नागौर.हरित क्रांति के बाद खेती में बैलों का इस्तेमाल भले लगभग बंद हो गया हो, लेकिन बैलों की उपयोगिता आज भी कायम है. यह सुन कर हैरानी होती है कि यहां नागौरी नस्ल बैलों की कीमत सामान्य मूल्य की कारों से भी ज्यादा है. यहां के कई प्रदेशों के किसान 70 हजार रुपये से एक लाख रुपये से ज्यादा में एक बैल खरीदते हैं. मजबूत कद-काठी के कारण देश-दुनिया में प्रसिद्ध नागौरी नस्ल के बैलों का पावर इन दिनों नागौर के विश्व विख्यात श्रीरामदेव पशु मेले में देखने को मिल रहा है.
देश-दुनिया में प्रसिद्ध हैं नागौरी नस्ल के बैल नागौर जिला मुख्यालय पर चल रहे राज्य स्तरीय पशु मेले में देशभर से खासकर राजस्थान, यूपी, एमपी, पंजाब, हरियाणा गुजरात मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में व्यापारी बैलों की खरीदारी के लिए यहां पहुंच रहे हैं. मेले में नागौरी नस्ल के एक से बढ़कर एक बैलों की कई शानदार जोड़ियां पहुंची है. उनके मालिक व्यापारियों के सामने बैलों की चलने की चाल दिखाकर उनकी खासियत से रूबरू करवा रहे हैं. साथ ही बाहरी राज्यों से आए पशुपालकों को भी नागौरी नस्ल के बैलों के बारें जानकारी दी. मेला फरवरी अंत तक चलेगा.
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नागौरी नस्ल के बैलों के मालिकों ने बताया कि एक बैल को प्रतिदिन दूध, सुबह-शाम ज्वार और मूंग का हरा चारा, सुबह-शाम बाजरी और खल का बांटा दिया जाता है. साथ ही डाइट में मेथी व गेहूं का उबला दलिया और तिलों की तेल भी प्रतिदिन शामिल होता है. नागौरी नस्ल के बैलों की कद-काठी देश-दुनिया में प्रसिद्ध है. नागौरी नस्ल के बैल की जोड़ी एक दिन में 5 एकड़ भूमि जोत सकती है. दोनों बैलों की क्षमता 12-12 क्विंटल (2400 किलोग्राम) सामान की ढुलाई करने की होती है.
पशु मेले में पहुंची नागौरी नस्ल के बैलों की कई जोड़ी जानकारी के मुताबिक एक पिकअप की क्षमता 1360 किलोग्राम तक की होती है. नागौरी बैलों के लिए देशभर से व्यापारी बड़ी संख्या में खेती के लिए यहां से नागौरी नस्ल बैल खरीदकर ले जाते थे. लेकिन धीरे-धीरे मशीनीकरण के दौर के कारण वर्तमान में नागौरी बैलों की बिक्री तेजी से घट गई है. इसका परिणाम सबके सामने है. पशुपालकों का कहना है कि मेले में पशु बेचने पहुंचे पशुपालकों और खरीदारी के लिए यहां आए व्यापारियों से जुड़ी किसी भी प्रकार की परेशानी को नागौर जिला प्रशासन ने अपने स्तर पर हल करने के प्रयास किया है.
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बता दें कि श्री रामदेव पशु मेले में नागौरी नस्ल के बैलों की उत्पति श्वालक क्षेत्र से मानी जाती है. यह बैल पतली चमड़ी, सीधे सींग, कम चर्बी वाले फुर्तीले और मजबूत बैल होते है. नागौरी बैल प्राय: सफेद रंग के होते हैं इनकी आँखों में एक विशेष प्रकार की चमक होती है. इनकी गर्दन चुस्त, मुतान कसा हुआ, पूंछ अपेक्षाकृत छोटी, सींग छोटे व सुडौल, टांगें पतली, मुँह छोटा और त्वचा मुलायम होती है. ये बैल, एक दिन में 5 एकड़ भूमि जोत सकते हैं. साथ ही बता दें कि कुछ साल पहले तक श्री रामदेव पशु मेले में हजारों बैल बिकते थे, लेकिन 3 साल तक के बछड़ों की खरीद पर रोक और सड़क मार्ग से परिवहन में आने वाली बाधा के चलते मेले की रौनक खत्म हो गई है.
नागौरी नस्ल के बैलों की यह रोचक जानकारी
सींग : छोटे व सुडौल
आंखें : हिरण जैसी
मुंह : छोटा तथा त्वचा मुलायम
गर्दन : चुस्त और पतली होती है, चमड़ी (कामल) लटकी नहीं होती
कान : छोटे व बराबर, सुनने की क्षमता तेज
चौड़ाई : आगे का सीना मजबूत व चौड़ा होता है, पुठ्ठा घोड़े की तरह गोल
थूई : सीधी व लंबी, पीछे नहीं मुड़ती
खुर : नारियल जैसे गोल। तेजी से आगे बढ़ाने में सक्षम
लंबाई : 7 फीट से ज्यादा
रंग : अपेक्षाकृत सफेद, शांति का प्रतीक
ऊंचाई : सामान्यत तौर पर 6 फीट से ज्यादा
टांगें : पतली व मजबूत, अधिक भार पर नहीं झुकती
पूंछ : पतली और घुटने से लंबी