नागौर. राजस्थान को शूरवीरों की धरती कहा जाता है. यहां की मिट्टी में जन्म लेने वाले कई महापुरुष हुए. जो परमार्थ के लिए अपने प्राणों तक की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटे. ऐसे ही महापुरुषों में से एक हैं वीर तेजाजी महाराज. जो राजस्थान के साथ ही देश के कई हिस्सों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं.
तेजाजी ने 916 साल पहले दिया था बलिदान बता दें कि उनका जन्म नागौर के खरनाल गांव में हुआ था. उन्होंने न केवल गायों की रक्षा के लिए 150 चोरों का अकेले मुकाबला कर गायों को छुड़ाया. बल्कि वचन का पालन करने के लिए सांप को अपनी जीभ पर डसवाया और प्राण त्यागे.
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भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी ने बलिदान दिया था. यह दिन आज भी हर साल तेजा दशमी के रूप में मनाया जाता है. वीर तेजाजी की जन्मस्थली खरनाल में तेजादशमी पर हर साल मेला रहता है. जिसमें प्रदेशभर के अलवा देश के कई राज्यों से भी भक्त आते हैं. कई भक्त तो पैदल ही वीर तेजाजी के दर्शन को खरनाल पहुंचते हैं.
वहीं प्रचलित कथाओं के अनुसार तेजाजी अपनी पत्नी को लेने ससुराल जाते हैं और वहां लाछां नामक एक महिला के गायों को चोर चुरा ले जाते हैं. चोरों का आतंक इतना था कि गांव का कोई भी व्यक्ति लाछां की मदद को तैयार नहीं हुआ.
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तब तेजाजी अकेले ही अपनी घोड़ी लीलण को लेकर चोरों का मुकाबला करने निकल पड़े. रास्ते में उन्होंने देखा की एक सांप आग से जल रहा है. उन्होंने अपने भाले से उस सांप को आग से दूर कर दिया. इस पर सांप ने तेजाजी से कहा कि वह तो अपना हजार साल का जीवन पूरा कर मुक्ति पा रहा था. आपने बचकर गलत किया है. इसलिए मैं आपको डसुंगा.
वहीं तेजाजी ने कहा की गायों को चोरों से छुड़ाकर लाने के बाद वह वापस आएंगे. तब डस लेना. चोरों से मुकाबला करते हुए तेजाजी का शरीर लहुलुहान हो गया था. फिर भी वे सांप के पास पहुंचे और वचन के मुताबिक डसने को कहा. उनके लहुलुहान होने की बात कहकर सांप ने डसने से इनकार किया तो तेजाजी ने अपनी जीभ पर सांप को डसवाया और वचन का पालन किया.