नागौर. कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण देश के आर्थिक ढांचे में सुस्ती का माहौल है. इस आर्थिक सुस्ती से मकराना का मार्बल उद्योग भी अछूता नहीं है. करीब तीन महीने तक मकराना में मार्बल की खदानों के साथ ही संगमरमर के गोदामों में भी सन्नाटा पसरा रहा. अब लॉकडाउन में रियायत मिलने के बाद मार्बल खदानों से लेकर गोदामों तक हलचल शुरू हो चुकी है. लेकिन अभी मकराना के संगमरमर उद्योग में वैसी रंगत नहीं लौटी है, जैसी पहले रहती थी. मकराना में करीब 833 मार्बल खदान और 1500 से ज्यादा गोदाम हैं.
मार्बल खदानों में पहले जितने ग्राहक नहीं यहां कामकाज तो शुरू हो गया है, लेकिन खरीदारी की रफ्तार जोर नहीं पकड़ पा रही है. गोदामों में जो मार्बल लॉकडाउन के पहले से रखा हुआ था. उसकी खरीदारी के लिए थोड़े बहुत ही ग्राहक पहुंच रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन में ढील के बाद मार्बल खदानों से निकाला गया पत्थर अभी भी वहीं पड़ा है. कोरोनाकाल में आर्थिक ढांचे में सुस्ती के साथ ही फिलहाल आवाजाही के साधन जैसे ट्रैन और बस का पर्याप्त संख्या में नहीं चलना भी एक बड़ा कारण है.
ताजमहल, विक्टोरिया मेमोरियल, स्वर्ण मंदिर और अक्षरधाम मंदिर सहित देश-विदेश में कई मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में सफेदी की चमक बिखेरने वाला मकराना का संगमरमर आज खरीदारों को मोहताज है. इसका बड़ा कारण आर्थिक सुस्ती को माना जा रहा है.खदान मालिकों के कहना है कि लॉकडाउन में रियायत मिलने के बाद खदानों से मार्बल निकालने का काम शुरू कर दिया है. लेकिन अभी तक खरीदारी जोर नहीं पकड़ने से लागत भी नहीं निकल पा रहा है. खदान मालिक अब्दुल कयूम रांदड़ बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते करीब तीन महीने तक खदानें बंद रहीं. अब जैसे तैसे खदानों पर काम शुरू हुआ है. लेकिन जो संगमरमर निकल रहा है, उसके खरीदार नहीं आ रहे हैं. खदान मालिक पत्थर निकाल तो रहे हैं. लेकिन उसका उठाव नहीं हो रहा है. ऐसे में उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है.
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कई खदान मालिक उधार या ब्याज पर रुपए लाकर काम चला रहे हैं. लेकिन लागत तक नहीं निकलने के कारण परेशानी बढ़ती जा रही है. उनका कहना है कि लॉकडाउन में ढील मिलने के बाद हर चीज के दाम बढ़ गए हैं. मजदूरी से लेकर डीजल तक के भाव बढ़ने से खर्चा तो बढ़ गया है. लेकिन आय नहीं हो रही है. इसके चलते खदान मालिक कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं. उनका कहना है जल्द ही हालात नहीं सुधरे तो उन्हें और उनके जैसे कई खदान मालिकों को काम भी बंद करना पड़ सकता है. एक अन्य खदान मालिक मोहम्मद फारुख गैसावत बताते हैं कि मकराना का मार्बल उद्योग अभी काफी मंदा चल रहा है. लॉकडाउन से पहले जितने खरीदार आते थे. अभी उतने खरीदार नहीं आ रहे हैं. ऐसे में खदान मालिक या खदान से पत्थर आगे बेचने वालों की समस्या बढ़ जाती है. इस सबके बीच खदान मालिक उधार लाकर कितने दिन काम चलाएगा.
मकराना में मार्बल के गोदाम मालिक रामप्रसाद सैनी का कहना है कि लॉकडाउन की शुरुआत से ही गोदामों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के खाने-पीने के इंतजाम कर दिए गए थे. लेकिन जैसे-जैसे लॉकडाउन लंबा होता गया, मजदूर अपने काम काज को लेकर आशंकित होने लगे और कई मजदूर तो रातों-रात पैदल ही अपने घरों के लिए रवाना हो गए थे. अब जब हालात सामान्य होने की तरफ बढ़ रहे हैं तो मजदूर भी वापस आने लगे हैं.
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जानकार बताते हैं कि मकराना में 833 खदानों और 1500 से ज्यादा गोदामों के साथ ही 150 से ज्यादा बड़ी कटर मशीन लगी हुई हैं. जहां खदानों से निकलने वाले बड़े और बेडौल पत्थरों को काटकर संगमरमर की चमकदार टाइल्स बनाई जाती हैं. इन मशीनों पर भी फिलहाल सन्नाटा पसरा है. वैसे तो मकराना की पूरी अर्थव्यवस्था संगमरमर उद्योग पर ही निर्भर है. लेकिन एक अनुमान के मुताबिक करीब एक लाख लोग सीधे तौर पर मार्बल खनन, प्रोसेसिंग और बिक्री से जुड़े हुए हैं. फिलहाल लॉकडाउन में तो रियायत मिल रही है. लेकिन आर्थिक सुस्ती बरकरार है और आवाजाही के साधन भी पूरी तरह बहाल नहीं हो पाए हैं. मकराना के संगमरमर के खरीदारों की कमी के पीछे यही दो कारण अहम माने जा रहे हैं और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही यह समस्या खत्म होगी और मकराना का संगमरमर पहले की तरह देश-विदेश में अपनी चमक बिखेरेगा.