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सचिन पायलट के पास अब कौनसे विकल्प बचे हैं, क्या हो पाएगी घर वापसी?

राजस्थान में लगातार सियासत की जंग जारी है. सचिन पायलट ने यह तो साफ कर दिया है कि वे भापा में नहीं जाने वाले, लेकिन उनका दाव क्या होगा इसका इंतजार सभी को है. मौजूदा हालातों में देखा जाए तो सचिन पायलट के पास अब कुछ ही विकल्प बचे हैं. अगर वे थर्ड फ्रंट बनाने पर विचार करते हैं तो राजस्थान का इतिहास इस बात का गवाह है कि, कामयाबी मिलना मुश्किल है.

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राजस्थान में जारी सत्ता की सियासत

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Published : Jul 16, 2020, 10:29 AM IST

Updated : Jul 16, 2020, 10:43 AM IST

जयपुर.राजस्थान में कांग्रेस पार्टी में चल रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के गुटों के बीच सियासी घमासान के बीच अब एक बात बिल्कुल साफ हो गई है कि सचिन पायलट की एंट्री कांग्रेस में होना लगभग नामुमकिन है. जिस तरीके से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट पर खरीद-फरोख्त में शामिल होने का सीधे आरोप लगाया है उसके बाद इसकी संभावना न के बराबर हो गई है. अगर ऐसा हुआ भी तो राजस्थान में उनकी भूमिका कम ही रह जाएगी. वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पायलट ने भाजपा में जाने से भी इनकार कर दिया है. ऐसे में अब सवाल यह है कि सचिन पायलट के सामने क्या विकल्प है.

भाजपा का दामन

पहला विकल्प ये है किसचिन पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह भाजपा का दामन थाम लें, लेकिन इससे पायलट ने साफ तौर पर इनकार कर दिया है. इसके पीछे वजह ये भी है कि अभी तक पायलट के पास उतना संख्याबल नजर नहीं आ रहा जिससे सरकार को हानी पहुंच सके और भाजपा के साथ मिलकर नई सरकार बनाई जा सके.

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अपनी पार्टी बना लें

भाजपा में शामिल होने की खबरों पर सचिन पायलट ने साफ तौर पर कहा है कि ऐसा करके उनकी इमेज खराब करने की कोशिश की जा रही है. तो भाजपा का विकल्प भी दूर की कड़ी हो गया है. जिस तरह से पद से हटाए जाने के बाद सचिन पायलट के पक्ष में इस्तीफे हुए हैं, उसे देख कर महज एक ही रास्ता नजर आ रहा है कि पायलट केअपनी नई पार्टी का गठन कर ले. हालांकि अभी प्रदेश में सियासी गुणा भाग चल रहा है और पायलट ने अपने पत्ते भी नहीं खोले हैं. ऐसे में पार्टी के गठन को लेकर बात करना जल्दबाजी होगी.

लेकिन एक नजर राजस्थान के सियासी इतिहास पर भी दौड़ानी होगी. प्रदेश में अब तक टू-पार्टी सिस्टम ही रहा है. या तो भाजपा या फिर कांग्रेस. किसी तीसरी पार्टी को राजस्थान में ज्यादा तवज्जों नहीं मिली है. महज बसपा कि वह राष्ट्रीय पार्टी है जो कांग्रेस और भाजपा के होते हुए भी राजस्थान की कुछ सीटों पर जीत दर्ज करती रही है, लेकिन उनके विधायक टूटकर कांग्रेस के साथ चले जाते हैं. ऐसा दो बार हो चुका है. वहीं, क्षेत्रीय पार्टियां जो राजस्थान में कम ही कार्य कर रही है और उन्हें अपना विलय भाजपा या कांग्रेस में करना पड़ा है.

