नागौर. सूबे की राजनीति में चल रही उठापटक और कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी खींचतान का असर नागौर की राजनीति पर भी अब साफ दिखने लगा है. कांग्रेस में लंबे समय से चल रही गुटबाजी के कारण नागौर में भी दो गुट बने हुए थे. बीते दिनों सचिन पायलट की प्रदेशाध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री के पद से विदाई और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मजबूत हुई स्थिति का असर नागौर की राजनीति पर साफ दिखाई देने लगा है.
कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे की बात करें तो एक तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थक अब मुखर होने लगे हैं. वहीं, सचिन पायलट के समर्थकों ने फिलहाल चुप्पी साध ली है. अब तक इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी साधे बैठी भाजपा ने भी अपने नेताओं पर आरोप लगने के बाद कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
पढ़ें-LIVE : राजस्थान में बदलते राजनीतिक घटनाक्रम की हर अपडेट यहां देखें...
साल 2018 के विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण की बात करें तो जिले की 10 सीट में से 3 सीटों पर सचिन पायलट के करीबियों को टिकट मिला था. जबकि बाकी के 7 सीटों पर अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वालों को टिकट दिए गए. सचिन पायलट के करीबी माने जाने वाले तीनों प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे, जबकि बाकी 7 में से 3 प्रत्याशियों को जीत मिली.
वर्तमान के राजनीतिक घटनाक्रम को देखें तो पायलट खेमे के तीन में से दो विधायक अभी भी उनके पाले में बने हुए हैं, जबकि एक विधायक गहलोत के खेमे में पहुंच गए हैं. पायलट खेमे के परबतसर विधायक रामनिवास गावड़िया और लाडनूं विधायक मुकेश भाकर खुलकर पायलट के पक्ष में उतर आए हैं और लगातार ट्वीट कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर निशाना साध रहे हैं. जबकि डीडवाना विधायक चेतन डूडी अब अशोक गहलोत के कैंप में लौट आए हैं.
बदल सकते हैं नागौर के राजनीतिक समीकरण...
प्रदेश की इस राजनीतिक उठापटक के पटाक्षेप के बाद नागौर जिले में सियासी समीकरण तो बदलेंगे ही, साथ ही प्रदेश के मंत्रिमंडल में भी नागौर के विधायकों को मजबूती मिलने की उम्मीद है. अब तक कैबिनेट या राज्यमंत्री के तौर पर जिले के एक भी विधायक को जिम्मेदारी नहीं मिली है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि आने वाले समय में मुख्यमंत्री गहलोत के करीबियों को मंत्रिमंडल में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है.