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Special : देशभर में प्रसिद्ध हैं नागौर में बनी धातु और प्लास्टिक की चूड़ियां, कोरोना काल में 60 फीसदी घटी मांग

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Published : Sep 25, 2020, 3:15 PM IST

नागौर में बनी धातु और प्लास्टिक की चूड़ियां अपनी कारीगरी और चमक के लिए देशभर में अलग पहचान रखती हैं. देश के कई राज्यों के साथ ही नेपाल में भी इनकी मांग रहती है, लेकिन कोरोना काल में अन्य उद्योगों की तरह नागौर की धातु की चूड़ियां और कंगन का उद्योग भी संकट के दौर से गुजर रहा है. इस पर एक खास रिपोर्ट...

Bangles of Nagaur, नागौर न्यूज़, कोरोना काल
कोरोना काल में घटी नागौर में बनी चूड़ियों की मांग

नागौर.जिले में बनी धातुओं की चूड़ियां और कंगन अपनी कारीगरी और चमक के लिए देशभर में अपनी अलग पहचान रखती हैं. गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, बिहार और बंगाल में नागौर की इन चूड़ियों और कंगन की खास तौर पर डिमांड रहती है. पड़ोसी देश नेपाल में भी नागौर की चूड़ियां और कंगन बहुत पसंद किए जाते हैं, लेकिन कोरोना काल में नागौर का चूड़ी उद्योग 60-70 फीसदी घट गया है.

इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि बाजार में पर्याप्त मांग नहीं है. इसलिए उत्पादन भी पूरी क्षमता के अनुरूप नहीं कर पा रहे हैं. इसके साथ ही दूसरे प्रदेशों के मजदूरों की कोरोना काल में घर वापसी ने भी इस उद्योग को खास तौर पर प्रभावित किया है. फिलहाल, आने-जाने के लिए रेल और बस की सुविधा भी पूरी तरह बहाल नहीं हो पाई है. इससे भी नागौर का चूड़ी और कंगन उद्योग प्रभावित हुआ है.

कोरोना काल में घटी नागौर में बनी चूड़ियों की मांग

वहीं, कोरोना काल की शुरुआत में हुए पूर्ण लॉकडाउन के दौरान चूड़ी और कंगन की फैक्ट्रियां पूरी तरह बंद हो गई थी, लेकिन अब अनलॉक की प्रक्रिया के साथ ही इन फैक्ट्रियों में काम फिर से शुरू हो गया है. हालांकि, अभी भी उतनी तेजी से काम नहीं हो पा रहा है, जितना कोरोना काल से पहले होता था, लेकिन इस उद्योग से जुड़े लोगों को भरोसा है कि कोविड-19 महामारी का खतरा कम होने के साथ ही नागौर में धातुओं और प्लास्टिक से बनी यह चूड़ियां और कंगन एक बार फिर देशभर में अपनी चमक बिखेरेंगी.

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जानकर बताते हैं कि नागौर में करीब 25-30 साल पहले घरेलू और कुटीर उद्योग के रूप में चूड़ी और कंगन बनाने की शुरुआत हुई थी. महिलाएं घर पर ही कच्चे माल से चूड़ियां और कंगन तैयार करती थी. लेकिन धीरे-धीरे नागौर में इस काम का विस्तार होता गया और बड़ी फैक्ट्रियां लगाकर चूड़ियां और कंगन बनाए जाने लगे. अब कई लोग ऐसे भी हैं जो चूड़ियां और कंगन के लिए कच्चा माल भी यहीं पर तैयार करते हैं. नागौर में बनने वाली धातु की चूड़ियों के लिए पहले प्लास्टिक का एक गोल घेरा बनाया जाता है. उसके ऊपर पीतल जैसी ठोस धातु की परत चढ़ाई जाती है. इस परत पर की जाने वाली कारीगरी इन चूड़ियों और कंगन को आकर्षक बनाती है और इसी के चलते इन्हें देशभर में पसंद किया जाता है.

करीब 15-20 साल से इस उद्योग से जुड़े सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि उनका परिवार उन चुनिंदा लोगों में शुमार हैं, जिन्होंने नागौर में धातु की चूड़ियां और कंगन बनाने का काम शुरू किया था. उन्होंने बीकानेर में ये काम देखा था और नागौर में ये काम शुरू किया था. उनका कहना है कि कोरोना काल से पहले उनकी फैक्ट्री में 150-200 लोग काम करते थे, लेकिन अभी उनकी संख्या आधी रह गई है. वो बताते हैं कि लॉकडाउन में दुकानें बंद रहने के कारण चूड़ी-कंगन की डिमांड कम हुई है. पहले बाहर से व्यापारी नागौर आते थे और अपनी पसंद का माल ले जाकर बेचते थे, लेकिन अभी बाहरी व्यापारियों की आवाजाही भी वापस शुरू नहीं हो पाई है. ऐसे में बीते 2 साल से तुलना करें तो चूड़ी और कंगन की डिमांड 40 फीसदी रह गई है. यानी कोरोना काल में इनका बाजार करीब 60 फीसदी प्रभावित हुआ है.

सुरेंद्र सिंह का ये भी कहना है कि जिन प्रदेशों में मारवाड़ी लोग ज्यादा संख्या में रहते हैं. वहां नागौर में बनी धातु की चूड़ियों और कंगन की मांग ज्यादा रहती है, लेकिन बाकी प्रदेशों में भी ये मांग के अनुसार सामान भेजते हैं. सुरेंद्र सिंह का कहना है कि कोरोना काल में फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के ईपीएफ अकाउंट में कंपनी और मजदूर का ईपीएफ सरकार द्वारा जमा करवाया गया है. इसके साथ ही क्रेडिट लिमिट पर 20 फीसदी लोन रियायती दर पर दिया गया है. इन दोनों फैसलों से नागौर के चूड़ी-कंगन उद्योग को फायदा मिला है.

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इस कारोबार से जुड़े एक अन्य कारोबारी ओम प्रकाश सुथार बताते हैं कि उन्होंने शुरुआत में करीब 8-10 साल तक घर में ही चूड़ी-कंगन बनाने का काम किया. इसके बाद फर्म बनाकर फैक्ट्री लगा ली. कोरोना काल से पहले देश के कई राज्यों में वो सामानों की सप्लाई करते थे, लेकिन लॉकडाउन में काम पूरी तरह बंद हो गया था. अब अनलॉक की प्रक्रिया के साथ ही काम तो शुरू हो गया है, लेकिन रफ्तार पहले जैसी नहीं रही. उनका कहना है कि अभी भी ना तो उनके सेल्समैन हर जगह जा पा रहे हैं और ना ही बाहर के व्यापारी माल खरीदने यहां आ पा रहे हैं. ऐसे हालात में अभी पहले की तुलना में 30 फीसदी ही खपत रह गई है. कई बार तो तैयार किया हुआ सामान स्टॉक करके रखना पड़ता है. बीच में नागौर में चूड़ी-कंगन की करीब 15-20 यूनिट में काम होता था, लेकिन अब 4-5 बड़ी यूनिट में ही काम हो रहा है. कुछ लोग घरों में भी कंगन-चूड़ी बनाने का काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या भी ज्यादा नहीं है. देश में कोविड-19 महामारी के कारण ठप हुए अन्य उद्योग-धंधों की तरह ही नागौर के चूड़ी-कंगन उद्योग से जुड़े हुए लोगों को भी उम्मीद है कि जल्द ही इस खतरनाक महामारी का अंत होगा और नागौर का कंगन-चूड़ी उद्योग एक बार फिर देशभर में अपनी चमक बिखेरेगा.

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