड़े

मुख्यमंत्री हुनर विकास योजना (2019-20), बालक-22, बालिका14, कुल- 36

मुख्यमंत्री हुनर विकास योजना (2020-21), बालक- 14, बालिका- 15, कुल- 29

विभाग द्वारा बच्चों का बड़ी संख्या में पुनर्वास तो कराया जा रहा है लेकिन उन बच्चों को सरकार की महत्वकांक्षी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा.

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राजस्थान बाल संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ. शैलेंद्र पंड्या के मुताबिक राजस्थान बाल आयोग लगातार इस दिशा में काम कर रहा है. बाल श्रम को रोकने के लिए सख्ती से कार्रवाई की जाएगी. खासकर बाल श्रम रेस्क्यू से ज्यादा बाल श्रमिकों के पुनर्वास और उस व्यक्ति के खिलाफ सख्त कार्रवाई पर ध्यान दिया जाएगा.

Last Updated : Jul 23, 2021, 9:02 PM IST

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