सीकर. कारगिल विजय दिवस यानी 26 जुलाई. यह वो दिन था जब तीन महीने तक चले युद्ध के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया था. देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए हमेशा आगे रहने वाले शेखावाटी के रणबांकुरों का इस विजय में सबसे बड़ा योगदान रहा है.
शेखावाटी की धरती को शहीदों की धरती कहा जाता है और कारगिल में हुए पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध में भी शेखावाटी के जवानों ने देश के लिए कुर्बानी दी. आज यहां जिले के गांव-गांव में शहीदों की गाथाएं सुनाई जाती हैं. सीकर जिले की बात की जाए तो करगिल युद्ध में यहां के 6 जवान शहीद हुए थे. इनमें बनवारीलाल बगड़िया, दयाचंद जाखड़, विनोद नागा, श्योदानाराम, सीताराम कुमावत और गणपत सिंह का नाम शामिल है.
ये हैं सीकर के शहीदों की गाथाएं :
कड़ी यातनाएं सहने के बाद भी रखा देश का मान...
सीकर जिले के रहने वाले शहीद बनवारीलाल बगड़िया का फौज में जाना हमेशा से ही सपना था. 10वीं की पढ़ाई करने के बाद ही उनका चयन जाट रेजीमेंट में हुआ था. बॉर्डर पर तैनाती के दौरान ही दादी का निधन हो गया था. छुट्टी ना मिलने के कारण वे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाए थे. कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो उनको कैप्टन सौरभ कालिया और चार जवानों के साथ जम्मू के बजरंग सेक्टर में तैनात किया गया.
15 मई 1999 को लड़ते-लड़ते गोला बारूद खत्म हो गया था. जिसके बाद वे दुश्मनों की गिरफ्त में आ गए. एक महीने तो दुश्मन ने उनको कड़ी यातनाएं दी, लेकिन उनसे कुछ भी जानकारी हासिल नहीं कर पाए. दुश्मन ने उनकी आंखें निकाल ली थी, जीभ और नाक काट दिए थे. करीब एक महीने बाद उनका पार्थिव शरीर उनके गांव पहुंचा था. वीरांगना संतोष देवी कहती हैं कि उनके पति ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. आज भी अगर चीन से युद्ध होता है तो हमारी सेना ही जीत हासिल करेगी.