नागौर. जिले के सिलिकोसिस पीड़ितों को दिए जाने वाले प्रमाण पत्र पर अब सवाल उठने लगे हैं . प्रमुख शासन सचिव द्वारा श्रम विभाग की टीम ने इस प्रक्रिया में बड़े फर्जीवाड़ा का उजागर की है, जिसमें कई फर्जी प्रमाण पत्र सामने आने से कई अधिकारी भी जांच के दायरे में आ गए हैं.
नागौर में सिलिकोसिस के फर्जी प्रमाण पत्र सिलिकोसिस वो बीमारी है, जो पत्थर के खनन या घड़ाई से जुड़े काम करने वाले मजदूरों के फेफड़ों में धूल जम जाने से होती है. सरकार की ओर से सिलिकोसिस पीड़ितों की सहायता के लिए प्रावधान किए गए हैं. जिसमें सिलिकोसिस पीड़ित मजदूरों को 5 लाख रुपये के अलावा कई तरह के निशुल्क सुविधाएं और पेंशन दी सरकार की ओर से दी जाती है. पिछले दिनों नागौर जिले में सिलिकोसिस पीड़ितों को दिए जाने वाले कई प्रमाण पत्र एक साथ बनने के दौरान एक ही जगह दो प्रमाण पत्र जारी होने से श्रम विभाग के अधिकारियों को दाल में कुछ काला नजर आया. इसके साथ ही पीड़ितों को दिए जा रहे प्रमाण पत्र में फर्जीवाड़े की शिकायत भी प्रमुख शासन सचिव श्रम विभाग और मुख्यालय तक पहुंची.
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श्रम विभाग के मुख्यालय हरकत में आते ही प्रमाण पत्र की सत्यता जानने के लिए विशेष टीम की मौजूदगी में नागौर में 3 कैंप लगाए गए. श्रम विभाग के सलाहकार सिलिकोसिस बोर्ड के डॉक्टर पीके सिसोदिया के नेतृत्व में टीम ने एक्स-रे और दोबारा से स्वास्थ्य परीक्षण टीम के सदस्यों द्वारा किया गया.
पीके सिसोदिया ने बताया कि सिलिकोसिस प्रमाण पत्र जारी किए गए. सिलिकोसिस से पीड़ित की दोबारा से जांच की तो भारी फर्जीवाड़े सामने आया. रोग से पीड़ित नहीं होने के बावजूद प्रमाण पत्र जारी किए गए. जांच टीम ने नागौर में तीन बार अलग-अलग कैंप आयोजित करके 50 से ज्यादा फर्जी प्रमाण पत्र को पकड़ा है. अब इसकी रिपोर्ट बनाकर श्रम विभाग के प्रमुख शासन सचिव को सौंपी जाएगी.
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सिलिकोसिस पीड़ितों को दिए जाने वाले लाखों रुपए की सहायता राशि पर दलालों की नजर क्या पड़ी, नागौर में फर्जीवाड़ा अपने चरम पर पहुंच गया. जांच टीम के अधिकारियों का कहना है कि अगर इस मामले में किसी अधिकारी की भूमिका पाई गई तो उन पर कार्रवाई की जाएगी.