जनता दल-राजस्थान में तीसरे मोर्चे की शुरुआत जनता दल के साथ ही मानी जाती हैं. जब पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत ने जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई थी. लेकिन बाद में जनता दल का भाजपा में विलय करवा लिया गया. राजेंद्र राठौड़, डॉक्टर चंद्रभान, माहिर आजाद, मोहन प्रकाश जैसे नेता जनता दल से ही निकले, लेकिन यह नेता जरूर अलग-अलग पार्टियों के बड़े नेता बने लेकिन जनता दल भाजपा में विलय हो गया.

सामाजिक न्याय मंच-भाजपा नेता देवी सिंह भाटी ने आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग के साथ अपनी पार्टी सामाजिक न्याय मंच का गठन किया. साल 2003 में सामाजिक न्याय मंच ने राजस्थान में 65 प्रत्याशी उतारे, लेकिन सिवाय देवी सिंह भाटी के कोई भी चुनाव नहीं जीत सका. चुनाव नहीं लड़ने के चलते अब इस पार्टी की मान्यता भी रद्द हो चुकी है.

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राजपा (राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी )

भाजपा से अपने मतभेद के चलते किरोड़ी लाल मीणा ने भाजपा छोड़ी और एनपीपी में चले गए. साल 2013 में उनकी 4 सीटें भी आई तो कई सीटों पर वह दूसरे और तीसरे स्थान पर भी रहे, लेकिन 5 साल निकलते निकलते पार्टी का दम फूल गया और किरोड़ी लाल मीणा समेत सभी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया.

जमींदारा पार्टी-व्यापारी बीडी अग्रवाल ने जमींदारा पार्टी का गठन किया जिससे जीत कर दो विधायक भी साल 2013 में आए, लेकिन साल 2018 में इस पार्टी का अस्तित्व अब ना के बराबर है.

बसपा-राजस्थान में एकमात्र पार्टी बसपा ऐसी है जो राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के बाद अपना एक वोट बैंक रखती है, लेकिन बसपा के साथ दिक्कत यह है कि उनके विधायक जीतकर कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लेते हैं. साल 2008 में बसपा के 6 विधायक जीत कर आए थे जिन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली. तो साल 2018 में एक बार फिर बसपा के सभी 6 विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. ऐसे में भले ही बसपा की टिकट पर विधायक जीतकर आते हो, लेकिन बसपा की झोली खाली रह जाती है.

भारत वाहिनी पार्टी-कभी भाजपा के दिग्गज नेता कहलाए जाने वाले घनश्याम तिवारी ने राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से नाराजगी के चलते अपनी नई पार्टी का गठन किया, लेकिन खुद घनश्याम तिवारी भी अपनी सीट नहीं बचा पाए. बाद में वाहिनी को घनश्याम तिवारी ने कांग्रेस पार्टी में समायोजित कर दिया.

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आरएलपी-भाजपा से नाराज होकर हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाई. हनुमान बेनीवाल ने 2018 के विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन 3 सीटों पर ही उन्हें जीत मिली. हालांकि लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ गठबंधन में आरएलपी आ गई है जिससे उनका एक सांसद भी राजस्थान में है. हालात यह हुए की पार्टियों की मान्यता भी समाप्त करनी पड़ी.

राजस्थान की बात की जाए तो यहां कई राजनीतिक दलों ने मान्यता ली, लेकिन यह राजनीतिक पार्टियां महज कागजी पार्टियां ही बनकर रह गई. इनमें अखिल भारतीय राष्ट्रीय आजाद पार्टी, अन्नदाता पार्टी, भारतीय हिंदू सेना, देवसेना पार्टी, गोल्डन इंडिया पार्टी, राजस्थान सामाजिक न्याय मंच, राजस्थान वीर सेना, राजस्थान भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा, राष्ट्रीय जन सेवक परिषद, राष्ट्र उत्थान पार्टी, सर्वोदय पार्टी और राष्ट्रीय महासंघ जैसे कई छोटी पार्टियां रही जिन की मान्यता चुनाव आयोग को रद्द करनी पड़ी.

Last Updated : Jul 16, 2020, 10:43 AM IST

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