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SPECIAL: गायों का 'स्वीट होम' है मारोठ की गोशाला, चारा-पानी और बेहतर इलाज की भी है व्यवस्था

नागौर जिले में वैसे तो 500 से ज्यादा गोशालाएं पंजीकृत हैं, लेकिन मारोठ की जनकल्याण गोपाल गोशाला की बात कुछ अलग ही है. यहां गायों के लिए कभी चारा-पानी की कमी नहीं होती. ऐसा इसलिए क्योंकि 500 बीघा पथरीली बंजर जमीन को समतल कर गायों के लिए हरे चारे की खेती की गई है. बारिश के मौसम में इतनी मात्रा में चारा उगाया गया कि साल भर गाय-बछड़ों के लिए यह पर्याप्त रहेगा. और क्या-क्या खासियत है इस गोशाला की... देखिए इस खास रिपोर्ट में.

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Published : Aug 28, 2020, 9:34 PM IST

Janakalyan Gopal Goshala is equipped with facilities
सुविधाओं से लैस है जनकल्याण गोपाल गोशाला

नागौर.गायों के संरक्षण और देखभाल के लिए सरकार विशेष ध्यान दे रही है. जिले में 500 से ज्यादा पंजीकृत गोशालाएं संचालित हैं, लेकिन जिले के दूसरे छोर पर बसे मारोठ गांव की जनकल्याण गोपाल गोशाला में गाय-बछड़ों की सुविधा के लिए की गईं व्यवस्थाएं इस गोशाला को एक अलग कतार में लाकर खड़ा करती हैं. गोशाला की 700 से ज्यादा गायों और बछड़ों के लिए हरे चारे की पर्याप्त व्यवस्था की गई है.

सुविधाओं से लैस है जनकल्याण गोपाल गोशाला

गांव में चारागाह और गोचर की 500 बीघा पथरीली जमीन को पहले समतल किया गया और अब बारिश के मौसम में यहां चारा उगाया गया है. चारा इतनी मात्रा में उगाया गया है कि गोशाला की 700 गायों और बछड़ों के लिए साल भर तक कमी नहीं होने पाएगी. जहां चारे की खेती की जा रही है, वहां ट्यूबवेल भी लगवाया जा रहा है ताकि बारिश का मौसम खत्म होने के बाद भी चारा उगाया जा सके. इसके अलावा सूखे चारे की भी व्यवस्था भी गोशाला में की गई है. एक बड़ा गोदाम बनाकर उसमें पर्याप्त मात्रा में सुखा चारा भी रखा जाता है. हरे चारे की कटाई के लिए भी यहां मशीन लगाई गई है.

मारोठ गांव के प्रसिद्ध भैरव बाबा मंदिर के पास पहाड़ी की तलहटी में बनी इस गोशाला में गायों और बछड़ों की सुविधा के लिए जो संसाधन जुटाए गए हैं. उनके बारे में जानकर आपको आश्चर्य जरूर होगा. यहां गायों को चारे के साथ रोजाना दलिया भी खिलाया जाता है. दलिया तैयार करने का पूरा सामान भी यहां उपलब्ध है. यहां तक कि दलिया बनाने के लिए काम आने वाली वस्तुओं को पीसने के लिए तीन-तीन चक्कियां लगाई गई हैं. बड़े-बड़े कड़ाव भी हैं जिनमें एक साथ दलिया पकाया जाता है.

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पर्यावरण का भी रखा है ख्याल

मारोठ की यह गोशाला गो संवर्धन के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है. इस गोशाला की जमीन पर अलग-अलग जगहों पर करीब तीन हजार पौधे लगाए गए हैं. जिनमें से कई बड़े पेड़ का आकर लेने लगे हैं. यहां एक गार्डन भी तैयार किया जा रहा है. जिसमें छायादार के अलावा फूल और फलदार पेड़ भी लगाए गए हैं. पौधों को पानी देने के लिए बाकायदा बूंद-बूंद सिंचाई तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, ताकि पानी व्यर्थ न बहे.

