नागौर.दोनों पैरों से विकलांग, मगर हौसला बुलंदी पर. दुनिया भर के निशानेबाजों को अपने कदमों में झुकाने के इरादे रखने वाले शिवराज सांखला मजबूत इरादे की मिसाल हैं. इस इरादे को पूरा करने के लिए उन्होंने बकायदा अपने कस्बे से 80 किलोमीटर दूर, अजमेर शहर में जाकर शूटिंग का प्रशिक्षण लिया. फिर भारतीय पैराशूटिंग टीम में चयन करवाकर कई राष्ट्रीय और राज्य प्रतियोगिता में स्वर्ण, रजत और कांस्य मेडल जीते. लेकिन आर्थिक तंगी के चलते शिवराज सांखला ने अपने गांव में शूटिंग एकेडमी खोली और जिन किसानों के बच्चों के हाथों में हल थे, उन्हें राइफल थमाकर निशानेबाजी में दक्ष कर रहे हैं.
वैसे तो हर इंसान बचपन में घुटनों के बल चलता है, मगर एक उम्र के बाद अपनों की उंगली पकड़कर इस धरती पर कदम रखता है. नागौर में मेड़ता सिटी के रहने वाले शिवराज को अपनों की उंगली तो मिली, मगर दोनों पैर से विकलांग होने के कारण चलना उसके नसीब में नहीं था. छोटी में उम्र में पिता का साया भी उठ गया, जिसके कारण उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. मगर कहते हैं, जिसके इरादे मजबूत हों, वह जिंदगी के हर संघर्ष को पार कर लेता है. ऐसे ही मजबूत इरादों की मिसाल शिवराज ने अपनी विकलांगता को नजरअंदाज करते हुए जिंदगी जीने का मकसद तय किया और अपने गांव से 80 किलोमीटर दूर, अजमेर शहर में निशानेबाजी का दो साल तक प्रशिक्षण लिया. इसके बाद चार बार राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पैराशूटिंग प्रतियोगिता में भाग लेकर स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीते.
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