नागौर.आंखों की मंद रोशनी के सहारे जिंदगी काट रही 72 साल की प्रकाशी आचार्य को सिस्टम ने चक्कर काटने के लिए मजबूर कर दिया. जबकि मुख्यमंत्री कार्यालय से 22 दिन पहले ही संबंधित अधिकारियों को समस्या के निदान के लिए निर्देश जारी हो गए थे.
आंखों की मंद रोशनी के सहारे प्रकाशी को पेंशन की जरूरत, काटने पड़ रहे अफसरों के चक्कर परिवादी को राहत देने की बजाय नागौर जिले के रियांबड़ी एसडीएम, बीडी और संबंधित ग्राम पंचायत में ने बार-बार चक्कर कटवाए. सरकारी सिस्टम में छोटी से छोटी समस्याओं को बड़ा कर देने की कहानी है नागौर के आलनियावास गांव की है. जहां कि 72 साल की दिव्यांग प्रकाशी आचार्य की पेंशन चल रही थी.
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लेकिन 15 माह पूर्व भौतिक सत्यापन के दौरान रियां बड़ी विकास अधिकारी ने राजस्थान से बाहर होने का नोट लगाकर दिव्यांग की पेंशन जून 2018 से बंद कर दी. जन्मजात दिव्यांग प्रकाशी आचार्य तब से अपनी पेंशन पुनः चालू करवाने के लिए चक्कर काटने को मजबूर है.
मुख्यमंत्री की जनसुनवाई में भी प्रकाशी ने गुहार लगाई. सीएमओ से निर्देश भी जारी हुए लेकिन प्रकाशी को कहीं भी उम्मीद कि किरण नजर नहीं आई. 22 दिन बीत जाने के बाद भी किसी अधिकारी ने प्रकाशी के पुनः सत्यापान की जहमत तक नहीं उठाई. ऐसे में वो अपने 75 साल के भाई के साथ नागौर कलेक्ट्रेट पहुंची और माथा टेक कर गुहार लगाई.
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वहीं जिला कलेक्टर दिनेश कुमार यादव ने मामले की गंभीरता को लेते हुए जिला कोषाधिकारी को पूरे मामले की जांच और वृद्धावस्था पेंशन चालू करवाने के निर्देश दिए हैं. ये कहानी केवल 72 साल की दिव्यांग प्रकाशी की नहीं है. नागौर जिले में भौतिक सत्यापन के अभाव में 90 हजार 964 दिव्यांग, विधवा और अन्य वृद्ध भी इस समयस्या से जूझ रहे हैं जिनकी वर्तमान में पेंशन बंद कर दी गई है.