परिसर में मंदिर भी है स्थापित

गोशाला में भगवान भोलेनाथ, राधा-कृष्ण और रामदरबार का सुंदर मंदिर भी बना है. खास बात यह है कि ऊंचे प्लेटफार्म पर बने इस मंदिर के नीचे ही पानी की खेलियां बनाई गई हैं. जहां गायों और बछड़ों के लिए पानी पीने की व्यवस्था रहती है. इस जगह को घास-फूस की विशाल झोपड़ी बनाकर कवर किया गया है और यहीं पर गायों को चारा भी खिलाया जाता है. गोशाला परिसर में ही 21 फीट के प्लेटफार्म पर भगवान महावीर की 11 फीट की प्रतिमा स्थापित है. जिसकी प्राण प्रतिष्ठा पंच कल्याणक अभिषेक के साथ की गई है. इस गोशाला में गायों की देखभाल और सार संभाल के लिए 20 कर्मचारी कार्यरत है.

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अभी गायों को पीने का पानी मुहैया करवाने के लिए ट्यूबवेल लनवाया गया है, लेकिन प्राकृतिक परिवेश में गाय और बछड़े पानी पी सकें इसलिए गोशाला के भीतर ही पहाड़ी की तलहटी में दो कृत्रिम तालाब खुदवाए जा रहे हैं. खास बात यह है कि जहां यह तालाब खुदवाए जा रहे हैं, वहां बारिश का पानी पहाड़ी से बहकर आता है. ऐसे में यह पानी इन तालाबों में इकट्ठा हो जाएगा जो गायों व बछड़ों के पीने के लिए काम आएगा.

भगवान महावीर की 11 फीट की प्रतिमा है स्थापित

प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से होता है गोवंशों का उपचार

गोशाला में आने वाले बीमार गोवंश की देखरेख और उपचार के लिए दवाओं की भी पर्याप्त व्यवस्था है. गोवंश की कई जटिल बीमारियों का उपचार भी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से किया जाता है. मसलन, पॉलीथिन खाने से बीमार गोवंश का उपचार ऑपरेशन करके नहीं किया जाता, बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से पेट में एकत्र पॉलीथिन को बाहर निकाला जाता है. ऐसे ही खुरपका-मुंहपका जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित गोवंश के उपचार के लिए गोशाला में एक स्थान बनाया गया है, जहां दवायुक्त पानी में से गोवंश को निकाला जाता है जिससे वे जल्दी ठीक हो जाती हैं. गोशाला की तरफ से एक ई रिक्शा भी मारोठ और आसपास के गांवों में घुमाया जाता है, जो हर घर से रोटी और अन्य सामान एकत्र करता है. यह वस्तुएं भी गायों की सेवा के लिए ही प्रयोग की जाती हैं.

यहां राधा-कृष्ण मंदिर भी है मौजूद

14 साल से हो रहा संचालन

गोशाला संचालक भंवरलाल बाबेल का कहना है कि वे बीते 14 साल से गोशाला का संचालन कर रहे हैं. सरकार गोशालाओं को अनुदान देती है, लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर होता है. इसलिए भामाशाहों और आमजन के सहयोग जरूरी है. उनका कहना है कि रोजमर्रा के खर्च के साथ ही बेसहारा गायों के लिए संसाधन जुटाने में काफी धन खर्च होता है. भामाशाह और आमजन का सहयोग लेने के बाद भी कभी-कभी उधार लेकर काम चलाना पड़ता है.

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अभी इस गोशाला पर एक करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है. पारदर्शिता के लिए वे हर साल गोशाला के आय-व्यय का ब्यौरा गोशाला की दीवार पर लिखवाते हैं. गोशाला की ओर से छपवाए गए पैम्फलेट्स के पीछे भी जमा खर्च का हिसाब छपवाया जाता है. उनका यह भी कहना है कि जितनी राशि सरकार गोवंश के नाम पर टैक्स और सरचार्ज लगाकर इकट्ठा करती है, यदि वह राशि भी अनुदान के रूप में गोशालाओं को दी जाए तो गायों के सड़क पर इधर-उधर घूमने की समस्या खत्म हो सकती है.

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